इस साल के अंत में पांच राज्यों- मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलेंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनाव होने हैं. अब ऐसे में सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी होती दिख रही है. ये चुनौती है अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फर्टीलाइजर्स और उनके कच्चे माल की कीमतों में आई तेजी.
पिछले महीने भारत में आयात किए गए यूरिया की कीमतें बढ़तक 318-320 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 395-410 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गईं. जबकि जून के अंत में ये कीमतें 285-290 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई थीं.
इसी तरह से DAP की कीमतें जुलाई के मध्य में 435-440 डॉलर प्रति टन पर थीं वो दो हफ्ते पहले 480 डॉलर पर पहुंच गई और अब 560 डॉलर प्रतिटन पर आ गई हैं.
अब अमोनिया की बात करें तो इसका इस्तेमाल घरेलू DAP प्रोडक्शन में किया जाता है. पिछले एक से डेढ़ महीने में इसकी कीमतें 300-310 डॉलर से 400-405 डॉलर प्रतिटन पर पहुंच चुकी हैं.
इंडस्ट्री से जुड़े एक शख्स ने कहा कि पिछले साल फरवरी में यूक्रेन पर हुए रूस के हमले के बाद से ही कीमतों में तेजी का रुख है.
जुलाई 2022 में आयातित DAP के दाम 950-960 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गए थे. नवंबर से जनवरी (2021-22) के बीच यूरिया की कीमतें 900 से 1000 डॉलर प्रति टन पर थीं. और ये तो जंग से पहले ही बात है. वहीं अप्रैल 2022 में अमोनिया के दाम 1575 डॉलर थे और जुलाई से सितंबर 2022 के बीच फॉसफॉरिक एसिड की कीमतें 1715 डॉलर पर थीं.
इंडस्ट्री सूत्र के मुताबिक अगर मौजूदा रुझान जारी रहता है तो, ग्लोबल सप्लायर्स के साथ तय किए गए 850 डॉलर प्रति टन के आयात मूल्य को भी आने वाली तिमाही में फिर से रीसेट करना होगा.
फिलहाल पोटाश के दामों में नरमी है और ये 319 डॉलर प्रति टन के भाव पर हैं. मार्च में इसका दाम 590 डॉलर और अप्रैल जून में 422 डॉलर पर था. अभी रूस अंतरराष्ट्रीय पोटाश मार्केट में अच्छी आपूर्ति दे रहा है.
अब जब उर्वरकों के दामों में तेजी की स्थिति है, भारत सरकार के लिए थोड़ा परेशानी हो सकती है क्योंकि 2023-24 के बजट में उर्वरक सब्सिडी के लिए 175000 करोड़ रुपयों का प्रावधान किया गया था. अप्रैल-जून तिमाही के दौरान 45112 करोड़ से अधिक खर्च किए गए हैं.
ऐसा अनुमान है कि 2024 के अप्रैल-मई में देश में आम चुनाव होने हैं. ऐसे में सरकार को उर्वरक सब्सिडी के लिए और अधिक पैसे खर्च करने पड़ सकते हैं. 2022-23 में ही सरकार को इसके लिए 251339 करोड़ से अधिक खर्च करने पड़े थे.
सरकार ने नवंबर दिसंबर में पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए अगले चार महीनों में करीब 60 लाख टन डीएपी आयात का लक्ष्य रखा है. यही वक्त रबी फसलों की बुआई का भी है जिसमें गेहूं, सरसों, जौ, चना, मसूर, आलू, लहसुन और जीरा शामिल हैं. जिन राज्यों में ये सब उगाया जाता है, साल के अंत में उन्हीं प्रमुख राज्यों में चुनाव भी हैं.
इंडस्ट्री से जुड़े शख्स ने कहा कि ऐसे में सरकार ये नहीं चाहेगी कि उर्वरकों की कोई कमी हो या फिर किसानों को लंबी लाइनों में घंटों लगना पड़े. ऐसे में यदि जरूरी हुआ तो सरकार आयात और सब्सिडी पर अधिक खर्च कर सकती है.