डिपॉजिट इंश्योरेंस कवरेज बढ़ाकर 5 लाख रुपये किया जाएगा

किसी भी शेड्यूल कमर्शियल बैंक में आपकी जमा राशि उतनी ही सेफ है जितना कोई रिस्क फ्री फाइनेंशियल एसेट.

Bank Deposit:

पब्लिक सेक्टर्स के बैंकों, निजी बैंकों, विदेशी बैंकों की शाखाओं, स्थानीय क्षेत्र के बैंकों, सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों सहित सभी वाणिज्यिक बैंक डीआईसीजीसी अधिनियम के अंतर्गत आते हैं.

पब्लिक सेक्टर्स के बैंकों, निजी बैंकों, विदेशी बैंकों की शाखाओं, स्थानीय क्षेत्र के बैंकों, सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों सहित सभी वाणिज्यिक बैंक डीआईसीजीसी अधिनियम के अंतर्गत आते हैं.

केंद्र सरकार ने हाल ही में एक कानून पारित किया जिसने डिपॉजिट इंश्योरेंस (Deposit Insurance) कवरेज की लिमिट को बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर दिया है. तब से, मुझे लोगों के उनके डिपॉजिट अमाउंट को लेकर लगातार फोन कॉल आ रहे हैं. वो जानना चाहते हैं कि क्या उन्हें इस अमाउंट से ज्यादा बैंक में डिपॉजिट रखना चाहिए. कुछ लोगों ने पूछा है कि क्या सभी अकाउंट में डिपॉजिट अमाउंट को डिस्ट्रीब्यूट करना सही स्ट्रेटजी होगी – या उन्हें इसके बजाय दूसरे सेविंग इंस्ट्रूमेंट की तलाश करनी चाहिए. RBI द्वारा एक सहकारी बैंक का लाइसेंस रद्द करने के बाद से दोस्तों और परिवार वालों के फोन कॉल आने लगे.

इसलिए इस विषय पर लिखना जरूरी है, क्योंकि मैं मानता हूं कि बहुत से लोग चिंतित हो गए हैं, क्योंकि मौजूदा इकोनॉमिक सिनेरियो में अनिश्चितता बढ़ गई है. लेकिन इससे पहले कि हम डिपॉजिट इंश्योरेंस के मामले में बात करें कि यह कैसे काम करता है, आइए पहले हम एक सिंपल फैक्ट को समझें –

किसी भी शेड्यूल कमर्शियल बैंक में आपकी जमा राशि उतनी ही सेफ है जितना कोई रिस्क फ्री फाइनेंशियल एसेट. यानी अगर आपके एक बैंक अकाउंट में 1 करोड़ रुपये की सेविंग है तो भी आपका सारा पैसा सुरक्षित है.
इसके सुरक्षित होने के दो कारण हैं – पहला, शेड्यूल कमर्शियल बैंक भारत में फेल नहीं हुए हैं. दूसरा, इन बैंकों के सिस्टमेटिक इम्पोर्टेंस की वजह से. वास्तव में, इनमें से ज्यादातर बैंक कड़े नियमों के अधीन हैं ताकी बैंक स्ट्रैस की जल्द पहचान कर समय पर उचित कार्रवाई कर सके.

बैंकिंग काफी हद तक भरोसे पर निर्भर करती है; हम अपना पैसा एक बैंक में जमा करते हैं क्योंकि हमें भरोसा है कि जब हमें इसकी जरूरत होगी तो हम अपना पैसा वापस निकाल पाएंगे. फिर बैंक उस पैसे को उन लोगों को उधार देता हैं जो उन्हें लगता है कि पैसा वापस कर पाएंगे. लेकिन कभी-कभी, कुछ कर्जदार पैसे वापस नहीं करते हैं और बैंक को नुकसान होता है. लेकिन वो नुकसान इसकी बैलेंस शीट पर आता है – जबकि डिपॉजिटर अभी भी बिना किसी परेशानी के अपने अकाउंट में जमा अपनी राशि पर क्लेम कर सकते हैं. यदि डिपॉजिटर अपना पैसा नहीं निकाल पाते, तो एक पैनिक होगा जो पूरे फाइनेंशियल सिस्टम में फैल जाएगा – जिससे पूरा सिस्टम चरमरा जाएगा. 2008 में लेहमन ब्रदर्स द्वारा खुद को दिवालिया घोषित किए जाने के बाद ठीक ऐसा ही हुआ था.

