SEBI से क्या चाहती हैं म्यूचुअल फंड्स कंपनियां?

म्यूचुअल फंड्स कंपनियों को मार्केट बेस के सिकुड़ने का डर है.

SEBI से क्या चाहती हैं म्यूचुअल फंड्स कंपनियां?

अपने मार्केट बेस को बचाने के लिए म्यूचुअल फंड कंपनियां अलग-अलग कोशिश कर रही हैं. (Photo Credit: TV9 Bharatvarsh)

अपने मार्केट बेस को बचाने के लिए म्यूचुअल फंड कंपनियां अलग-अलग कोशिश कर रही हैं. (Photo Credit: TV9 Bharatvarsh)

डेट म्यूचुअल फंड्स में लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स और मंहगाई का फायदा खत्म होने के बाद निवेशकों का रुझान फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) की ओर बढ़ा है. देश में लॉन्ग टर्म डेट म्यूचुअल फंड का हिस्सा 3 से 4 लाख करोड़ रुपए के बीच है. म्यूचुअल फंड्स कंपनियों को मार्केट बेस के सिकुड़ने का डर है. अपने मार्केट बेस को बचाने के लिए म्यूचुअल फंड कंपनियां अलग-अलग कोशिश कर रही हैं. म्यूचुअल फंड इन्डस्ट्री सेबी से कंजरवेटिव म्यूचुअल फंड्स में इक्विटी निवेश की लिमिट को 25 से 35 फीसद करने की मांग कर रही है. अगर ऐसा होता है तो ये फंड टैक्स के लिहाज से निवेश करने के लिए फिर से आकर्षक हो जाएंगे.

क्या होते हैं कंजरवेटिव हाइब्रिड फंड?

कंजर्वेटिव हाइब्रिड फंड वो होते हैं जिसमें 75 से 90 फीसद डेट इन्स्ट्रूमेंट में निवेश किया जाता है. बाकी बचा 10 से 25 फीसद हिस्सा इक्विटी या इक्विटी से जुड़े हुए इन्स्ट्रूमेंट में निवेश किया जाता है.

अगर सेबी कंजर्वेटिव म्यूचुअल फंड में निवेश को लिमिट को बढ़ाकर 35 फीसद तक कर देती है. तो इन फंड्स पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स का फायदा फिर से मिलने लगेगा. ऐसे फंड को तीन साल से ज्‍यादा अवध‍ि के बाद रिडीम करने पर लॉन्‍ग टर्म कैपिटल गेन्‍स का फायदा पहले मिलता था और उस पर सिर्फ 20 फीसद की एकमुश्‍त दर से टैक्‍स लगता था. वो भी इंडेक्‍सेशन के फायदे के साथ.

किस तरह लगता है फंड्स पर टैक्स?

सरकार की ओर से टैक्स में बदलाव के बाद अब म्यूचुअल फंड में टैक्स के लिहाज से तीन कैटेगिरी बन गई है. ऐसे फंड्स जो 35 फीसद से कम इक्विटी में निवेश करते हैं, उनपर व्यक्ति के इनकम स्‍लैब के हिसाब से टैक्स लगता है. इन्‍हें डेट फंड की कैटेगिरी में रखा जाता है.

ऐसे फंड जिनमें 65 फीसदी से ज्‍यादा इक्विटी हो उन पर टैक्‍स इक्विटी फंड की तरह लगता है. इक्विटी फंड की यूनिट को एक साल के भीतर बेचने पर शॉर्ट टर्म गेन्‍स माना जाता है और इस पर 15 फीसद की एकमुश्‍त दर से टैक्‍स देना होता है.
इक्विटी फंड की यूनिट को एक साल के बाद बेचने पर जो फायदा होता है उसे लॉन्‍ग टर्म कैपिटल गेन्‍स कहते हैं. इस तरह का एक लाख रुपए तक का गेन्‍स पूरी तरह से टैक्‍स मुक्‍त होता है. लेकिन एक लाख रुपए से ऊपर के गेन्‍स पर 10 फीसद के हिसाब से LTCG टैक्‍स लगता है. इस पर इंडेक्‍सेशन का फायदा भी नहीं मिलता.

ऐसे फंड जिनमें 35 फीसद से कम इक्विटी हो उसे डेट फंड की श्रेणी में रखा जाएगा और इसकी यूनिट बेचने पर इनकम टैक्‍स स्‍लैब के मुताबिक टैक्‍स लगेगा, चाहे होल्डिंग पीरियड कितना भी हो. इस पर इंडेक्‍सेशन का फायदा भी नहीं मिलेगा.

ऐसे फंड जो 35 से 65 फीसद हिस्‍सा इक्विटी साधनों में निवेश करते हैं उन्‍हें हाइब्रिड फंड कहते हैं. ऐसे फंड में अगर होल्डिंग पीरियड 3 साल से कम है तो शॉर्ट टर्म गेन्‍स होगा और 3 साल से ज्‍यादा है तो लॉन्‍ग टर्म कैपिटल गेन्‍स. शॉर्ट टर्म गेन्‍स पर निवेशक के इनकम टैक्‍स स्‍लैब के मुताबिक टैक्‍स लगेगा. लेकिन लॉन्‍ग टर्म कैपिटल गेन्‍स होने पर 20 फीसद की एकमुश्‍त दर से टैक्‍स लगेगा और इसमें इंडेक्‍सेशन का भी फायदा मिलेगा.

इसी नियम का म्‍यूचुअल फंड कंपनियां फायदा उठाना चाह रही हैं. अगर इक्विटी एक्‍सपोजर 35 फीसदी हो गया तो फंड हाइब्रिड कैटेगिरी में आ जाएगा और इंडेक्‍सेशन का भी फायदा मिलेगा.

इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स का मानना है कि सरकार के नए फैसले के बाद कई लोग डेट फंड्स से पैसा निकालकर वापस बैंकों की ओर रूख करेंगे. भारतीय बाजारों में लॉन्ग टर्म डेट म्यूचुअल फंड का हिस्सा 3 से 4 लाख करोड़ रुपये के बीच है. ऐसे में म्यूचुअल फंड्स कंपनियों को मार्केट बेस के सिकुड़ने का डर है.

Published - May 11, 2023, 06:35 IST