लोन की किस्त अदायगी में छूट जैसे राहत उपायों के चलते 31 मार्च 2021 तक बैंकों ग्रॉस नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स (GNPA) 9.6-9.7 फीसदी तक बढ़ने का अनुमान है. इक्रा रेटिंग (Icra Rating) के मुताबिक, बैंकों का जीएनपीए मार्च 2022 तक और बढ़कर 9.9-10.2 फीसदी तक हो सकता है. रेटिंग एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कोविड-19 महामारी (COVID-19 Pandemic) के चलते लोन लेने की क्षमता प्रभावित होने के बावजूद बैंकों के लिए ग्रॉस एनपीए चालू वित्त वर्ष 2020-21 के पहले नौ महीनों के दौरान काफी कम 1.8 लाख करोड़ रुपए रही, जो वित्त वर्ष 2019-20 में 3.6 लाख करोड़ रुपए थी.
रेटिंग एजेंसी ने कहा कि विभिन्न राहत उपायों के चलते ऐसा हुआ, हालांकि, एसेट्स क्वालिटी को लेकर दबाव फिर से शुरू होने की आशंका है. इंक्रा ने कहा, हमारा अनुमान है कि 31 मार्च 2021 तक जीएनपीए (राइट-ऑफ को छोड़कर) 9.6-9.7 फीसदी तक बढ़ जाएगा, और 31 मार्च 2022 तक यह आंकड़ा बढ़कर 9.9-10.2 फीसदी हो जाएगा. जीएनपीए 31 मार्च 2020 तक 8.6 फीसदी था.
लोन मोरेटोरियम का दिखेगा असर
इंक्रा के क्षेत्र प्रमुख (फाइनेंशियल सेक्टर रेटिंग्स) अनिल गुप्ता ने कहा कि लोन किस्त स्थगन जैसे राहत उपायों के बाद एसेट्स क्वालिटी पर प्रभाव वित्त वर्ष 2021 और वित्त वर्ष 2022 में देखने को मिलेगा, क्योंकि विभिन्न हस्तक्षेपों और राहत उपायों ने बैंकों की लाभप्रदता और पूंजी पर एक बड़ी चोट को रोक दिया.
बैंकों को हो सकता है 2 हजार करोड़ का नुकसान
बता दें कि पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने लोन मोराटोरियम पीरियड के दौरान इंट्रेस्ट पर इंट्रेस्ट भुगतान में छूट की घोषणा की थी. हालांकि यह 2 करोड़ से ज्यादा लोन पर लागू होगा. इससे कम अमाउंट पर नवंबर 2020 में ही इंट्रेस्ट पर इंट्रेस्ट माफ किया गया था. सूत्रों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 1,800 से 2,000 करोड़ रुपए का ‘नुकसान’ उठाना पड़ सकता है. किस्त के भुगतान पर छूट के दौरान कंपाउंडिंग इंट्रेस्ट समर्थन योजना से सरकार पर 2020-21 में 5,500 करोड़ रुपए का बोझ पड़ा है.
रिजर्व बैंक ने पिछले साल कोविड-19 महामारी की वजह से सभी टर्म लोन पर 1 मार्च से 31 मई, 2020 तक की किस्तों के भुगतान पर छूट दी थी. बाद में इस अवधि को बढ़ाकर 31 अगस्त कर दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट का निर्देश सिर्फ उन खातों तक सीमित है जिन्होंने भुगतान की छूट का लाभ लिया है. ऐसे में मोटे अनुमान के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 2,000 करोड़ रुपए का नुकसान होगा.