Facebook के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग ने हाल में ऐलान किया था कि उनका अगला बड़ा लक्ष्य है कंपनी को ‘मेटावर्स’ में बदलना. टेक्निकल सा समझ आने वाला यह शब्द बीते कुछ सालों में कई बड़ी कंपनियों ने इस्तेमाल किया है. अगर आप साई-फाई फिल्मों के शौकीन हैं, तो कई मौकों पर आपने इस शब्द को सुना होगा. आइए समझते हैं कि क्या है यह मेटावर्स और क्यों जुकरबर्ग इसपर अरबों लगाने को तैयार हैं?
फेसबुक संस्थापक की भाषा में ही समझें तो मेटावर्स एक वर्चुअल दुनिया है, जहां आप अन्य लोगों के साथ डिजिटल तरीके से रह सकते हैं. ये उस इंटरनेट की तरह है, जिसे आप अपने कंप्यूटर या मोबाइल की स्क्रीन पर देखने की बजाय उसमें खुद शामिल हो सकेंगे. लोगों से बातचीत करेंगे, इवेंट्स में हिस्सा लेंगे. सारा अनुभव बिल्कुल वैसा होगा जैसे कि आप वहीं खड़े हैं, जब्कि असल में आप अपने घर पर बैठे होंगे.
मेटावर्स की दुनिया बनाने की तैयारी
अगर आपने नील स्टीफेनसन की 1992 में आई किताब ‘स्नो क्रैश’ पढ़ी है, तो जुकरबर्ग की बताई दुनिया को समझ पा रहे होंगे. इस किताब में पहली बार ‘मेटावर्स’ शब्द का इस्तेमाल हुआ था. इसके विजुअल अनुभव के लिए आप एमेजॉन प्राइम की सीरीज ‘अपलोड’ या ‘रेडी प्लेयर वन’ फिल्म भी देख सकते हैं.
इन किताब, सीरीज, फिल्मों में बताए गए ‘मेटावर्स’ से भी आगे बढ़कर जुकरबर्ग लोगों को वर्चुअल दुनिया का अनुभव देना चाह रहे हैं. सोशल मीडिया से कहीं आगे जाकर लोगों के एक दूसरे से जुड़ने, जगहों का अनुभव लेने, इवेंट्स में शामिल होने के तरीके में बहुत बड़ा बदलाव लाने की तैयारी कर रहे हैं.
अरबों खर्च कर रहे, कैसे करेंगे भरपाई
जुकरबर्ग ने हाल में कहा था कि वे इस प्रोजेक्ट पर बहुत बड़ा दांव लगा रहे हैं. एनालिस्ट्स का अनुमान है कि मेटावर्स की तैयारी में फेसबुक हर साल करीब पांच अरब डॉलर खर्च कर रही है. कंपनी ने अपनी तरफ से कोई आंकड़े जारी नहीं किए हैं, मगर विशेषज्ञों के अनुमानों को कभी झुटलाया भी नहीं है.
मेटावर्स में लगाए जाने वाले अरबों की भरपाई के लिए जुकरबर्ग ने कुछ प्लान बनाए हैं. उन्होंने हाल में बताया था कि कंपनी वर्चुअल दुनिया से जुड़ने के लिए जरूरी हार्डवेयर बना रही है. जुकरबर्ग का कहना है कि हम इन चीजों को किफायती दाम पर बेचेंगे, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग मेटावर्स का हिस्सा बन सकें.
हार्डवेयर एक छोटा जरिया होगा पैसे कमाने का. असल कारोबार निर्भर करेगा कि कितने लोग वर्चुअल दुनिया में आ रहे हैं. जितनी संख्या बढ़ेगी, उतनी बंपर उसकी डिजिटल इकॉनमी होगी. मेटावर्स के अंदर होने वाली खरीदारी से कंपनी को बड़ी उम्मीदें हैं.
मेटावर्स की झलक देने वाले वीडियो गेम्स माइनक्राफ्ट, रोबलॉक्स और फोर्टनाइट को देखें, तो फेसबुक का सोचना गलत नहीं है. मुफ्त में मिलने वाले ये खेल, प्लेयर्स को वर्चुअल सामान बेचकर पैसे कमाते हैं.
जुकरबर्ग का कहना है, ‘मेटावर्स का असल अनुभव होगा एक जगह से दूसरी पर जाने में. अपने खुद के डिजिटल कपड़े और बाकी सामान साथ लेकर इधर से उधर जाने में लोगों को बिल्कुल असल दुनिया का एहसास मिलेगा. इनसे वे और उनका डिजिटल अवतार बाकियों से अलग बनेगा. वे खुद को बेहतर ढंग से एक्सप्रेस कर सकेंगे. इसपर लोगों का निवेश काफी बड़ा होने वाला है.’
इसी के साथ वर्चुअल दुनिया में होने वाली भीड़ कमाई के उस स्रोत को भी आकर्षित करेगी, जिससे फेसबुक ने बीती तिमाही में 28 अरब डॉलर तक कमाए – विज्ञापन. मेटावर्स के भीतर ही विज्ञापन चलाए जाएंगे, जैसा फिलहाल सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर होता है.
जुकरबर्ग का यह प्रोजेक्ट फेसबुक को उस दुनिया का सबसे बड़ा खिलाड़ी बना सकता है, जिसे विशेषज्ञ तकनीक की दुनिया का भविष्य मान रहे हैं.