टोक्यो ओलंपिक्स में पदक जीतने वाले खिलाड़ियों ने देश का नाम रौशन किया है. उन्हें लेकर जश्न तो मनाए जाने ही थे. बल्कि, पदक हासिल करने में असफल रहने के बावजूद दिल जीत ले जाने वाली महिला हॉकी टीम और अन्य खिलाड़ी भी प्रेरणा स्रोत बनकर उभरे हैं.
जाहिर है कि कई लोग उन्हें इसके लिए सम्मानित करना चाहते हैं. किया भी जाना चाहिए. हालांकि, इन सबके बीच जैवलिन फेंक प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतने वाले नीरज चोपड़ा का ज्यादा थकान की वजह से अस्पताल में भर्ती होना चिंता की बात है. यह बताता है कि अब हम खिलाड़ियों को जरूरत से ज्यादा आयोजनों में शामिल होने पर मजबूर कर रहे हैं.
मेडल की लालसा रखने वाले देश को यह समझना होगा कि खिलाड़ियों ने अच्छा प्रदर्शन किया क्योंकि वे लगातार सिर्फ और सिर्फ खेल पर फोकस कर रहे थे. महान स्पोर्टपर्सन तैयार करने वाले देश ऐसा माहौल बनाकर रखते हैं, जहां खिलाड़ी खेल से ध्यान नहीं भटकाते. वे सालों-साल अभ्यास में लगे रहते हैं. यही चीज उन्हों औरों से बेहतर बनाती है.
खिलाड़ियों को ईनाम देने की इच्छा रखने वाले हों या अपने फायदे के लिए उनकी छवि का इस्तेमाल करने में लगे लोग, सभी को यह समझना होगा कि इस तरह खिलाड़ियों को उलझाए रखना देशहित के खिलाफ है.
दर्जनों ब्रांड्स अपना पूरा जोर लगा रहे हैं कि कोई न कोई खिलाड़ी उनसे जुड़कर प्रमोशन करने लगे. मौके पर चौका मारने का कोई मौका कंपनियां और सरकारें नहीं छोड़ रही हैं. जबकि, लक्ष्य यह होना चाहिए कि टैलेंट को बढ़ावा देने के लिए उन्हें बेहतर सुविधाएं मुहैया कराई जाएं. तभी भविष्य में भी वे अच्छा परफॉर्म कर पाएंगे.
नीरज चोपड़ा के बायोमेकैनिकल एक्सपर्ट डॉ. क्लॉस बार्तोनीट्ज का कहना है कि स्वर्ण पदक विजेता को लेकर एक पागलपन सा छाया हुआ था. लोगों को समझना होगा कि वे भी इंसान हैं. ज्यादा मान-मनुहार होने से उनका फोकस बिगड़ सकता है. ऐसे कई उदाहरण रहे हैं, जहां वर्ल्ड क्लास स्पोर्टपर्सन अपने करियर के बीच में ही ट्रैक से भटक गए.