अमेरिकी सेंट्रल बैंक फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जिरोम पॉवेल ने शुक्रवार रात को जैकसन होल में हुए केंद्रीय बैंक के सालाना कार्यक्रम के दौरान संकेत दिए कि महंगाई को काबू करने के लिए अमेरिकी केंद्रीय बैंक भविष्य में ब्याज दरों में और बढ़ोतरी कर सकता है. उन्होंने कहा कि महंगाई ऊपरी स्तर से जरूर कम हुई है लेकिन अभी भी ज्यादा है और जरूरत पड़ी तो ब्याज दरों में बढ़ोतरी की जाएगी.
अमेरिका में ब्याज दर बढ़ने की स्थिति में वहां पर बॉन्ड यील्ड में भी बढ़ोतरी होगी और बॉन्ड बाजार में निवेश बढ़ सकता है. मजबूत अर्थव्यवस्था होने की वजह से अमेरिका का बॉन्ड बाजार दुनियाभर के निवेशकों को अपनी ओर आकर्षित करता है, ऐसे में दुनियाभर से निवेश आकर अमेरिकी बॉन्ड बजाार में पहुंच सकता है. यही वजह है कि अमेरिकी डॉलर में तेजी बनी हुई है और डॉलर के मुकाबले दुनिया की सभी प्रमुख मुद्राओं पर दबाव है, भारतीय रुपया भी दबाव में है.
ऐसी स्थिति में दुनिया के दूसरे देशों को अगर निवेशकों को अपने यहां रोकना है तो उन्हें भी ब्याज दरों में बढ़ोतरी करनी पड़ सकती है. यानी US में ब्याज दर बढ़ी तो भारत सहित दुनिया के दूसरे केंद्रीय बैंक भी कर्ज महंगा कर सकते हैं. भारत में तो हाल के दिनों में महंगाई का गणित बिगड़ चुका है, खाद्य महंगाई बढ़ने की वजह से रिजर्व बैंक पर पॉलिसी को और सख्त करने का दबाव बना हुआ है. जुलाई के दौरान रिटेल महंगाई दर बढ़कर 7.44 फीसद दर्ज की गई है. ऊपर से मानसून की बिगड़ी स्थिति की वजह से खरीफ उत्पादन पर असर पड़ने की आशंका है, और ऐसा हुआ तो खरीफ फसलों के उत्पादन पर असर पड़ेगा जो महंगाई को और बढ़ावा देगा. यानी दुनिया के दूसरे केंद्रीय बैंकों के मुकाबले भारत के केंद्रीय बैंक रिजर्व बैंक पर ब्याज दरों को बढ़ाने का ज्यादा दबाव है.
ऐसी आशंका जताई जा रही है कि महंगाई की स्थिति खराब हुई तो रिजर्व बैंक भी पॉलिसी दरों में बढ़ोतरी से पीछे नहीं हटेगा, हालांकि बीती 3 पॉलिसी बैठकों के दौरान रिजर्व बैंक ने पॉलिसी दरों में कोई बदलाव नहीं किया है और रेपो दर को 6.5 फीसद पर स्थिर रखा हुआ है. लेकिन पिछली बैठक के दौरान रिजर्व बैंक ने बैंकों के पास जमा हुई अतीरिक्त लिक्विडिटी को कम करने के लिए 10 फीसद I-CRR लागू किया है. 2000 रुपए के नोट बंद होने की वजह से बैंकों के पास सरप्लस लिक्विडिटी में बढ़ोतरी हुई थी. अब बैंकों के लिक्विडिटी जरूर कम हुई है लेकिन महंगाई अभी भी कम नहीं है और आगे चलकर इसमें कमी नहीं आई तो रिजर्व बैंक पॉलिसी दरों में बढ़ोतरी करेगा, ऐसा हुआ तो कर्ज की दरें बढ़ेंगी तथा मासिक EMI में बढ़ोतरी होगी. हालांकि बैंक में एफडी पर ब्याज की दर भी बढ़ेगी.