भारत भले ही विकास के मार्ग पर बढ़ रहा हो लेकिन पूरी तरह से इसे विकसित होने में अभी लंबा सफर तय करना पड़ सकता है. पीपल रिसर्च ऑन इंडियाज़ कंज्यूमर इकोनॉमी (PRICE) की ओर से कराए गए सर्वे से ये संकेत मिल रहे हैं कि आने वाले दिनों में देश में अमीर और गरीब के बीच की खाई और बढ़ेगी क्योंकि दोनों वर्गों की आय में काफी असमानताएं हैं.
रिपोर्ट के अनुसार भारत साल 2031 तक 7.1 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लिए तैयार है. वहीं साल 2047 तक मध्यम वर्ग के लोगों की संख्या एक अरब से अधिक होने वाली है. हैरानी वाली बात यह है कि देश के अमीर लोगों का तिहाई व चौथाई हिस्सा सिर्फ 8 भारतीय राज्यों में सिमटा हुआ है. इसमें महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, पंजाब और कर्नाटक शामिल हैं.
सरकारी थिंक टैंक नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष एवं प्रख्यात अर्थशास्त्री अरविंद पनगढ़िया का कहना है कि भारत में मध्यम वर्ग का तेजी से बढ़ना विकास का केंद्र रहेगा, लेकिन 1.25 लाख रुपए सालाना से कम आय वर्ग को आगे बढ़ाने के लिए गरीबों का संघर्ष जारी रहेगा. ऐसे में भारत का विकसित अर्थव्यवस्था बनने का सपना अभी कोसों को दूर हैं.
बचत में आगे मध्यम वर्ग
भारत की जीडीपी में मध्यम वर्ग सबसे बड़े योगदानकर्ता के रूप में उभरा है. आंकड़ों के अनुसार
देश के मध्यम वर्ग के करीब 52% लोग बचत करते हैं, जबकि उनकी आय (50%) और खर्च (48%) है. सर्वे में पता चला है कि भारत का मध्यम वर्ग ऐसे लोगों की तुलना में 13 गुना अधिक कमाता है जो 1.25 लाख रुपए प्रति वर्ष से कम कमाते हैं, वहीं अमीर लोग इनसे 56 गुना ज्यादा कमाते हैं.
गरीबों पर बढ़ रहा कर्ज का बोझ
एक तरफ मध्यम वर्ग के लोग जहां बचत में लगे हुए हैं, वहीं देश में कम आय वाले परिवार कर्ज में डूबे हुए हैं. सर्वे में सामने आया कि करीब 33% औपचारिक उधारकर्ताओं (जिन्होंने बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों से लोन लिया है) और 31% अनौपचारिक उधारकर्ताओं का कहना है कि उन पर कर्ज का बोझ इतना ज्यादा है कि उन्हें यकीन नहीं है कि वे कभी कर्ज मुक्त हों पाएंगे या नहीं.