Petrol-Diesel Price: पेट्रोल और डीजल की लगातार बढ़ती कीमतों से पूरे देश में लोग परेशान हैं. कीमतें लगातार बढ़ती जा रही हैं. इससे सबसे ज्यादा मुश्किलें आम आदमी की बढ़ी हैं. पेट्रोल और डीजल की लगातार बढ़ती कीमतों से अन्य वस्तुओं के दाम भी आसमान छू रहे हैं. पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों पर चर्चा के लिए आज एक संसदीय समिति की बैठक होनी है.
ये बैठक पेट्रोलियम एंड नेचुरल गैस मामलों की स्टैंडिंग कमेटी की होगी. कमेटी ने पेट्रोलियम मंत्रालय और IOC, BPCL और HPCL के अधिकारियों को बुलाया है. बैठक में मौजूदा कीमत और मार्केटिंग के मसले पर जानकारी मांगी जाएगी. लोकसभा की वेबसाइट के मुताबिक, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस स्थायी समिति की बैठक निर्धारित है.
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता रमेश बिधूड़ी की अध्यक्षता में पैनल बैठक में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय और तेल विपणन कंपनियों के प्रतिनिधियों से ‘प्राकृतिक गैस सहित पेट्रोलियम उत्पादों के मूल्य निर्धारण, विपणन और आपूर्ति’ विषय पर मौखिक साक्ष्य लेने की उम्मीद है.
पिछले हफ्ते, केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने स्वीकार किया था कि बढ़ती कीमतें एक समस्या पैदा कर रही हैं, लेकिन कहा कि सरकार कल्याण योजनाओं पर खर्च करने के लिए आय का उपयोग कर रही है. इससे पहले केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस मुद्दे को धर्म संकट बताया था.
पिछले छह हफ्तों में दोनों ईंधनों की कीमतें 25 गुना बढ़ी हैं. 4 मई से पेट्रोल 6.26 रुपये प्रति लीटर महंगा हो गया है जबकि डीजल 6.68 रुपये महंगा हो गया है. मार्च में, लोकसभा को बताया गया था कि पिछले छह वर्षों में इस स्रोत से केंद्र के कर संग्रह में 300% की वृद्धि हुई है.
राज्यों का हिस्सा किसी भी तरह से नगण्य नहीं है. हालांकि प्रत्येक राज्य कराधान की अपनी दर चुनने के लिए स्वतंत्र है, यह 25% से 30% के बीच है और कुछ राज्यों में यह और भी अधिक है.
हालांकि पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने के मुद्दे पर विभिन्न मंचों पर चर्चा की गई है, लेकिन इस बात की संभावना कम ही है कि कोई भी सरकार इस मुद्दे को जीएसटी परिषद में लिखित रूप से रखेगी क्योंकि उत्पादों से सभी स्तरों पर सरकारों को भारी राजस्व मिलता है.
बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी, जिन्हें जीएसटी मामलों के विशेषज्ञ भी माना जाता है, ने टिप्पणी की है कि कोई भी राज्य पेट्रो उत्पादों को जीएसटी के तहत लाने पर जोर नहीं देगा क्योंकि कोई भी राजस्व खोने का जोखिम नहीं उठा सकता है.