दुनिया में कुछ ही देश ऐसे हैं, जहां टैक्स लगभग हैं ही नहीं. जैसे- ब्रुनेई, बहरीन, संयुक्त अरब अमीरात, बरमूडा, मोनाको और कतर. यदि आप ऐसे देशों में पैदा नहीं हुए हैं, तो फिर संभावना है कि जन्म से लेकर मृत्यु तक टैक्स आपका पीछा नहीं छोडे़ंगे. विशेष रूप से भारत जैसे देशों में यह एक सच्चाई है, जहां कर राजस्व से 1.35 अरब लोगों के लिए बजट निर्माण हेतु संसाधन जुटाए जाते हैं. हालांकि, लोग तेजी से करों का भुगतान कर रहे हैं. चाहे वह प्रत्यक्ष कर हो या अप्रत्यक्ष कर. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते सरकार को सुझाव दिया है कि अनुपालन को अधिकतम करने के लिए कर प्रणाली को सरल बनाना होगा.
एक साधारण कर प्रणाली का अर्थ यह नहीं है कि टैक्स की दरें कम ही हों. अनुपालन बढ़ने से कर संग्रह अपने आप बढ़ जाएगा, जिससे सरकार को करों की दर को कम करने में मदद मिलेगी. कोर्ट का मतलब यह था कि करदाता को कर नियमों को समझने, करों की गणना करने और रिटर्न दाखिल करने में आसानी हो, इसलिए कानूनों को सरल बनाया जाना चाहिए. खंडपीठ ने एडम स्मिथ के हवाले से सरकार को यह याद दिलाया कि भुगतान का समय, भुगतान का तरीका और भुगतान की जाने वाली मात्रा करों का भुगतान करने वाली इकाई के लिए स्पष्ट होनी चाहिए.
हालांकि, एक के बाद एक सरकारों ने इसे सरल बनाने की कोशिश की है, लेकिन भारत में कर प्रणाली शायद ही उस चरण में पहुंची है, जहां अधिकांश लोगों के लिए स्वयं टैक्स की गणना करना व रिटर्न फाइल करना संभव है. अधिकांश करदाता अभी भी स्वयं अपने आयकर की सही गणना करने और भुगतान करने में सक्षम नहीं हैं. हालांकि, वस्तु एवं सेवा कर (GST) व्यवस्था ने देश भर में अप्रत्यक्ष करों की जगह ले ली है, लेकिन छोटे करदाताओं का कहना है कि इस प्रणाली को और भी सरल बनाने की जरूरत है. कर कानूनों और प्रणाली को सरल बनाने से बेहतर अनुपालन होता है और वर्तमान सरकार को इस चीज का फायदा भी मिल रहा है.