ये एक बड़ी विडंबना है कि इंसान जितना समझदार होता जा रहा है वह जीवन के अलग-अलग पहलुओं में प्रभावशाली शख्सियतों पर उतना ही ज्यादा निर्भर होता जा रहा है. दुनिया में ऐसी प्रभावशाली शख्सियतों का इतना दबदबा कहीं और नहीं है जितना ये लोगों के खरीदारी संबंधित फैसलों पर दिखाई देता है.
एडवर्टाइजिंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया (ASCI) ने आखिरकार इनफ्ल्यूएंसर मार्केटिंग में पारदर्शिता और कामकाज के सही तौर-तरीकों के लिए गाइडलाइंस उतारी हैं.
इन गाइडलाइंस के मुताबिक, एक कंपनी और प्रशावशाली शख्सियत के बीच रिश्ता प्रमुख तौर पर इतने वक्त तक दिखाया जाना चाहिए ताकि लोगों को ये आसानी से समझ आ सके. इसकी भाषा कंज्यूमर्स को आसानी से समझ में आने वाली होनी चाहिए और वीडियो पर ये कम से कम 3 सेकेंड्स तक टिकनी चाहिए.
प्रभावशाली शख्सियतों को सलाह दी गई है कि वे विज्ञापन देने वाली कंपनी से पहले खुद इस बात को लेकर संतुष्ट हों कि विज्ञापन में किए जा रहे दावे सही हैं या नहीं.
डिजिटल मीडिया की खपत बढ़ने के साथ ही कंटेंट और प्रमोशनल एडवर्टाइजमेंट्स के बीच का फर्क खत्म होता जा रहा है. लेकिन, बेहतर खरीदारी के फैसले के लिए कंज्यूमर्स को ये अधिकार होना चाहिए कि किस कंटेंट के लिए कंपनियों या ब्रैंड्स द्वारा पैसा दिया जा रहा है. कंपनी और प्रभावशाली शख्सियतों के बीच के रिश्ते केवल पैसे पर आधारित नहीं होने चाहिए.
भारत में हमने राजनीतिक नेताओं को भी ऐसी अलग-अलग सर्विसेज के प्लेटफॉर्म्स पर आते देखा है जो आम लोगों को ठगने के काम में शामिल रही हैं. ASCI गाइडलाइंस को समाज के अलग-अलग तबके तक पहुंचाने की जरूरत है ताकि कोई भी शख्स आम लोगों के हितों को नुकसान न पहुंचा सके.
दुर्भाग्य से ASCI एक सेल्फ रेगुलेटेड संस्था है और इसके पास कोई कानूनी ताकत नहीं है. अगर एडवर्टाइजर्स और प्रभावशाली शख्सियतें गाइडलाइंस का उल्लंघन करती हैं तो इस संस्था के पास ऐसी कोई ताकत नहीं है जिससे इन्हें नियमों का पालन करने के लिए मजबूर किया जा सके.
लेकिन, इसे लेकर आम लोगों को ज्यादा जागरूक होना पड़ेगा और प्रभावशाली शख्सियतों की भी इसमें जिम्मेदारी है कि ग्राहकों के हितों के साथ किसी भी कीमत पर खिलवाड़ न हो सके.