इस साल फरवरी में जब रूस और यूक्रेन भिड़े तो दुनियाभर में बेचैनी फैल गई . कोविड के जख्म अभी भरे भी न थे. ऐसे में जंग का खामियाजा दुनिया को डरा रहा था . इस तमाम उलझन के बीच भारत को इस आपदा में एक बड़ा मौका नजर आया. बात थी गेहूं की . यूक्रेन जंग से तबाह हुआ तो दुनियाभर में भारतीय गेहूं के एक्सपोर्ट का बड़ा मौका पैदा हो गया.
दरअसल, यूक्रेन दुनिया में गेहूं का बड़ा सप्लायर रहा है . लेकिन, किसानों और एक्सपोर्टर्स की तो आंखों में कमाई की चमक दिख रही है . लेकिन, सरकार बेचैन है. अब इसे विडंबना ही कहा जाए . क्योंकि दुनियाभर से ऑर्डर हैं, लेकिन देश में इस साल गेहूं की पैदावार ही कम होती दिख रही है .
सरकार बीते दो-तीन महीने से कोशिश कर रही थी कि यूक्रेन की पस्त हालत का फायदा गेहूं एक्सपोर्ट के तौर पर उठाया जाए . लेकिन, अब ऐसा दिख रहा है कि शायद ये मुमकिन न हो. बात दिमाग में ये भी आती है कि हर साल बंपर पैदावार वाले भारत में इस दफा गेहूं की पैदावार आखिर घट क्यों गई?
तो इसकी पहली वजह है मौसम की मार . मार्च में कम बारिश हुई और इसने किसानों के माथे पर पसीना ला दिया . खराब मौसम से गेहूं की पैदावार और क्वॉलिटी दोनों पर बुरा असर पड़ा है .
सरकार के लिए परेशानी इस बात की भी है कि उसके गोदामों में गेहूं का स्टॉक कम है . यानी अब अगले साल के लिए भी एक तय लेवल पर स्टॉक पर पहुंचने की दिक्कत हो सकती है . माने व्हीट एक्सपोर्ट के मोर्चे पर सरकार के हाथ तंग रहने वाले हैं . इस दफा मंडियों में गेहूं कम आ रहा है .
दूसरा, किसान सरकार की बजाय निजी आढ़तियों को गेहूं बेच रहे हैं ताकि थोड़ा सा ज्यादा दाम मिल जाए . बरसों बाद ऐसा हो रहा है कि किसानों को गेहूं पर MSP से ज्यादा दाम आढ़तियों से मिल रहा है .
कम आमदनी के बुरे दौर से गुजरने के बाद बमुश्किल किसानों के चेहरे पर चमक लौटती दिखी है . अब किसानों की खुशी ने सरकारी गोदामों को सूना कर दिया है . कभी FCI के जिन गेहूं खरीद केंद्रों पर मार मची रहती थी वहां अब सन्नाटा पसरा है .
आंकड़े भी इस बात की तस्दीक करते हैं . खरीदारी सीजन के शुरुआती 24 दिन में सिर्फ 136.93 लाख टन गेहूं ही सरकारी एजेंसियां खरीद पाई हैं . पिछले साल इस दौरान 212.67 लाख टन की खरीद हो चुकी थी .
अब गेहूं एक्सपोर्ट के मसले पर सरकार, निजी एक्सपोर्टरों से पिछड़ती दिख रही है . गेहूं एक्सपोर्ट इस दफा सरकार के लिए कितना अहम है इसका अंदाजा पीएम नरेंद्र मोदी के बयान से भी लगता है . मोदी ने कहा कि WTO की मंजूरी मिली तो भारत अपने सरकारी भंडार से दुनिया की गेहूं की जरूरतें पूरी करने को तैयार है .
दरअसल, सरकार के गेहूं एक्सपोर्ट करने में एक इंटरनेशनल रूल का पचड़ा रहा है और भारत उसी को बायपास करने की फिराक में है .
WTO का रूल कहता है कि MSP पर खरीदे गए अनाज को एक्सपोर्ट नहीं किया जा सकता . हां, अगर खरीद बाजार भाव पर हुई हो तो ऐसा किया जा सकता है . यही वजह है कि गेहूं एक्सपोर्ट की ये जंग निजी एक्सपोर्टरों के पक्ष में जाती दिख रही है और यही वजह है कि सरकार WTO के रूल में छूट चाहती है . गेहूं खरीद के टारगेट अब सरकार के गेहूं खरीद के टारगेट भी देख लेते हैं तो पिछले साल बंपर फसल थी और सरकार ने किसानों से रिकॉर्ड 433.44 लाख टन गेहूं खरीदा था. इस साल गेहूं खरीद का टारगेट 444 लाख टन रखा गया है .
सरकार के पास पिछले साल का 190 लाख टन का कैरी फॉरवर्ड स्टॉक है . लेकिन, कम खरीदारी का मतलब है कि अगले साल के लिए कैरी फॉरवर्ड स्टॉक कम हो सकता है . यानी सरकार के लिए गेहूं एक्सपोर्ट की गुंजाइश कम ही नजर आती है. सरकार की एक और उलझन भी है . वो है मुफ्त राशन बांटने की स्कीम.
कोविड के दौर में शुरू हुई स्कीम और पीडीएस में सरकार को हर महीने करीब 20 लाख टन गेहूं की जरूरत पड़ती है. सरकार सितंबर तक गरीबों को फ्री राशन देगी . अब एक तरफ कल्याणकारी राज्य की व्यवस्था है और दूसरी तरफ कमाई का मौका . मिलेगी तो एक ही चीज .
कम उपज और गोदामों में कम गेहूं के अलावा एक और मसला भी गेहूं एक्सपोर्ट की राह में बड़े गड्ढे की तरह है . ये है क्वॉलिटी का मसला . कई देशों में क्वॉलिटी के नियम बेहद सख्त हैं .
हां, पिछले फिस्कल में भारत रिकॉर्ड 78 लाख टन गेहूं निर्यात करने में कामयाब हुआ . इसी के दम पर इस वित्तवर्ष में 100 लाख टन निर्यात का लक्ष्य रखा गया है . लेकिन यह निर्यात लक्ष्य तभी पूरा होगा . जब घरेलू सप्लाई पर्याप्त रहेगी .
यानी सरकार के लिए इस वक्त तलवार की धार पर चलने जैसा मामला है . जहां उसकी नजर तो एक्सपोर्ट के मोर्चे पर मिले बड़े मौके को भुनाने की है और दूसरी तरफ उसे घरेलू जरूरतें भी देखनी हैं.
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