मौजूदा वक्त में ज्यादातर घर होम लोन के सहारे खरीदे जाते हैं. होम लोन बड़े साइज का लोन है जिसकी EMI चुकाने में सैलरी का बड़ा हिस्सा निकल जाता है. लंबी अवधि और मोटी रकम होने की वजह से कई बार लोगों को लोन चुकाने में दिक्कत होती है. इस सिचुएशन में होम लोन लेने वाले के पास दो ऑप्शंस होते हैं, होम लोन रिफाइनेंसिंग और होम लोन रिस्ट्रक्चरिंग. इनके इस्तेमाल से पहले इनके बारे में समझना बेहद जरूरी है.
लोन रिफाइनेंसिंग में क्या होता है?
लोन रिफाइनेंसिंग में मौजूदा होम लोन को नए होम लोन से बदला जाता है. यानी पुराना लोन चुकाने के लिए नया लोन लिया जाता है. रिफाइनेंसिंग का इस्तेमाल तब किया जाता है जब नए लोन की शर्तें मौजूदा लोन से बेहतर होती हैं. नए लोन से मौजूदा लोन चुकता हो जाता है और नए लोन की किस्तें चालू हो जाती हैं. इसे होम लोन बैलेंस ट्रांसफर के नाम से भी जाना जाता है.
नए लोन के लिए प्रोसेसिंग फीस देनी होती है. ये आमतौर पर लोन अमाउंट का एक फिक्स पर्सेंटेज होता है. बैंक प्रोसेसिंग फीस के रूप में मिनिमम और मैक्सिम अमाउंट भी रखते हैं. उदाहरण के लिए SBI 0.35 फीसदी, HDFC बैंक 0.50 फीसदी तक या 3000 रुपए, दोनों में जो ज्यादा हो. बैंक ऑफ बड़ौदा 0.40 फीसदी तक या अधिकतम 15,000 रुपए. ICICI बैंक 0.50 से 2 फीसदी या 3000 रुपए, दोनों में जो ज्यादा हो. प्रोसेसिंग फीस के रूप में चार्ज कर रहे हैं. इसके ऊपर 18 फीसदी GST भी है.
होम लोन को प्रभावित करने वाले कारक
होम लोन को एक से दूसरे बैंक में ट्रांसफर करते समय विभिन्न कारकों पर सावधानीपूर्वक गौर करना चाहिए. कुछ अहम कारक इस तरह हैं. पहला- जब आपने लोन लिया हो, उस समय ब्याज दरें ज्यादा हो सकती हैं. उसके बाद से ब्याज दरें गिरकर कम हो गईं. ऐसे में आप दूसरे बैंक से बात करके लोन रिफाइनेंस करा सकते हैं. बैंक मौजूदा दरों को ध्यान में रखते हुए कम रेट ऑफर कर सकता है जिससे आपकी EMI घट जाएगी.
दूसरा- होम लोन लेते समय अगर क्रेडिट स्कोर अच्छा यानी 700-750 से ऊपर नहीं होता है तो बैंक ज्यादा ब्याज दर लगाते हैं. लोन लेने के बाद टाइमली पेमेंट करने से क्रेडिट स्कोर में सुधार होता है तो लोन रिफाइनेंसिंग करा सकते हैं. दूसरे बैंक आपके अच्छे क्रेडिट स्कोर को देखते हुए कम ब्याज दर पर लोन दे सकते हैं.
तीसरा- EMI की रकम ज्यादा होने से अगर परेशानी हो रही है तो भी अन्य बैंक, जो कम ब्याज दर या लंबा टेन्योर ऑफर कर रहा है, उसमें लोन ट्रांसफर करा सकते हैं. होम लोन ट्रांसफर से पहले ये देखें कि कितना टेन्योर बचा है. लोन कुछ साल पहले शुरू हुआ है और इंटरेस्ट रेट ज्यादा है तो लोन ट्रांसफर कराना सही रहेगा. ऐसा इसलिए क्योंकि लोन के शुरू में EMI का ज्यादा हिस्सा ब्याज में जाता है. लोन ट्रांसफर कराने पर ब्याज दर में छोटी-सी कटौती पूरे टेन्योर के दौरान काफी ब्याज बचा सकती है. लोन खत्म होने में कुछ साल बचने पर रिफाइनेंसिंग का ज्यादा फायदा नहीं मिलेगा. लोन रिफाइनेंसिंग के बाद अब समझते हैं लोन रिस्ट्रक्चरिंग को.
लोन रिस्ट्रक्चरिंग
लोन रिस्ट्रक्चरिंग का सीधा मतलब लोन की मौजूदा शर्तों को बदलना है. बैंक कस्टमर की सहूलियत के लिए इन्हें बदलते हैं, ताकि वह लोन की मूल रकम और ब्याज दोनों चुका सकें. लोन डिफॉल्ट करने से बच सकें. लोन लेते समय आपकी वित्तीय स्थिति अच्छी थी. समय पर EMI दे रहे थे. अब अचानक नौकरी जाने, सैलरी घटने, कारोबार में नुकसान या अन्य किसी वजह से आप EMI नहीं चुका सकते हैं तो बैंक से बात करके अपना लोन रिस्ट्रक्चर करा सकते हैं.
होम लोन की रिस्ट्रक्चरिंग अलग-अलग तरीकों से की जा सकती है. इसमें लोन की EMI घटाना, लोन रिपेमेंट का टेन्योर बढ़ाना, किस्तों की संख्या में बदलाव, ब्याज दर एडजस्ट करना या मोरेटोरियम यानी लोन की किस्त को अस्थायी तौर पर रोकना शामिल है. ये बैंक के विवेक पर निर्भर करता है. याद रहे कि होम लोन रिस्ट्रक्चरिंग आखिरी विकल्प है. इसे तब चुनें जब आप वर्तमान शर्तों के साथ लोन चुकाने की कंडीशन में नहीं हों. लोन रिस्ट्रक्चरिंग का उद्देश्य मुश्किल में फंसे कर्जदार को कुछ राहत देना है. हालांकि लोन रिस्ट्रक्चर करवाने से क्रेडिट स्कोर पर निगेटिव असर पड़ सकता है.