देश की सबसे बड़ी अदालत ने मालिकाना हक को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है दाखिल-खारिज या म्यूटेशन का मतलब मालिकाना हक नहीं है. कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि रेवेन्यू रिकॉर्ड में संपत्ति के दाखिल-खारिज (Mutation of Property) से मालिकाना हक नहीं मिल जाता है. साथ ही कोर्ट ने कहा कि इससे मालिकाना हक समाप्त भी नहीं होता है. कोर्ट ने फैसले में कहा कि केवल एक सक्षम सिविल कोर्ट की तरफ से ही संपत्ति का मालिकाना हक तय किया जा सकता है.
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की बेंच ने यह फैसला सुनाया है. बेंच ने कहा कि रेवेन्यू रिकॉर्ड में दर्ज सिर्फ एक एंट्री से व्यक्ति को संपत्ति का मालिकाना हक नहीं मिल जाता है. बेंच ने कहा कि रेवेन्यू रिकॉर्ड या जमाबंदी में एंट्री का केवल ‘वित्तीय उद्देश्य’ होता है. इस तरह की एंट्री के आधार पर व्यक्ति को न तो संपत्ति का मालिकाना हक मिलता है और ना ही मालिकाना हक चला जाता है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दाखिल-खारिज से जुड़ी एंट्री व्यक्ति के पक्ष में कोई अधिकार, टाइटल या उसके हित में कोई फैसला नहीं करती है. कोर्ट ने इस फैसले में स्पष्ट कर दिया है कि राजस्व रिकॉर्ड में दाखिल-खारिज केवल वित्तीय उद्देश्य के लिए है.
कोर्ट ने कहा कि अगर संपत्ति के मालिकाना हक से जुड़ा कोई विवाद है, तो जो पार्टी अधिकार के आधार पर टाइटल / अधिकार का दावा कर रही है, उसे सिविल कोर्ट जाना होगा. वहां पार्टी को अपने अधिकारों को तय कराना होगा, इसके बाद ही सिविल कोर्ट के सामने निर्णय के आधार पर आवश्यक दाखिल-खारिज की एंट्री की जा सकती है.
यहां बता दें कि रेवेन्यू रिकॉर्ड में संपत्ति के हस्तांतरण करने की प्रक्रिया को दाखिल खारिज या म्यूटेशन कहते है. किसी भी संपत्ति की खरीद या बिक्री के बाद उस संपत्ति का दाखिल-खारिज कराना बहुत जरूरी होता है. इस दाखिल-खारिज के बाद ही कानूनी रूप से संपत्ति का खरीदार उसका मालिक बनता है. इसके लिए तहसील में आवेदन करना होता है.