महंगाई के सबसे बड़े विलेन मसाले बन चुके हैं, वही मसाले, जिनके भाव पर आप राशन खरीदते समय ज्यादा गौर नहीं करते, लेकिन पिछले साल के राशन बिल में मसालों के भाव को इस बार के बिल से मिलाकर देखिए आपको पता चल जाएगा कि आटे और तेल के दाम उतने नहीं बढ़े हैं जितनी बढ़ोतरी मसालों की कीमतों में हुई है. राशन के बिल को बढ़ाने में सबसे बड़ा हाथ मसालों का ही है.
अधिकतर मसालों के दाम बढ़ चुके हैं. सालभर पहले 100 ग्राम जीरा खरीदने के लिए जितने पैसे लगते थे इस बार 60 फीसद ज्यादा कीमत देनी पड़ी है. कुछ ऐसा ही हाल सौंफ का भी है, जिसके लिए पिछले साल के मुकाबले 50-55 फीसद ज्यादा पैसे लगे हैं. लाल मिर्च के लिए 40-45 फीसद ज्यादा कीमत चुकानी पड़ी है.
मसालों की इस महंगाई की वजह से सिर्फ किचन का बजट नहीं बढ़ा बल्कि सरकार की परेशानी भी यही बढ़ा रहे हैं. रिटेल महंगाई के आंकड़े देख लीजिए, पिछले 6 महीने से मसालों की महंगाई दहाई के आंकड़े में चल रही है. बीते नवंबर में तो आंकड़ा 20 फीसद के करीब पहुंच गया है.
फसल वर्ष 2021-22 के दौरान देश में अधिकतर मसालों की उपज कम आंकी गई है. जिस वजह से सप्लाई सीमित है और भाव बढ़ा हुआ है. ऊपर से इस साल रबी सीजन में पैदा होने वाले कुछ मसालों की खेती भी कम है, जो बढ़ी हुए भाव को और हवा दे रही है.
जीरे को ही ले लीजिए, जीरे के प्रमुख उत्पादक राज्य गुजरात में फसल का रकबा. पिछले साल के मुकाबले करीब 6 फीसद पिछड़ा हुआ है. 12 दिसंबर तक गुजरात में 2.24 लाख हेक्टेयर में जीरे की खेती दर्ज की गई है.
मसाले सरकार की उस जरूरी वस्तुओं वाली लिस्ट में भी नहीं आते. जिसमें गेहूं और तेल शामिल हैं यानि वे वस्तुएं जिनकी कीमत थोड़ी भी बढ़े तो सरकार तुरंत हरकत में आ जाती है.
तेल की महंगाई को रोकने के लिए सरकार रह-रहकर कदम उठाती रहती है लेकिन मसाले लगातार महंगे हो रहे हैं. इनकी महंगाई को रोकने के लिए सरकार की तरफ से कोई उपाय किए जाने की संभावना कम है. और जबतक मसालों की सप्लाई सामान्य नहीं होती तबतक भाव घटने की उम्मीद भी नहीं है.