देश के अलग-अलग हिस्सों से वोकल फॉर लेकर मुहिम के सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं. महिलाएं स्वयं सहायता समूह बना कर, जहां खुद आर्थिकी कमा रही हैं, वहीं अन्य महिलाओं को भी रोजगार मुहैया करा रही हैं. हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में भी महिलाओं की कुछ ऐसी ही मुहिम देखने को मिली है.
दरअसल भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय के सहयोग से चंबा जिले में उद्योग विभाग लेदर क्राफ्ट से जुड़े लोगों को प्रशिक्षित कर रहा है. इन कामगारों को सिर्फ चंबा चप्पल ही नहीं बल्कि प्रयोग में लाए जाने वाले लेडीज पर्स, बेल्ट तैयार करने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. चंबा में तैयार हो रहे है, इन स्थानीय उत्पादों को चंबा सहित बाहरी राज्यों में बिक्री के लिए उपलब्ध करवाया जाएगा, ताकि इस कला से जुड़े कारीगरों की आर्थिकी सुदृढ़ हो सके.
इस बारे में कामगार सुनील कुमार कहते हैं कि वो 25 साल से इस काम से जुड़े हुए हैं. इस बार ट्रेनिंग से हमें चप्पल के अलावा लेदर के अन्य सामान बनाने की तकनीक भी सीखने को मिली है. कामगारों को प्रशिक्षण दे रहे मास्टर ट्रेनर अनिल कुमार कहते हैं कि कामगारों को आर्थिकी सुदृढ़ करने और लेदर को बढ़ावा देने के लिए ये ट्रेनिंग दी जा रही है.
चंबा के स्थानीय लोगों को कहना है कि हर शहर का परंपरागत उत्पाद होता है, जो परंपरागत ढंग से बनाए जाते हैं. चंबा में भी इसी तरह की लेदर की चंबा चप्पल, सेंडिल होती है. इन पर महिलाएं कढ़ाई भी करती है. अब उसमें पर्स, बेल्ट, मोबाइल कवर पर कढ़ाई करके बनाई जा रही है. जाहिर है परंपरागत उत्पादों में आधुनिकता के साथ बनाकर न सिर्फ उत्पाद को आकर्षक बना सकते हैं, बल्कि अपनी आय को भी बढ़ा सकती हैं.
हिमाचल में ही नहीं उत्तराखंड में भी सरकार कुछ इसी तरह की पहल पर फोकस कर रही है. केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि मधुबनी आर्ट की तर्ज पर ऐंपण कला पर फोकस किया जाना चाहिए. इसे टेक्सटाईल से जोड़ते हुए निर्यात पर विशेष ध्यान दिया जाए. प्रदेश में वन स्टाप कारीगर मेलों का आयोजन किया जाए. इनमें स्थानीय कारीगरों के प्रशिक्षण व उन्हें आधुनिक जानकारियां दी जाएं. राज्य के लोकल ऑर्गेनिक उत्पादों को प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता है.
बता दें कि राज्य में 1 से 7 अगस्त तक प्रत्येक जिले में हैंडलूम मेलों का आयोजन होना चाहिए. इन्हें लोकल उत्पादों से जोड़ा जाना चाहिए. इसे ई-कामर्स से भी जोड़ा जाना चाहिए. इसी प्रकार 1 से 15 अगस्त तक टेक्सटाईल मेले भी आयोजित किये जाएं, जिसका फायदा स्थानीय कारीगरों को होगा. हर जिले में एक लोकल प्रोडक्ट को चिन्हित कर उसे प्रोत्साहित किया जाए.