हार्ट अटैक के चलते पिताजी की अचानक मौत से महेश टूट चुका था. घर के खर्च से लेकर बहनों की शादी तक परिवार की सारी जिम्मेदारी अब उसी के कंधों पर आ गई थी. इसी दरम्यान उसे एक ऐसी सूचना मिली, जिसने उसे हिलाकर रख दिया. महेश को अब तक यही पता था कि उसके पिता के इकलोते वारिस के रूप में उसे उनके बैंक खाते में जमा कुछ पैसे और यह घर मिला है. महेश ने सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस घर में वह रह रहा है, वह उसके पिता ने होम लोन लेकर खरीदा था. अब अपने पिता का कानूनी वारिस होने के नाते महेश को ही होम लोन की ईएमआई भरनी होगी.
टैक्स एवं इन्वेस्टमेंट एक्सपर्ट बलवंत जैन कहते हैं कि किसी व्यक्ति के कानूनी वारिस को प्रॉपर्टी और देनदारी दोनों साथ में मिलते हैं. आपको या तो ये दोनों वसीयत के माध्यम से मिलें या कानूनी वारिस के रूप में. भारत में एक कानूनी वारिस मृत व्यक्ति के कर्ज को चुकाने के लिए जिम्मेदार होता है. आइए इस बारे में विस्तार से जानते हैं. आमतौर पर यह समझा जाता है कि व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी प्रॉपर्टी ही उसके उत्तराधिकारी को मिलती है. बहुत से लोगों को यह बात नहीं पता कि मृतक की देनदारियां भी उत्तराधिकारी को विरासत में मिलती हैं. ये देनदारियां कौन–कौनसी होती हैं.
पहला मॉर्गेज लोन
महेश के पिता ने होम लोन लिया हुआ था. पिता की मृत्यु हो जाने पर जब बैंक को ईएमआई नहीं मिली उसने महेश से संपर्क किया. महेश इकलोता पुत्र है तो लोन उसके नाम पर ट्रांसफर हुआ. अगर महेश के भाई होते, तो ज्वाइंट लोन के रूप में सभी कानूनी वारिसों के नाम यह ट्रांसफर होता. उस स्थिति में सभी भाई इस कर्ज को चुकाने के लिए जिम्मेदार होते.
तो अब महेश को क्या करना चाहिए?
महेश को संबंधित बैंक से बात करनी चाहिए और लोन के पुनर्भुगतान में कुछ राहत मांगनी चाहिए.
यहां आपको पता होना चाहिए कि बैंकों के पास बकाया राशि के भुगतान के लिए मृतक व्यक्ति के वारिसों पर दबाव बनाने का अधिकार नहीं है. लेकिन बैंकों के पास यह अधिकार है कि वे अपना बकाया वसूलने के लिए लोन से संबद्ध प्रॉपर्टी की नीलामी कर सकते हैं.
दूसरा अनसिक्योर्ड लोन
पर्सनल लोन और क्रेडिट कार्ड बकाया जैसे अनसिक्योर्ड लोन के मामले में बैंक को पूरा अधिकार है कि वह कानूनी वारिसों से सारी बकाया राशि वसूल सकता है.
आप क्या कर सकते हैं?
संबंधित बैंक से बात करें और बकाया का भुगतान कर दें.
आपको यह जान लेना चाहिए कि ब्याज पर ब्याज लगने से बकाया राशि बढ़ती चली जाएगी. बैंक कर्ज वसूलने के लिए कानूनी वारिसों के खिलाफ दीवानी मामला भी दायर कर सकता हैं.
ऐसे मामले में उत्तराधिकारी को अपने बचाव के लिए वकील से सलाह लेनी चाहिए.
अगर बैंक के साथ कोई समझौता नहीं होता है तो कानूनी प्रक्रिया बैंक के पक्ष में जाएगी. बैंक सभी उत्तराधिकारियों से कर्ज के हिस्से का भुगतान करने के लिए कह सकता है. अगर यह सिद्ध होता है कि आप वास्तव में लोन का पुनर्भुगतान नहीं कर सकते तो आपको ब्याज के मामले में कुछ राहत मिल सकती है.
तीसरा आयकर
आयकर अधिनियम की धारा 159 के अनुसार अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो कानूनी उत्तराधिकारी को वह सारी राशि चुकानी होती है जो मृतक व्यक्ति को जिंदा रहते चुकानी थी. हालांकि, आपको यह भी पता होना चाहिए कि कानूनी वारिस अपनी जेब से आयकर का बकाया चुकाने के लिए जिम्मेदार नहीं है. कानूनी वारिस उसे विरासत में मिली संपत्ति की सीमा तक ही बकाया आयकर के भुगतान के लिए ही बाध्य है.
चौथा परिजनों व दोस्तों से ली उधारी
परिजनों व दोस्तों से ली गई उधारी से जुड़ा कोई कानूनी दस्तावेज नहीं है तो वारिस इसे चुकाने के लिए कानूनी रूप से बाध्य नहीं है.
मनी9 की सलाह
आपको विरासत में क्या–क्या संपत्ति मिली है और कितनी देनदारी मिली है, इसकी एक विस्तृत सूची बनानी चाहिए. लोन के पुनर्भुगतान में राहत की किसी भी गुंजाइश के लिए अपने बैंक से अवश्य बात करें. आपको अपनी कानूनी जिम्मेदारियों के लिए वकील से भी सलाह लेनी चाहिए