Petrol Prices: पेट्रोल की कीमतें 100 रुपये प्रति लीटर को पार कर चुकी हैं और डीजल भी इसी अहम स्तर को पार कर चुका है. डीजल ही वो फ्यूल है जिसपर भारत की अर्थव्यवस्था की इंजन दौड़ता है. और इन सब के अलावा, मई में महंगाई के आंकड़े चिंताजनक हैं. मई में रिटेल महंगाई 6.3 फीसदी रही, जो रिजर्व बैंक के तय दायरे से ज्यादा है. रिजर्व बैंक ने महंगाई के लिए 6 फीसदी उच्चतम सीमा रखी है. ये साफ दर्शाता है कि इस महंगाई में पेट्रोल की बढ़ती कीमतें ही जिम्मेदार हैं.
सालों तक पेट्रोल की कीमतें के अर्थव्यवस्था और आम आदमी पर पड़ने वाले असर को लेकर काफी चर्चाएं हुई हैं. ये जग जाहिर है कि पेट्रोल और डीजल पर भारत में सबसे ज्यादा टैक्स लगता है. मुद्दा ये है कि अब चर्चा खत्म करें और एक्शन में आएं.
सरकार गरीबों की राहत के लिए कई स्कीमें चला रही है लेकिन महंगा पेट्रोल सभी पर भारी पड़ रहा है. मिडिल क्लास तो बिना किसी राहत के ये बोझ उठा रहा है. केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर टैक्स घटाना होगा और आय के अन्य स्रोत बनाने होंगे. इसपर राजनीति से आम लोगों को ही नुकसान होगा.
मार्च में लोक सभा में बताया गया था कि पिछले 6 साल में केंद्र का फ्यूल से टैक्स कलेक्शन 300 फीसदी बढ़ा है. इस टैक्स में राज्यों का हिस्सा भी कम नहीं है. हर राज्य अलग-अलग टैक्स दर लगाते हैं जो 25 फीसदी से 30 फीसदी तक के बीच होते हैं, और कुछ राज्य तो इससे भी ज्यादा.
ये सही है कि केंद्र सरकार इस आय का बड़ा हिस्सा वेलफेयर स्कीमों और गरीबों को महामारी के बीच राहत पहुंचाने के लिए खर्च कर रही है. इस खर्च का बड़ा हिस्सा पेट्रोल-डीजल से हुई आय से हो रहा है. पर अगर पेट्रोल की कीमतों से महंगाई बढ़ती है तो लोगों की खर्च क्षमता बढ़ाने से कोई फायदा नहीं क्योंकि अंततः ये महंगाई की भेंट चढ़ेगी.
समाज का ऐसा वर्ग भी है जिसे मुफ्त राशन नहीं मिलता या सरकार की किसी अन्य राहत स्कीम के दायरे में वे नहीं आते, उनपर महंगाई की मार सबसे ज्यादा पड़ रहा है.