पिता की संपत्ति में अपने अधिकार के लिए उत्तर प्रदेश के नोएडा की गरिमा पिछले 8 साल से अपने ही 2 भाइयों के साथ केस लड़ रही हैं. पिता के गुजरने के बाद दोनों भाइयों ने गरिमा को पारिवारिक प्रॉपर्टी पर हिस्सा देने से मना कर दिया है. प्रॉपर्टी के बंटवारे को लेकर देश के लाखों परिवारों में ऐसी ही कानूनी जंग छिड़ी हुई है. नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड के चार सितंबर 2023 तक के आंकड़ों बताते हैं कि देश में 4.42 करोड़ केस लंबित हैं. एक अनुमान के मुताबिक इनमें दो तिहाई केस जमीन-जायदाद के विवादों से जुड़े हैं. इस तरह के मामलों का निपटारा होने में कई कई साल लग जाते हैं.
बेटियों को बढ़ावा देने के लिए सरकारी स्तर पर देश में बड़े पैमाने पर अभियान चल रहे हैं लेकिन पिता की जायदाद में उसे हिस्सा मिलेगा या नहीं, इसको लेकर स्थिति साफ नहीं है. इस तरह के मामलों में कोर्ट के अलग अलग फैसलों से मामला और उलझ जाता है. बेटी का पिता की जायदाद में कब और कितना हक होता है, अगर दादालाई संपत्ति यानी पुश्तैनी प्रॉपर्टी है तो कितना हिस्सा मिलेगा, शादी के बाद पिता की संपत्ति में उसके क्या अधिकार हैं? कुछ ऐसे सवाल हैं जो अधिकतर लोगों की समझ से परे हैं.
दिल्ली हाईकोर्ट ने हालही में एक फैसले में कहा है कि अविवाहित या विधवा बेटी पिता की संपत्ति में हकदार होती है लेकिन तलाकशुदा बेटी का पिता की संपत्ति पर हक नहीं है. इस फैसले के बाद पैतृक संपत्ति में बेटियों के अधिकर को लेकर नई बहस छिड़ गई है.
क्या कहता है कानून?
बेटी के हितों की सुरक्षा के लिए 2005 में हिंदू उत्तराधिकार कानून में बदलाव किया गया. नए कानून में पैतृक संपत्ति में बेटियों को बराबर का हिस्सेदार माना गया है. चाहे बेटी शादीशुदा हो, विधवा हो, अविवाहित हो या पति से अलग रह रही हो. विरासत में मिली संपत्ति में बेटी का जन्म से ही हिस्सा बन जाता है. इसमें शर्त ये थी कि अगर उसके पिता 9 सितंबर, 2005 तक जीवित रहे हों. इस स्थिति में बेटी पैतृक संपत्ति में अपना हिस्सा ले सकती है. अगर पिता की मौत इससे पहले हुई है तो बेटी को पैतृक संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलेगा. हालांकि पिता की खुद की खरीदी हुई संपत्ति का बंटवारा वसीयत के आधार पर किया जाएगा.
व्यवस्था में बदलाव?
हिंदू उत्तराधिकार कानून में संशोधन के बाद भी कई पहलू ऐसे रह गए जिन पर स्थिति साफ नहीं हो पाई. सुप्रीम कोर्ट ने साल 2020 में इस व्यवस्था में फिर बदलाव किया. कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि अगर पिता की मौत 9 सितंबर 2005 के पहले भी हुई है तब भी बेटी का पैतिृक संपत्ति पर बेटों की तरह ही अधिकार होगा. अगर पिता ने अपनी संपत्ति खुद अर्जित की है तो पिता की मर्जी है कि वो अपनी संपत्ति किसे दें? अगर पिता कोई वसीयत लिखकर नहीं गए हैं तो बेटी का उऩकी जायदाद में बराबर का अधिकार होगा. सुप्रीम कोर्ट की इस व्यवस्था के अनुसार संयुक्त परिवार में रह रहे व्यक्ति की वसीयत लिखे बिना मौत हो जाए तो उसकी संपत्ति पर बेटों के साथ उसकी बेटी का भी बराबर का अधिकार होगा.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल कर्णवाल कहते हैं कि पैतृक संपत्ति में बेटी का पूरा हक होता है. इससे उसके शादीशुदा, विधवा या तलाकशुदा होने का कोई लेना देना नहीं है. हालांकि पिता के खुद की खरीदी हुई संपत्ति में बेटी को हिस्सा तभी मिलेगा जब वह अपनी मर्जी से देना चाहें. अगर पिता बेटी को अपनी इस संपत्ति में हिस्सा नहीं देना चाहता है तो बेटी उसमें हिस्सा नहीं ले सकती. अगर पिता की मौत वसीयत लिखने से पहले हो जाए तो बेटी उनकी संपत्ति में हिस्सा ले सकती है. गरिमा के पिता ने वसीयत नहीं लिखी है. ऐसे में वो भाइयों के बराबर ही प्रॉपर्टी में गरिमा का भी हिस्सा है.
ऐसे हालात किसी भी परिवार में बन सकते हैं. कोर्ट कचहरी की लड़ाई से बचने के लिए संपत्ति की समय रहते वसीयत बनवाना जरूरी है.. किसको कितना हिस्सा देना है, इस बारे में स्पष्ट लिखें. अधिकांश मामलों में देखा जाता है कि भाई अपनी बहन से अनापत्ति प्रमाण पत्र यानी NOC पर साइऩ कराकर खुद ही मालिक बन जाते हैं. अगर बेटी NOC पर साइन नहीं करती है तो कई मामलों में बहन-भाई एक दूसरे की जान के दुश्मन बन जाते हैं. वसीयत लिखकर परिवार को इस तरह के हालात से बचा सकते हैं
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