केंद्र सरकार चावल निर्यात में कुछ ढील दे सकती है. सरकार गैर बासमती चावल की प्रीमियम वैरायटी कालानमक के निर्यात पर लगे प्रतिबंध को हटा सकती है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक खाद्य मंत्रालयके प्रस्ताव को अंतर मंत्रालयी समिति की ओर से मंजूरी मिल चुकी है और 15 मार्च तक इसको लेकर अधिसूचना जारी होने की संभावना है. इसके साथ ही केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रमाणित होने के बाद तमिलनाडु में एक बंदरगाह के जरिए कालानमक चावल के निर्यात की अनुमति देने का फैसला लिया है.
गौरतलब है कि उचित दाम नहीं मिलने की वजह से किसानों में व्याप्त असंतोष के बीच उत्तर प्रदेश सरकार ने निर्यात पर लगी पाबंदियों में छूट की मांग के बाद खाद्य मंत्रालय की ओर से इस मुद्दे को उठाया गया था. उत्तर प्रदेश सरकार ने आकलन किया है कि अगर कालानमक चावल को प्रतिबंध से छूट देने का फैसला लिया जाता है तो अगले कुछ महीने में 50 टन कालानमक चावल का निर्यात किया जा सकता है. कारोबारियों के मुताबिक 2021-22 में 21 टन कालानमक चावल का निर्यात हुआ था.
उत्तर प्रदेश के 11 जिलों बहराइच, बलरामपुर, बस्ती, देवरिया, गोंडा, गोरखपुर, कुशीनगर, महाराजगंज, संतकबीरनगर, श्रावस्ती और सिद्धार्थनगर में कालानमक धान की बुआई की जाती है. कालानमक चावल को अपनी खासियत की वजह से जीआई टैग भी मिला हुआ है. केंद्र सरकार की ओर से साल 2022 में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान यानी IARI द्वारा विकसित की गई पूसा नरेंद्र कालानमक 1638 और पूसा नरेंद्र कालानमक 1652 किस्में जारी की गई हैं. बता दें कि निर्यात पर प्रतिबंधों की वजह से चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जनवरी की अवधि के दौरान बासमती और गैर-बासमती चावल का निर्यात एक साल पहले की तुलना में 27 फीसद घटकर 13.23 मिलियन टन दर्ज किया गया है. हालांकि गैर बासमती चावल के निर्यात में गिरावट ज्यादा है जो कि 37 फीसद गिरकर 9.13 मिलियन टन रह गया है.
चावल के निर्यात पर पाबंदियां
गौरतलब है कि सरकार ने गैर-बासमती सफेद चावल के शिपमेंट पर 20 जुलाई 2023 से प्रतिबंध लगा दिया है. साथ ही सेला (Parboiled) चावल के निर्यात पर लगी 20 फीसद एक्सपोर्ट टैक्स की शर्त को 31 मार्च 2024 तक बढ़ा दिया है, पहले यह शर्त 16 अक्टूबर 2023 तक लागू थी. इसके अलावा सरकार ने हाल ही में बासमती चावल के न्यूनतम निर्यात मूल्य यानी MEP को घटाकर 950 डॉलर प्रति टन कर दिया है. बता दें कि सितंबर 2022 से सरकार ने चावल के निर्यात पर पाबंदियों की शुरुआत की थी और शुरुआत टूटे हुए चावल (ब्रोकेन राइस) के निर्यात पर रोक से हुई थी.