गेहूं खरीद घटने से उलझन में फंसी सरकार के लिए परेशानी बढ़ने वाली है. सरकार की नई चुनौती अब खरीफ का न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP तय करने से जुड़ी है. दरअसल, रबी सीजन में सरकारी खरीद घटने से केंद्रीय पूल में गेहूं का स्टॉक 200 लाख टन कम रहेगा और आगे खरीफ सीजन में इसकी भरपाई करनी है. ऐसे में पहले समर्थन मूल्य बढ़ाकर किसानों को खरीफ अनाज के लिए प्रोत्साहित करना पड़ेगा और उसके बाद बढ़े हुए समर्थन मूल्य पर खरीद बढ़ानी होगी. दोनों ही परिस्थितियों में सरकार के खजाने पर बोझ पड़ेगा.
समर्थन मूल्य तय करने के लिए सरकार A2+FL फार्मूला लगाती है. यानी बीज, खाद, डीजल, कीटनाशक वगैरह की लागत में किसान की मजदूरी जोड़ती है. जो कुल लागत बनती है. उसको 50 फीसद बढ़ाकर MSP घोषित होता है.
कीटनाशक के दाम बढ़ने की आशंका
बीते एक साल में बढ़ी महंगाई से किसानों की लागत भी तेजी से बढ़ी है. मसलन, डीजल महंगा हो चुका है. एक साल में दाम करीब 18 फीसद बढ़े हैं. कैमिकल महंगे होने से कीटनाशक के दाम बढ़ने की भी आशंका है. ऊपर से अनाज की महंगाई ने बीज के दाम भी बढ़ा दिए हैं. यानी फार्मूले के लिहाज से इस बार समर्थन मूल्य औसत के मुकाबले ज्यादा बढ़ सकता है. पिछली बार प्रमुख खरीफ फसलों का समर्थन मूल्य 2 फीसद से 5 फीसद तक बढ़ा था. चुनौती सिर्फ MSP फार्मूले तक ही सीमित नहीं है. रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से अनाज और तेल-तिलहन का बाजार पहले ही तपा हुआ है. कपास का भाव भी 11 साल की ऊंचाई पर है. हालांकि खरीफ दलहन तुअर का भाव MSP से नीचे है.
अगर सरकार ने खरीफ MSP को बाजार भाव के बराबर घोषित नहीं किया तो किसान भी फसल सरकार को बेचने के बजाय खुले बाजार में बेचना फायदेमंद समझेंगे. यानि वैसी ही स्थिति हो सकती है. जो इस समय गेहूं को लेकर है. गेहूं किसान MSP पर फसल बेचने के बजाय. व्यापारी से मिल रहे ऊंचे भाव पर बेच रहे हैं. गेहूं का समर्थन मूल्य 2015 रुपए है, जबकि राजस्थान की कोटा मंडी में सोमवार को भाव 2301 रुपए दर्ज किया गया. अगर धान को लेकर भी ऐसी ही स्थिति बनती है. तो सरकारी स्टॉक में गेहूं की कमी की भरपाई चावल पूरा नहीं कर पाएगा.
ये भी हैं चुनौतियां
सरकार के लिए चुनौती सिर्फ यहीं खत्म नहीं होती. कैमिकल और फर्टिलाइजर के दाम बढ़ने की वजह से सरकार पर सब्सिडी का बोझ 2.5 लाख करोड़ रुपए तक पहुंचने की आशंका है. कीटनाशक और खाद तैयार करने में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल की कीमतें सालभर में दोगुनी जो बढ़ गई हैं.
अब सरकार अगर फार्मूले और बाजार भाव के आधार पर खरीफ MSP बढ़ाती है तो उसी बढ़ी हुई सब्सिडी पर किसानों से फसल भी खरीदनी होगी और ऐसा हुआ तो फूड सब्सिडी का बोझ भी तय किए 2.07 लाख करोड़ से कहीं ऊपर पहुंच जाएगा. ऊपर से थाली की महंगाई और बढ़ने का डर अलग.
कुल मिलाकर सरकार के लिए आगे की राह आसान नहीं है या तो किसान की लागत देखकर खरीफ MSP को औसत से ज्यादा बढ़ाए या फूड सब्सिडी का बोझ कम करने के लिए जुगत लगाए.