भारत की तरफ से चावल के निर्यात पर लगाई गई पाबंदियों और प्रमुख चावल उत्पादक देशों में अलनीनो की वजह से गहराती सूखे की आशंका से ग्लोबल मार्केट में चावल की कीमतें 15 साल की ऊंचाई पर पहुंच गई हैं. एशियाई बाजारों में चावल का बेंचमार्क भाव 646 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गया है जो 2008 के बाद सबसे ऊपरी स्तर है. महंगाई को ध्यान में रखते हुए सरकार ने चावल निर्यात पर पाबंदियों को लगातार बढ़ा रही है.
सरकार ने हाल ही में बासमती चावल के निर्यात पर 1200 डॉलर प्रति टन की शर्त थोपी है और सेला चावल के निर्यात पर 20 फीसद टैक्स लगाया है. इससे पहले सरकार ने सफेद गैर बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था, टूटे चावल के एक्सपोर्ट पर तो पिछले साल ही प्रतिबंध लगा दिया गया था. भारत दुनियाभर में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक है, दुनिया में एक्सपोर्ट होने वाले कुल चावल में भारत की हिस्सेदारी 40 फीसद से ज्यादा है और दुनिया के 150 से ज्यादा देश भारत से चावल खरीदते हैं. यही वजह है कि भारत की तरफ से चावल निर्यात पर पाबंदियां लगाए जाने के बाद वैश्विक बाजार में चावल की कीमतें आसमान पर पहुंच गई हैं.
इस साल अलनीनो की वजह से अगस्त के दौरान देश में सामान्य के मुकाबले 36 फीसद कम बरसात हुई है. सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दक्षिण पूर्वी एशिया के कई प्रमुख चावल उत्पादक देश कम बरसात का सामना कर रहे हैं, जिस वजह से चावल के उत्पादन पर असर पड़ सकता है. भारत के बाद दुनिया के दूसरे बड़े चावल निर्यातक देश थाईलैंड में इस साल चावल का उत्पादन घटने की आशंका जताई जा रही है. अमेरिकी कृषि विभाग के आंकड़े बताते हैं कि इस साल थाईलैंड में चावल का उत्पादन 1.97 करोड़ टन रह सकता है, पिछले साल थाईलैंड में 2.02 करोड़ टन चावल का उत्पादन हुआ था.
दक्षिण पूर्वी एशिया और अफ्रीका में चावल भोजन का मुख्य स्रोत है, ऐसे में ग्लोबल मार्केट में भाव बढ़ने की वजह से दुनिया के इन दोनों क्षेत्रों में महंगाई की मार पड़ रही है. भारत में भी कीमतें बढ़ना शुरू हुईं थी लेकिन सरकार की तरफ से निर्यात पर लगाई गई पाबंदियों के बाद चावल की महंगाई में कुछ लगाम लगा है.