भारतीय साहित्य में बारिश का जैसे वर्णन है ठीक वैसे ही हकीकत में ये खेती और अर्थव्यवस्था के लिए अहमियत रखती है. महाकवि कालीदास से लेकर रविंद्रनाथ टैगोर तक सभी ने अपनी कल्पनाओं के जरिए बारिश का चित्रण किया है.
दूसरी ओर, हकीकत की दुनिया में अर्थशास्त्री और नीति निर्माता भी मॉनसून (Monsoon) का उतनी ही बेसब्री से इंतजार करते हैं और कामना करते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए अच्छी बारिश हो.
हालांकि, इस साल अच्छी बारिश को लेकर और ज्यादा चिंता है.
कोविड महामारी की दूसरी लहर ने देश की अर्थव्यवस्था को धराशायी कर दिया है. इसके चलते खपत में गिरावट आई है और अर्थशास्त्रियों को लग रहा है कि अर्थव्यवस्था में सुस्त रिकवरी की आशंका दिख रही है.
रूरल डिमांड
ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर आने वाला मॉनसून (Monsoon) बड़ा असर डालने वाला साबित होगा.
हालांकि, कृषि की देश की GDP में करीब 17% हिस्सेदारी है, लेकिन खेती में बड़े लेवल पर श्रमिकों की जरूरत होती है और इसमें देश के कुल वर्कफोर्स के करीब 40% हिस्सा लगा हुआ है.
खाद्य महंगाई
देश की करीब आधी आबादी खरीफ फसलों पर टिकी होती है. ऐसे में मॉनसून (Monsoon) में देरी या कम बारिश से खाद्यान्य सप्लाई में दिक्कतें आती हैं और इससे खाने-पीने की चीजों की महंगाई बढ़ सकती है.
खाने-पीने की चीजों का कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स में 48.24 फीसदी वेटेज है. ऐसे में खाद्य महंगाई में तेजी से आरबीआई को एक सख्त मॉनेटरी पॉलिसी लानी पड़ सकती है और इसके चलते इंडस्ट्री के लिए पूंजी की लागत बढ़ सकती है.
सामान्य मॉनसून
सामान्य मॉनसून (Monsoon) खाद्य उत्पादन को बढ़ाता है और इससे किसानों और ग्रामीण आबादी के हाथ ज्यादा पैसा आता है. इस आमदनी का इस्तेमाल FMCG और दूसरे आइटमों की खरीदारी में इस्तेमाल होता है.
दूसरी ओर, कमजोर मॉनसून (Monsoon) से सभी आइटमों की डिमांड घटती है और इसका पूरी अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ता है.
अच्छे मॉनसून से मनरेगा जैसी स्कीमों के लिए सरकार के किए जाने वाले आवंटन पर भी दबाव घटेगा.
मॉनसून के महीने
औसतन देश के 70 फीसदी से ज्यादा हिस्से पर जून से सितंबर के दौरान मॉनसून (Monsoon) की बारिश होती है. मॉनसून पर निर्भरता मोटे तौर पर इस वजह से है क्योंकि देश में ज्यादातर लोगों के पास सिंचाई की अच्छी सुविधाएं नहीं हैं.
देश की खेतिहर जमीन का आधे से ज्यादा हिस्सा मॉनसून (Monsoon) की बारिश पर निर्भर है.
खाने की टेबल तक
खेत से लेकर खाने की टेबल तक एक बड़ी चेन जुड़ी होती है. ऐसे में कमजोर मॉनसून (Monsoon) पूरी वैल्यू चेन को बिगाड़ सकता है. इससे पूरी आर्थिक एक्टिविटी गड़बड़ा जाती है.
हर साल IMD (भारतीय मौसम विभाग) मॉनसून (Monsoon) को लेकर अपने अनुमान जारी करता है. पॉलिसीमेकर्स, अर्थशास्त्री, सरकार, कृषि जानकार और किसानों समेत एक बड़ा तबका इन अनुमानों का बेसब्री से इंतजार करता है.
क्या होता है सामान्य मॉनसून?
IMD देश में गुजरे 50 वर्षों की औसत बारिश को देखता है. इस साल 1951 से 2010 तक की अवधि को लिया गया है.
अगर इस साल औसत से 96 फीसदी से 104 फीसदी के बीच बारिश होती है तो इसे सामान्य मॉनसून (Monsoon) कहा जाएगा.
गुजरे दो वर्षों में देश में औसत से 110 फीसदी और 109 फीसदी बारिश हुई और इसे सामान्य से ज्यादा बारिश कहा गया.