आशीष ने बैंक ऑक्शन यानी नीलामी में घर खरीदा है. यह डील उन्हें बाजार भाव की तुलना में सस्ती पड़ी है. अगर आशीष की तरह आप भी नीलामी में घर खरीदने की सोच रहे हैं तो पहले इसके बारे में अच्छी तरह से समझ लें.
दरअसल, बैंक, व्यक्ति या कंपनी को कर्ज देते हैं. जब इस कर्ज की अदायगी नहीं होती है तो बैंक गिरवी रखी संपत्ति को नीलाम कर सकते हैं. कोई प्रॉपर्टी कब नीलाम होती है और ऐसी संपत्ति कैसे खरीदी जा सकती है, इसकी एक लंबी प्रक्रिया है. सरफेसी (Sarfaesi) एक्ट 2002, बैंकों को नुकसान की भरपाई के लिए संपत्ति बेचने का अधिकार देता है. ज्यादातर बैंक प्रॉपर्टी की ई-नीलामी करते हैं, जिसकी जानकारी अखबार, बैंकों की वेबसाइट या नीलामी का रिकॉर्ड रखने वाले पोर्टल्स पर मिल जाएगी.
कब होती है नीलामी?
कर्जदार (Borrower) की ओर से लगातार तीन ईएमआई (EMI) नहीं जमा होने पर बैंक नीलामी की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं. बैंक कर्ज लेने वाले व्यक्ति को नोटिस देकर पूछते हैं कि उसकी प्रॉपर्टी क्यों नहीं नीलाम की जाए. नोटिस का जवाब देने के लिए 60 दिन मिलते हैं. इस दौरान भुगतान करने पर नोटिस वापस हो जाता है… नोटिस का जवाब न देने पर या बैंक के जवाब से संतुष्ट न होने पर नोटिस का टाइम बीतने के 30 दिन बाद नीलामी प्रक्रिया आमतौर पर शुरू होती है..
कितना सस्ता मिल सकता है?
एक्सपर्ट्स के अऩुसार नीलामी में प्रॉपर्टी आमतौर पर बाजार कीमत से 10 से 30 फीसदी तक सस्ती मिलती है. यानी एक करोड़ की प्रॉपर्टी 10 से 30 लाख रुपए कम में पड़ेगी क्योंकि बैंक अपना मूलधन निकालने पर फोकस करता है. नीलामी वाली ज्यादातर संपत्तियां पॉश इलाकों में होती हैं. ऐसे में कई बार आपको अच्छी लोकेशन पर घर मिल जाता है. ये प्रॉपर्टी ज्यादातर रेडी टू मूव इन होती है.. यानी डील पूरी होते ही खरीदार शिफ्ट कर सकता है.
क्या है जोखिम?
आमतौर पर लोग मानते हैं कि बैंक नीलामी में प्रॉपर्टी खरीदना क्लियर टाइटल यानी स्पष्ट मालिकाना हक की निशानी है. लेकिन, ऐसा नहीं है बैंक के नीलामी नोटिस में लिखा होता है- ‘जैसा है जहां है’ और ‘जैसा है जो है’… इसका मतलब है कि प्रॉपर्टी फिजिकली और कानूनी रूप से जिस हाल में है उस हाल में नीलाम की जा रही है. आगे चलकर कोई तीसरा पक्ष अगर प्रॉपर्टी पर अपना दावा लेकर सामने आता है तो बैंक जिम्मेदार नहीं होगा.
कई दफा सुनने में आता है कि किसी व्यक्ति ने नीलामी में प्रॉपर्टी खरीदी, लेकिन सालों बीतने के बाद भी उसे कब्जा नहीं मिला. दरअसल, कई मामलों में सांकेतिक पजेशन (Symbolic Possession) पर नीलामी कर दी जाती है. सिम्बॉलिक पजेशन में बैंक के पास कागजों में प्रॉपर्टी के कानूनी अधिकार होते हैं, लेकिन उस पर वास्तविक कब्जा पुराने मालिक या किराएदार का होता है जो नीलामी के खिलाफ अदालत जा सकता है.
कानूनी स्थिति का पता करें
बैंक का फिजिकल कब्जा बहुत जरूरी है. अगर फिजिकल कब्जा नहीं है तो आप कानूनी पचड़े में फंस सकते हैं. ऐसे में बोली लगाने से पहले प्रॉपर्टी की टाइटल डीड यानी रजिस्ट्री और चेन डीड चेक करें. प्रॉपर्टी किसी कानूनी झमेले में न फंसी हो. इसके लिए वकील की मदद ले सकते हैं. अगर प्रॉपर्टी किसी कंपनी की है तो रजिस्ट्रार ऑफ कंपनी के दफ्तर में पूछताछ करें.
क्या सावधानी बरतें?
नीलामी में प्रॉपर्टी खरीदने से पहले उसकी कंडीशन जरूर चेक करें ताकि इस बात का अंदाजा लगा सकें कि मरम्मत में कितना खर्च आएगा… इसके अलावा, प्रॉपर्टी का म्युनिसिपल टैक्स, सोसायटी चार्ज, बिजली-पानी के बकाये बिल जैसी चीजों का भी पता करें. नीलामी में प्रॉपर्टी खरीदने पर बकाए की जिम्मेदारी खरीदार की होगी. लिहाजा बोली लगाते समय ऐसी लागत का ध्यान रखें वरना असल कीमत आपके अनुमान से कहीं ज्यादा हो सकती है.
अगर आप भी आशीष की तरह ऑक्शन वाली प्रॉपर्टी में निवेश करने की सोच रहे हैं तो ध्यान रखें कि बोली में हिस्सा लेने के लिए रिजर्व प्राइस का 10 फीसदी यानी अर्नेस्ट मनी जमा करनी होगी. अगर आपकी बोली सफल नहीं होती है तो यह रकम लौटा दी जाएगी. बोली जीतने पर अगले कुछ दिन में 25 फीसदी रकम जमा करनी होगी जिसमें अर्नेस्ट मनी भी शामिल है. बाकी बचे पैसे महीनेभर या बैंक से मिले वक्त में भरने होंगे. बोली जीत कर पैसे जमा नहीं करने पर डिपॉजिट वापस नहीं मिलेगा.