किसी म्यूचुअल फंड से कब बाहर निकल जाना चाहिए? अगर कोई स्कीम अच्छा प्रदर्शन न कर रही हो, तो क्या उससे बाहर निकल जाना चाहिए? ऐसे सवाल बहुत से निवेशकों के जेहन में आते रहते हैं.
ज्यादातर फाइनेंशियल एडवाइजर निवेश में लंबे समय तक बने रहने की सलाह ही देते है, भले ही बाजार में तेज उतार-चढ़ाव क्यों न आए. हालांकि, कई मामलों में किसी फंड से निकल जाने में ही समझदारी होती है. ऐसे किन हालात में किसी फंड की यूनिट बेच देनी चाहिए, इसे समझते हैं.
इन घटनाओं पर रखें नजर
कई घटनाओं को किसी म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो के लिए लाल झंडी की तरह देखा जाना चाहिए. उदाहरण के लिए अगर किसी फंड के मैनेजर लगातार बदल रहे हों.. आपको ऐसे फंड में निवेश से बचना चाहिए जिनमें सीनियर मैनेजमेंट लेवल में बार-बार बदलाव हो रहा हो. इससे यह संकेत मिलता है कि फंड का मैनेजमेंट सक्षम नहीं है.
भारत में लोग अमूमन फंड पर भरोसा करते हैं, मैनेजर कौन है इस पर अक्सर लोग गौर नहीं करते. सच तो यह है कि निवेशकों को फंड मैनेजर में बदलाव से जुड़ी खबरों पर नजर रखनी चाहिए, क्योंकि जब कोई नया फंड मैनेजर आता है तो उसके निवेश की शैली भी बदल जाती है. इससे आपके रिटर्न पर असर पड़ सकता है.
अगर एक साल तक किसी फंड का प्रदर्शन खराब रहता है, तो यह भी निवेश के लिए लाल झंडी है. यह शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव की वजह से भी हो सकता है. फिर भी अगर ऐसा है तो यह बेहतर है कि रिसर्च करें और एक्सपर्ट की सलाह लें.
क्या है स्टैंडर्ड डेविएशन?
निवेश के लिए एक और लाल झंडी है हाई स्टैंडर्ड डेविएशन. स्टैंडर्ड डेविएशन से यह पता चलता है कि किसी म्यूचुअल फंड में कितना उतार-चढ़ाव हो सकता है. इससे यह भी पता चलता है कि स्कीम का रिटर्न अपने ऐतिहासिक मीन यानी माध्य रिटर्न से कितना आगे-पीछे हो सकता है. ज्यादा स्टैंडर्ड डेविएशन का मतलब है कि स्कीम में उतार-चढ़ाव ज्यादा होगा और कम स्टैंडर्ड डेविएशन का मतलब है कि उसमें उतार-चढ़ाव कम होगा. बढ़ता स्टैंडर्ड डिविएशन आमतौर पर यह दिखाता है कि फंड का प्रदर्शन असमान है. ऐसे मामलों में फंड से निकल जाना ही बेहतर होता है. स्टैंडर्ड डेविएशन की जानकारी आपको वैल्यू रिसर्च जैसी वेबसाइट्स या किसी इनवेस्टमेंट ऐप से मिल सकती है.
लगातार खराब प्रदर्शन हो तो क्या करें?
एक और चिंताजनक बात है किसी फंड का लगातार खराब प्रदर्शन. अगर फंड लगातार खराब परफॉर्मेंस कर रहा हो तो इससे निकलना ही सही होगा. अगर कोई फंड अपने जैसे दूसरे फंड्स के मुकाबले लगातार कमतर परफॉर्म कर रहा हो तो ये इशारा है कि भाई इससे बाहर निकल जाओ. यानी किसी फंड के सिर्फ बाजार में प्रदर्शन को देखने की जगह यह भी अहम है कि उसके समकक्षों से भी उसकी तुलना करें.
आखिरी बात यह है कि अगर कुछ फंड अपने उद्देश्य को पूरा न कर रहे हों तो यह बेहतर है कि किसी सलाहकार की मदद से अपने पोर्टफोलियो में बदलाव करें और उनसे बाहर निकल जाएं.
इसके अलावा अगर आपको लगता है कि आपका लक्ष्य हासिल हो गया है तो भी आप फंड से बाहर निकल सकते हैं. हां इसमें 5-6 फीसद की कमी भी है तो आप इसकी भरपाई लिक्विड या डेट फंड से कर सकते हैं.
आपका टारगेट पूरा हुआ या नहीं?
इस बात पर भी गौर करें कि आपका वित्तीय लक्ष्य पूरा हुआ या नहीं? आमतौर पर निवेशक अपने वित्तीय लक्ष्य को पूरा करने के लिए ही म्यूचुअल फंड्स की खरीद करते हैं. तो जब वित्तीय लक्ष्य पूरा हो जाता है, ऐसे निवेशक फंड से बाहर निकल जाते हैं.
उदाहरण के लिए, मान लिया कि आपने मकान खरीदने का लक्ष्य बनाकर किसी म्यूचुअल फंड में निवेश किया. तो एक बार जब आपके लिए जरूरत भर की कॉर्पस यानी निधि तैयार हो जाती है तो आप अपने फंड से बाहर जा सकते या सकती हैं. कई निवेशक जोखिम को कम करने के लिए डायवर्सिफाइड पोर्टफोलियो तैयार करते हैं और यह भी चाहते हैं कि उनके संभावित रिटर्न में भी कोई कमी न आए.
लेकिन एक समय के बाद पोर्टफोलियो का संतुलन बदल जाता है, इसलिए निवेशकों को लगातार इस पर नजर रखनी चाहिए. अगर आपको लगता है कि कुछ स्कीम आपके पोर्टफोलियो के संतुलन को बिगाड़ रहे हैं तो उनसे बाहर निकल जाना ही बेहतर है.
सिर्फ मुनाफा ही महत्वपूर्ण नहीं
किसी फंड से सिर्फ इस आधार पर बाहर नहीं निकल जाना चाहिए कि शॉर्ट टर्म में उसमें आपको कोई नुकसान हो रहा है. किसी म्यूचुअल फंड के प्रदर्शन को सिर्फ उसके कम या ज्यादा प्रॉफिट के आधार पर न आंकें. किसी म्यूचुअल फंड में निवेश करते समय अपने वित्तीय लक्ष्य पर जरूर विचार करें. अगर आप किसी म्यूचुअल फंड से बाहर निकल जाना चाहते हैं तो यह देखें कि यह आपके लक्ष्य पर किस तरह से असर डाल सकता है? अगर कुछ फंड अपने टारगेट पूरा न कर पा रहे हों तो हमेशा सलाह दी जाती है कि अपने पोर्टफोलियो को एडजस्ट करें और ऐसे फंड्स से बाहर निकल जाएं.
आखिरकार किसी निवेश को बेचना पूरी तरह से आपका अपना डिसीजन है. हो सकता है कि किसी को इमरजेंसी हालत में पैसे की जरूरत पड़े, ऐसे में फंड की यूनिट बेचना ही रास्ता हो सकता है. लेकिन फंड की यूनिट बेचने के बारे में काफी सोच-समझकर निर्णय लें, क्योंकि म्यूचुअल फंड में लॉन्ग टर्म में निवेश ही अच्छा फायदा दिलाता है.