देश में माइक्रो फाइनेंस कंपनियों का कारोबार तेजी से बढ़ रहा है. छोटे कर्जों के लिए बनाए गए नए नियामकीय ढांचे के बाद माइक्रो फाइनेंस इंडस्ट्री (MFI) में 22 फीसद की वृद्धि देखी गई है. भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह सकारात्मक संदेश है. गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों (एनबीएफसी) की ओर से दिए जाने वाले छोटे कर्जों के मामले में एनबीएफसी ने बैंकों को पीछे छोड़ दिया है. एमएफआईएन की माइक्रोमीटर रिपोर्ट के अनुसार 31 मार्च, 2023 तक माइक्रोफाइनेंस उद्योग 3,48,339 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है. इतना ही नहीं एनबीएफसी-एमएफआई ने 39.7% हिस्सेदारी के साथ सबसे बड़े माइक्रोफाइनेंस प्रोवाइडर के तौर पर अपनी जगह बना ली है.
माइक्रोफाइनेंस उद्योग ने 3,48,339 करोड़ रुपए के कुल सकल ऋण पोर्टफोलियो (जीएलपी) के साथ 13 करोड़ ऋण खातों के जरिए 6.6 करोड़ यूनीक उधारकर्ताओं को ऋण मुहैया कराया. जीएलपी में पिछले वर्ष की तुलना में 22% की सालाना वृद्धि दर्ज की गई है. कम आय वाले लोगों व समूहों को लोन देने वालों में एनबीएफसी-एमएफआई सबसे बड़े माइक्रो-क्रेडिट प्रदाता हैं. कुल इंडस्ट्री पोर्टफोलियो में इसकी 39.7% हिस्सेदारी है. इसके बाद बैंकों का 34.2% और स्माल फाइनेंस बैंक (एसएफबी) का 16.6% हिस्सा है. रिपोर्ट के अनुसार सक्रिय माइक्रोफाइनेंस लोन खाते 14.6% बढ़कर 13 करोड़ हो गए हैं.
क्या होती है माइक्रोफाइनेंस कंपनी
माइक्रोफाइनेंस कंपनी मूल रूप से ऐसी वित्तीय संस्थाएं हैं जो छोटे पैमाने पर वित्तीय सेवाएं प्रदान करती हैं. जिन छोटे व्यवसायियों को बैंकों की जटिल प्रक्रिया की वजह से लोन नहीं मिल पाता है. ऐसे लोगों के लिए माइक्रोफाइनेंस कंपनियां बेहतर विकल्प हैं. वे विभिन्न छोटे व्यवसायों या परिवारों को छोटे ऋण प्रदान करते हैं जिनके पास औपचारिक बैंकिंग चैनलों या ऋण के लिए पात्रता नहीं होती है. आमतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 50,000 रुपए से कम के लोन दिए जाते हैं और शहरी के लिए यह सीमा 1,25,000 रुपए है.