भारत में हाल ही का एक उदाहरण लीजिए, यस बैंक को अपने डिस्क्लोजर की क्वालिटी, नॉन-परफॉर्मिंग जैसे कई मुद्दों का सामना करना पड़ा और इसकी बैलेंस शीट में गिरावट देखी जा रही थी. आरबीआई ने पहले मैनेजमेंट में बदलाव की सुविधा देकर, और बाद में बैंक को मोरेटोरियम के तहत रखकर और फिर धीरे-धीरे एक मजबूत योजना बनाकर काम किया, जो बैंक को रिवाइव करेगा. यस बैंक के सभी जमाकर्ता इस फैक्ट को जानते हैं कि कुछ तनावपूर्ण हफ्तों के बावजूद, उनकी बचत 100% सुरक्षित है. तो, लंबी कहानी को छोटा करने के लिए, आपका (और मेरा) डिपॉजिट शेड्यूल कमर्शियल बैंकों में सुरक्षित हैं – भले ही वो 5 लाख रुपये से अधिक हो. यह बेहतर गवर्नेंस, बेहतर रेगुलेशन और फाइनेंशियल सिस्टम की मंदी को रोकने के कारण है.

बेशक, यह नैतिक खतरे की समस्या पैदा करता है क्योंकि जमाकर्ता अपने बैंकों की निगरानी के बारे में सतर्क नहीं होंगे, वहीं बैंक भी एग्रेसिव रिस्क उठाना जारी रख सकते हैं, यह जानते हुए कि उन्हें जमानत मिल जाएगी. यही कारण है कि ऐसी स्थितियों को ठीक करने के लिए दुनिया भर में कड़े नियम और निगरानी तंत्र मौजूद हैं – बैंकों को उस पॉइंट तक पहुंचने से रोकने के लिए जहां उन्हें खुद को दिवालिया घोषित करना पड़े. उम्मीद है कि आने वाले सालों में भारत भी इन तंत्रों को मजबूत होते हुए देखेगा

लॉजिकल सवाल ये है कि अगर सभी सेविंग सुरक्षित हैं तो 5 लाख रुपये तक की जमा राशि का इंश्योरेंस क्यों है?

दुनिया भर में, कई डिपॉजिट इंश्योरेंस स्कीम्स हैं जो डिपॉजिटर को आश्वस्त करने के लिए तैयार हैं कि उनका पैसा सुरक्षित है. इंश्योर्ड डिपॉजिट अमाउंट पर हर देश की एक अलग लिमिट होती है. उदाहरण के लिए, अमेरिका में, फेडरल डिपॉजिट इंश्योरेंस कॉर्प (FDIC) प्रति बैंक प्रति व्यक्ति $250,000 तक डिपॉजिट की गारंटी देता है.

इस इंश्योरेंस का कारण यह है कि कड़ी निगरानी, रेगुलेटरी प्रॉविजन और रेजोल्यूशन प्लान के बावजूद कोई परेशानी होने पर जमाकर्ताओं को उनकी जमा राशि के एक हिस्से की गारंटी दी जा सकती है. कई मामलों में, आरबीआई जैसे रेगुलेटर विद्ड्रॉल पर टेंपरेरी बैन लगा देंगे जब तक वो हेल्दी बैलेंस-शीट वाले बैंक की खोज कर रहे हैं , जो डिपॉजिट को टेकओवर कर सके जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि सभी डिपॉजिट इनटेक्ट हैं.

हालांकि, को-ऑपरेटिव बैंकों की स्थिति शेड्यूल कमर्शियल बैंकों से अलग हो सकती है. हमारे को-ऑपरेटिव बैंकों को नियंत्रित करने वाले नियामक तंत्र को मजबूत करने के साथ-साथ आरबीआई की निगरानी में सुधार करने का प्रयास किया गया है. हालांकि, उनके कामकाज, उनका सुपरवीजन करने के लिए आरबीआई के संसाधनों और बड़े बैंकों द्वारा टेकओवर के लिए लीगल फ्रेमवर्क को लेकर अभी भी चिंताएं बनी हुई हैं. एक्सपेंडेड इंश्योरेंस द्वारा किसी भी फाइनेंशियल स्ट्रैस की स्थिति में को-ऑपरेटिव बैंकों के अधिकांश जमाकर्ताओं को कवर करना चाहिए, जो लाखों जमाकर्ताओं के लिए राहत के रूप में आएगा.

हालांकि, हमें यह याद रखना चाहिए कि हमारा फाइनेंशियल सिस्टम अच्छी तरह से बरकरार है, और डिपॉजिट सुरक्षित हैं. विद्ड्रॉल पर कभी-कभी परेशानी और प्रतिबंध हो सकते हैं, हालांकि, अंत में आरबीआई हमारी बचत को सुरक्षित रखने के लिए प्रयास करेगी.

Published - August 1, 2021, 11:54 IST