टीम इंग्लैड की नैट सिवर ने पूरी कोशिश की कि बाउंड्री बचाई जा सके, लेकिन मिताली राज का बल्ला ऐसे चला कि गेंद चौके के लिए ही निकली. इस चौके के साथ ही 38 वर्षीय मिताली राज ने शार्लेट एडवर्ड्स का 10,273 रनों के रिकॉर्ड को तोड़कर इतिहास रचा. मिताली ने अब अंतरराष्ट्रीय महिला क्रिकेट में सबसे ज्यादा रन बनाने वाली खिलाड़ी का खिताब हासिल कर लिया है. ये एक ऐसे देश के लिए बड़ी उपलब्धि है जहां क्रिकेट सिर्फ एक खेल नहीं, धर्म है.
लेकिन, भारत के इस क्रिकेट प्रेम में कई खामियां हैं – खास तौर पर जब बात जेंडर की हो. जहां एक ओर पुरुष टीम के खिलाड़ियों को भगवान की उपमा दे दी जाती है वहीं दूसरी ओर महिला क्रिकेट टीम की उपलब्धियों के बारे में लोग बेखर रहते हैं.
ये भेदभाव स्पॉन्सर्स, फैन्स, ब्रॉडकास्टर्स और BCCI सभी की ओर से दिखाई देता है. यही वजह है कि महिला टीम की बड़ी जीत भी कहीं खो सी जाती है. खेद की बात ये है कि जब देशभर में महिला सशक्तिकरण की बात हो रही हो तब कम से कम इन खिलाड़ियों को उनकी मेहनत के बराबर की सराहना और प्रोत्साहन भी मिलना चाहिए.
पुरुष क्रिकेट टीम में ग्रेड-ए कॉन्ट्रैक्ट वाले खिलाड़ियों को 7 करोड़ रुपये मिलते हैं जबकि ग्रेड-सी वालों को 1 करोड़ रुपये. अब इसकी तुलना महिला क्रिकेट टीम से करें. यहां सबसे ऊंचे कॉन्ट्रैक्ट वाली खिलाड़ियों को भी 50 लाख रुपये ही मिलते हैं. ये साफ दर्शाता है कि समानता की बात काल्पनिक ही है. बराबरी का महत्व दने की उम्मीद स्पॉन्सर्स और ब्रॉडकास्टर्स से कैसे की जाए जब क्रिकेट बोर्ड ही दोनों टीमों की कमाई में इतना बड़ा फासला साफ दिखाए.
बोर्ड को चाहिए कि वे वुमेन टीम की जीत और उपलब्धियों को बेहतर तरीके से सेलिब्रेट करे ताकि स्पॉन्सर्स के साथ उन्हें बेहतर डील मिल सके. ब्रॉडकास्टर्स और क्रिकेट संस्थाओं को एक साथ मिलकर काम करना होगा ताकि इतिहास रचने वाले ऐसे खिलाड़ियों की उपल्बधियों पर और फीचर्स बनाए जा सकें और उनकी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए ज्यादा से ज्यादा इंटरव्यू हो सकें.
सरकार की जिम्मेदारी भी सिर्फ प्रोफार्मा के तौर पर महिला क्रिकेट टीम को बधाई देने या उन्हें सम्मानित करने तक सीमित नहीं है. अगर ऐसा ही रहा तो विराट कोहली के चौके-छक्के अखबारों के फ्रंट पेज पर आते रहेंगे और लोग यूट्यूब के इनकॉग्निटो मोड पर छिपकर स्मृति मंधाना को ‘हॉट’ टैग के साथ सर्च करते रहेंगे.