Bad Banks: सरकार ने आखिरकार NARCL के गठन को हरी झंडी दे दी है, वास्तव यह एक बैड बैंक है. आपको आश्चर्य हो सकता है कि ये बैड बैंक है क्या? आइए जाने इसके बारे में. NARCL या बैड बैंक क्या है, इसे समझने के लिए पहले हमें उन घटनाओं को समझना होगा, जिन्होंने इसके गठन को जरूरी बना दिया. 2003 के बाद से भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी आनी शुरू हुई, जिसकी प्रमुख वजह विभिन्न सुधार कार्यक्रम और कम ब्याज दरें हैं. हालांकि, 2008 के वित्तीय संकट ने अर्थव्यवस्था को गहरी चोट दी. 2003 से 2008 के बीच पूरी दुनिया ग्रोथ अच्छी थी औj भारत पर भी इसका अच्छा असर पड़ा. तब तक वैश्विक ग्रोथ लगभग स्थिर बनी हुई है.
अच्छी ग्रोथ के कारण बहुत सी कंपनियों ने 2008 तक खूब निवेश किया, साथ ही कर्ज देने की प्रक्रिया भी बहुत उदार हो गई. कुछ लोन तो ऐसे थे जिन्हें राजनीतिक वजहों से दिए गए, जबकि उनके चुकाने की क्षमता पर ध्यान नहीं दिया गया. और जब ग्रोथ कमजोर पड़ गई, डिफाल्ट के मामले बढ़ते गए, बैंकों पर दबाव भी बढ़ता गया. किंतु, ज्यादातर बैंकों ने ऐसे लोन को एनपीए नहीं माना और वे उम्मीद करते रहे कि उनके पैसे वापस आ जाएंगे.
यहां जमाकर्ताओं को यह जानना चाहिए कि सिस्टम कैसे काम करता है. ऐसा माना जाता है कि बैंक जमाकर्ताओं के पैसे का इस्तेमाल कर्ज देने में करते हैं. जबकि यह सही नहीं है, क्योंकि बैंक अपनी जमाओं का उपयोग कर्ज देने में करते हैं और वे जमा से ज्यादा लोन देते हैं. यदि बैंकों को इन लोन पर नुकसान होता भी है तो जमाकर्ताओं का पैसा सुरक्षित रहता है. और नुकसान की भरपाई बैंक के शेयरहोल्डरों को करनी होती है.
2013 में जब रघुराम राजन आरबीआई के मुखिया बने, तो उन्होंने इस सिस्टम में बदलाव करने की कोशिश की. 2014 में जब नई सरकार आई तो इस दिशा में प्रयास शुरू हुए. मकसद यह था कि बैंकों द्वारा दिए गए लोन को वापस लाया जाए. इसके लिए इनसॉल्वेंसी एंड बैंगक्रप्सी कोड पेश किया गया. इसकी वजह से रिकवरी में तेजी आई और कई तो कंपनियां तो बंद तक हो गईं. किंतु, अभी भी सिस्टम में बैड लोन फंसा रहा. 2016 में बैड बैंक बनाने पर विचार हुआ.
बैड बैंक, एक तरह की असेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी होगी. ऐसी कंपनियां कम कीमत पर असेट को खरीदती हैं और ऊंचे कीमत पर बेचकर मुनाफा कमाती हैं. इसे पुरानी कार खरीदने वाले की तरह मानें, जो पुरानी कार को खरीद कर कुछ सुधार करने के बाद दोबारा इसे बेचता है. अब बैंक अपने एनपीए को बैड बैंक बेचेंगे, इसके बाद बैड बैंक इन्हें वसूलने का प्रयास करेगा. बदले में बैंकों को अपने एनपीए कुछ हिस्सा प्राप्त हो जाएगा. दूसरी ओर, बैड बैंक अपनी वसूली प्रक्रिया चलाते रहेगा. साथ ही इस बैड बैंक में 51 फीसदी हिस्सेदारी सरकारी बैंकों की होगी. यानि, बैड बैंक को होने वाले फायदे से उन्हें भी लाभ होगा.
अभी बैड बैंक गठित किए जाने की एक वजह यह है कि बीते कई सालों से विभिन्न बैंक अपने एनपीए की वसूली से जूझ रहे हैं, और अपने उधार देने के कारोबार पर ध्यान नहीं दे पा रहे हैं. इससे उनके ग्रोथ पर असर पड़ रहा है. बैड बैंक बनने से उनकी व्यवस्था में सुधार आएगा. साथ ही भविष्य एनपीए और बढ़ने का खतरा कम हो सकेगा.
इस बैड बैंक का ज्यादातर संबंध बैंकों और उनके हिस्सेदारों से है, न कि आम जमाकर्ताओं से. हालांकि, एक मजबूत बैंकिंग सिस्टम सभी के लिए अच्छा होता है. जहां तक बात हिस्सेदारों की है तो एनपीए के तौर पर फंसे पैसे को वसूलने में आसानी होगी. जिससे वे अपने मूल कारोबार में ध्यान दे पाएंगे, और उनका ग्रोथ मजबूत होगा. बैंकों के पास अधिक पैसा होने से जमाकर्ताओं को फायदा होगा. उन्हें होम या कार लोन लेने में आसानी होगी.