उत्तर भारत में तापमान बढ़ने की वजह से बिजली की मांग में भारी उछाल आया है. इसकी वजह से उत्तर प्रदेश, पंजाब, पश्चिम बंगाल और ओडिशा समेत कई राज्य गंभीर बिजली कटौती से जूझ रहे हैं. राष्ट्रीय राजधानी के कुछ हिस्सों में भी लगातार बिजली कटौती देखी गई है. हालांकि अधिकारियों ने इसके लिए ट्रिपिंग, केबल और ट्रांसफार्मर की खराबी और स्थानीय स्तर पर अन्य मुद्दों को ज़िम्मेदार ठहराया है.
इस साल मई में बेमौसम बारिश की वजह से तापमान कुछ दिन सामान्य से नीचे रहा लेकिन जून माह की शुरुआत से तापमान बढ़ गया है. इस वजह से बिजली की मांग में ज़बरदस्त रूप से बढ़ोतरी हुई है. आंकड़े बताते हैं कि नौ जून को बिजली की मांग 223 गीगावाट (GW) के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई जबकि पिछले साल बिजली की रिकॉर्ड मांग 216 गीगावाट थी.
ग्रिड कंट्रोलर ऑफ इंडिया के ताजा आंकड़ों से पता चलता है कि 13 जून को अधिकतम बिजली की मांग बढ़कर 218.67 गीगावाट हो गई. ये मांग दोपहर 2.45 पर दर्ज की गई थी. दिल्ली में ही बिजली की मांग मंगलवार दोपहर को 7 गीगावाट यानी 7098 मेगावाट के निशान को पार कर गई थी. उम्मीद की जा रही है कि इस साल बिजली की मांग 230 गीगावाट के स्तर को छू लेगी. इस वजह देश में बिजली कटौती का संकट और बढ़ेगा.
विशेषज्ञों ने कहा कि मानसून आने के बाद आने वाले दिनों में देश में बिजली की मांग में कमी आ सकती है. दक्षिणी राज्यों में जहां बारिश शुरू हो गई है वहां मांग पहले से ही कम हो रही है. हालांकि वर्तमान में उत्तरी राज्यों में बिजली कटौती एक बड़ी समस्या है. इक्रा लिमिटेड में कॉर्पोरेट रेटिंग के उपाध्यक्ष और सेक्टर प्रमुख विक्रम वी ने मीडिया रिपोर्ट्स में कहा कि कोयले की उपलब्धता इस साल कोई मुद्दा नहीं है. पावर प्लांट के पास औसतन 13 दिनों का स्टॉक होता है. हालांकि कुछ राज्यों में बिजली पैदा करने वाली कंपनियां (जेनकोस) के पास राष्ट्रीय औसत की तुलना में कम कोयला हो सकता है. ऐसे में बिजली संकट और गहरा सकता है.
केंद्र सरकार ने इस साल घरेलू और आयातित कोयले की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने की कोशिश की है ताकि पिछले साल की तरह बिजली संकट की स्थिति न बने. बिजली की बढ़ती मांग को देखते हुए सोमवार को बिजली मंत्रालय ने सभी आयातित कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को सितंबर तक पूरी क्षमता से काम करने का निर्देश दिया है.