15 अगस्त 2014 को घोषित हुई प्रधानमंत्री जन-धन योजना को सात वर्ष पूरे हो चुके हैं. इस योजना को न केवल इसकी पहुंच, बल्कि इसके प्रभाव के कारण भी सबसे उल्लेखनीय वित्तीय समावेशन कार्यक्रम कहा जा सकता है. इस योजना के आंकड़े ही अपने आप में काफी चौंकाने वाले हैं.
इस योजना ने 43.04 करोड़ लोगों को बैंकिंग के दायरे में ला दिया है. यह संख्या अमेरिका और यूके की कुल आबादी से भी अधिक है और यह संख्या लगातार बढ़ रही है. योजना में एटीएम-सह-डेबिट कार्ड जारी कर निचले तबके के 31.23 करोड़ लोगों को एटीएम/ऑनलाइन लेनदेन की सुविधा दी गई है. इस योजना से महिला सशक्तिकरण में भी मदद मिली है. कुल लाभार्थियों में से 55.47 फीसदी केवल महिलाएं हैं. लाभार्थियों को जारी किए गए प्रत्येक रुपे कार्ड के साथ 2 लाख रुपये का मुफ्त दुर्घटना बीमा भी मिलता है.
इसके अलावा 66.69% खाते ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में खोले गए हैं, जहां बैंकों की पैठ कम है. जन-धन खातों का एक बड़ा फायदा यह हुआ कि सरकारी योजनाओं के तहत लाभार्थियों को मिलने वाली राशि सीधे उनके खाते में ट्रासंफर होने लगी, जिससे भ्रष्टाचर में कमी आई है. पैसा अब सीधे लाभार्थियों के खातों में ट्रांसफर किया जा सकता है, जिससे कैश के लीकेज की संभावना काफी कम हो गई है.
हालांकि, इस योजना के अंदर कुछ ऐसे पहलू हैं, जिन पर ध्यान देने और सुधार की जरूरत है. कुल 43.04 करोड़ PMJDY खातों में से 36.86 करोड़ या 85.6% चालू हैं. अधिकारियों को यह पता लगाने की जरूरत है कि 6.18 करोड़ खाते निष्क्रिय क्यों पड़े हैं और ऐसे कदम उठाने चाहिए, जिससे लाभार्थी उन खातों का उपयोग कर सकें.
दूसरा यह कि लाभार्थियों में से केवल 72.56 फीसदी को ही एटीएम-सह-डेबिट कार्ड मिले हैं. इसमें राज्यवार आंकड़ों में काफी असमानता भी है. FY21 के अंत में, लद्दाख में जन-धन खातों के लगभग 90% लाभार्थियों के पास डेबिट कार्ड थे. लेकिन मणिपुर में केवल 35.14 फीसदी के पास ही डेबिट कार्ड थे. अधिकारियों को इस व्यापक असमानता के कारणों पर गौर करना होगा.