ओलंपिक वैश्विक सहयोग और एकजुटता का एक मजबूत प्रतीक है. लेकिन, कोविड महामारी की वजह से यह एक कमर्शियल कार्यक्रम तक सिमटकर रह जाने के खतरे से जूझ रहा है. टोक्यो ओलंपिक पहले ही एक साल लेट हो गया है. हालांकि, मेडिकल एक्सपर्ट्स की संक्रमण में इजाफा होने की चेतावनी के बीच इसके आयोजन की तैयारी चल रही है. आयोजकों पर कमर्शियल पार्टनर्स का दबाव है कि वे इस आयोजन को करें और एक संदेश दें कि दुनिया इस महामारी से उबरने की राह पर है.
जापान के टॉप मेडिकल एडवाइजर ने भी ऐसे वक्त पर ओलंपिक के आयोजन की टाइमिंग की आलोचना की है जबकि जापान के महज 5% लोगों को ही वैक्सीन लगाई जा सकी है.
कोविड की इस लहर के बीच ये खेल की भावना के खिलाफ जाता है और ये ओलंपिक के आयोजन के मकसद को नाकाम करने का जोखिम भी पैदा करता है.
ओलंपिक का मतलब माहौल और दर्शक से जुड़ा हुआ है. इस बार के आयोजना में किसी भी देश से कोई दर्शक नहीं होगा. इसके साथ ही आयोजकों को ये भी तय करना है कि घरेलू दर्शक भी आधी संख्या में उपस्थित हो सकेंगे या नहीं.
हालांकि, ओलंपिक विलेज में पाबंदियां बेहद सख्त होंगी और हर एथलीट और अधिकारी को सख्त प्रोटोकॉल का पालन करना होगा. लेकिन, इस तरह की स्थितियों में एथलीट्स के लिए अपनी पूरी काबिलियत से प्रदर्शन कर पाना नामुमकिन होगा.
भारत और यूके समेत 10 देशों के एथलीट्स और अधिकारियों से कहा गया है कि वे नियमों के मुताबिक तीन दिन क्वॉरंटीन में रहें. इससे ट्रेनिंग और आखिरी दौर की तैयारियों पर फर्क पड़ेगा. जबकि ओलंपिक जैसे कड़ी प्रतिस्पर्धा वाले गेम्स में इन तैयारियों का बेहद महत्व होता है.
ऐसे में अभी भी टोक्यो ओलंपिक को लेकर बड़े पैमाने पर दुविधा का माहौल बना हुआ है.
हो सकता है कि टोक्यो 2020 के आयोजक कमर्शियल पार्टनर्स के इस आयोजन को करने और दुनिया को ये संदेश देने कि महामारी से रिकवरी अपने सही रास्ते पर है के दबाव के आगे झुक जाएं.
लेकिन, हकीकत इससे उलट है और इस वक्त इस आयोजन को करना एक भारी भूल साबित हो सकती है.