संभव है कि जल्द ही आपको अपने पसंदीदा जूते-चप्पल ऑनलाइन या दुकानों पर न मिलें. अगर इंपोर्टेड फुटवियर के शौकीन हैं तो हाल में नियमों में हुए बदलावों के कारण इनका स्टॉक समाप्त हो रहा है और सप्लाई उस हिसाब से है नहीं. अरमानी एक्सचेंज, सुपरड्राई, केल्विन क्लेन, टॉमी हिलफिगर और यूएस पोलो असन के पास जूतों का लोकल स्टॉक खत्म हो रहा है. सरकार चाहती है कि जिन कारखानों में ये बने हैं उन्हें भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) द्वारा प्रमाणित किया जाए. ये प्लांट ज्यादातर चीन, वियतनाम, थाईलैंड और मलेशिया में स्थित हैं. और BIS ने किसी भी विदेशी फुटवियर कारखाने को प्रमाणित नहीं किया है. स्केचर्स के वैश्विक CFO जॉन वंदेमोर ने कहा कि भारत के नियामक माहौल ने इंडस्ट्री को प्रभावित किया है क्योंकि भारत में उत्पादन क्षमता सीमित है.
इंडस्ट्री के अधिकारियों ने कहा कि कई ब्रांड अपने जूते ऑनलाइन और ऑफलाइन बेचने के लिए मजबूर हो गए हैं या पुराने स्टॉक के साथ बहुत छोटी रेंज बेच रहे हैं. BIS क्वालिटी कंट्रोल ऑर्डर (QCO) के अनुसार, फाइनल प्रोडक्ट और रबर, पीवीसी या पॉलीयूरेथेन सोल्स और हाई हील जैसे कॉम्पोनेन्ट्ंस बनाने वाले कारखानों के लिए सर्टिफिकेशन अनिवार्य है.
कब हुआ QCO लागू?
QCO को पिछले साल जुलाई में चमड़े के जूतों के लिए लागू किया गया था. जबकि स्पोर्ट्स शूज, सैंडल, मोज़री और चप्पल के लिए इसे इस साल जनवरी से लागू किया जाना था. बाद में उस समय सीमा को मार्च से अगस्त तक बढ़ा दिया गया था. लेकिन कंपनियों का कहना है कि इससे सप्लाई में रुकावट होती है. विशेषज्ञों का कहना है कि उन्हें यह भी डर है कि सामान उनके स्टोर तक समय पर नहीं पहुंच पाएगा क्योंकि उत्पादन से लेकर कस्टम क्लीयरेंस तक 5-6 महीने लग जाते हैं.
घटेगी लागत
लिबर्टी शूज़ के डायरेक्टर ऑफ रिटेल निदेशक अनुपम बंसल ने कहा, नियम लागू करने के शुरुआती चरण में हमेशा चुनौतियां होंगी क्योंकि इससे सप्लाई चेन में बाधा आती है. हालांकि इन मुद्दों का समाधान हो जाएगा. इससे भारतीय फुटवियर इंडस्ट्री विकसित होगी. लोगों के पास भारत में ज्यादा प्रभावी उत्पादन होगा जिससे उनकी सप्लाई चेन कॉस्ट कम हो जाएगी.
किन्हें हो रही मुश्किल
घरेलू फुटवियर निर्माता एजिलिटास स्पोर्ट्स के सीईओ अभिषेक गांगुली ने कहा कि ग्लोबल ब्रैंड्स को मौजूदा माहौल में भारत के लिए एक अलग सप्लाई चेन स्ट्रैटजी बनाने की जरूरत है,नहीं तो वे काम नहीं कर पाएंगे. उन्होंने कहा, बड़े ग्लोबल स्पोर्ट्स शू ब्रांड पहले ही मेक-इन-इंडिया रणनीति तैयार कर चुके हैं और अब भारत के पास महंगी रेंज का भी निर्माण करने की क्षमता है. सिर्फ उन्हीं ब्रैंड को मुश्किल हो रही है जिनके लिए जूतों का कारोबार उनके बिजनेस का एक छोटा सा हिस्सा हैं.
कारखानों का दौरा जरूरी
विश्लेषकों के अनुसार, BIS अधिकारियों को मंजूरी देने के लिए विदेशी कारखानों का दौरा करना होगा, लेकिन चीन में प्लांटों या चीनी स्वामित्व वाली इकाइयों के मामले में ऐसा नहीं हो सकता है क्योंकि सरकार सीमा तनाव की वजह से उस देश से आयात कम करना चाहती है.
घट गया कारोबार
एक प्रमुख फैशन कंपनी के प्रमुख ने कहा कि हमने बिजनेस खो दिया है और लगातार पिछड़ रहे हैं. पिछले वित्त वर्ष में जूते की बिक्री में साल-दर-साल गिरावट आई है, जब यह सबसे तेजी से बढ़ती कैटेगरी में से एक थी. हम चीन और वियतनाम में अपने कारखानों से आयात नहीं कर सकते हैं क्योंकि उन्हें अभी तक प्रमाणित नहीं किया गया है.