भारत की तरफ से चावल के निर्यात पर लगाई गई पाबंदियों की वजह से चावल का निर्यात बाजार भारत के हाथ से लगातार निकलता जा रहा है और दूसरे चावल निर्यातक देश इस मार्केट में अपनी पैठ बना रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र की संस्था फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक वैश्विक बाजार में भारत की तरफ से रोकी गई सप्लाई की भरपाई थाईलैंड, पाकिस्तान, म्यांमार और कंबोडिया कर सकते हैं.
6 फीसद बढ़ सकता है एशियाई देशों का निर्यात
आंकड़ों के मुताबिक इस साल एशियाई देशों का चावल निर्यात करीब 6 फीसद बढ़कर 5.54 करोड़ टन पहुंच सकता है. पिछले साल तक भारत दुनिया में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक था, लेकिन निर्यात पर पाबंदियों की वजह से एक्सपोर्ट मार्केट में भारत का प्रभुत्व कम हुआ है. फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि विपणन सत्र 2023-24 (सितंबर-अगस्त) के आखिर में वैश्विक मार्केट में चावल का स्टॉक सालाना आधार पर 1.5 फीसद की बढ़ोतरी के साथ 198.9 मिलियन टन के स्तर पर पहुंचने का अनुमान है.
चावल के निर्यात पर क्या हैं पाबंदियां?
बता दें कि सरकार ने गैर-बासमती सफेद चावल के शिपमेंट पर 20 जुलाई 2023 से प्रतिबंध लगा दिया है. साथ ही सेला (Parboiled) चावल के निर्यात पर लगी 20 फीसद एक्सपोर्ट टैक्स की शर्त को 31 मार्च 2024 तक बढ़ा दिया है, पहले यह शर्त 16 अक्टूबर 2023 तक लागू थी. इसके अलावा सरकार ने हाल ही में बासमती चावल के न्यूनतम निर्यात मूल्य यानी MEP को घटाकर 950 डॉलर प्रति टन कर दिया है. बता दें कि सितंबर 2022 से सरकार ने चावल के निर्यात पर पाबंदियों की शुरुआत की थी और शुरुआत टूटे हुए चावल (ब्रोकेन राइस) के निर्यात पर रोक से हुई थी.
खरीफ चावल उत्पादन कम होने का अनुमान
सरकार ने अनियमित बरसात की वजह से धान की फसल के प्रभावित होने के मद्देनजर देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए निर्यात पर पाबंदियों जैसे कदम उठाए हैं. कृषि मंत्रालय के मुताबिक देश में 106.31 मिलियन टन चावल उत्पादन का अनुमान है, जबकि पिछले साल खरीफ चावल का उत्पादन 110 मिलियन टन था. सरकार ने 112 लाख टन खरीफ चावल उत्पादन का लक्ष्य तय किया था.