अगले साल होने वाले आम चुनावों से पहले अनाज की कीमतों में अस्थिरता से चिंतित होकर भारत सरकार ने अधिकांश प्रकार के चावल और गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया हुआ है या टैक्स लगा दिया है. भारत सरकार के द्वारा चावल की महंगाई पर लगाम लगाने के लिए उठाए गए कदमों से वैश्विक चावल बाजार के सामने संकट खड़ा हो गया है. बता दें कि भारत में चावल की कुछ किस्मों पर 20 फीसद निर्यात शुल्क है, बासमती चावल पर न्यूनतम निर्यात मूल्य लागू है और कुछ अन्य चावल के निर्यात पर रोक है.
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन का अनुमान है कि 2022 की तुलना में इस साल सितंबर में चावल का भाव 28 फीसद ज्यादा था. सितंबर की शुरुआत में चावल का भाव 15 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया था. बता दें कि दुनियाभर में प्रतिस्पर्धी निर्यात प्रतिबंधों की वजह से 2008 कि पहली तिमाही में भी भाव 15 साल के ऊपरी स्तर पर पहुंच गया था. भारत ने उस समय भी चावल के निर्यात पर प्रतिबंध जैसे कदम उठाए थे और उस दौरान भी सरकार अभी की तरह आम चुनाव से पहले महंगाई को लेकर चिंतित थी.
चावल की महंगाई पर लगाम के लिए उठाए गए कदम
सरकार ने हाल ही में बासमती चावल के न्यूनतम निर्यात मूल्य यानी MEP को घटाकर 950 डॉलर प्रति टन कर दिया है. इसके अलावा गैर-बासमती सफेद चावल के शिपमेंट पर 20 जुलाई 2023 से प्रतिबंध लगा दिया गया था. केंद्र सरकार ने सेला (Parboiled) चावल के निर्यात पर लगी 20 फीसद एक्सपोर्ट टैक्स की शर्त को 31 मार्च 2024 तक बढ़ा दिया है, पहले यह शर्त 16 अक्टूबर 2023 तक लागू थी.