डीमैट खाता कैसे खुलवाएं, जानिए डीमैट से जुड़ी हर जानकारी

पिछले 4 साल में डिस्काउंट ब्रोकिंग कंपनियों ने फुल-सर्विस ब्रोकिंग कंपनियों को पीछे छोड़ दिया है.

डीमैट खाता कैसे खुलवाएं, जानिए डीमैट से जुड़ी हर जानकारी

हाल के वर्षों में डीमैट अकाउंट काफी तेजी से बढ़े हैं. इसकी वजह है स्टॉक इन्वेस्टमेंट को लेकर लोगों में बढ़ती जागरूकता. साथ ही सेबी की कोशिशों और लोगों के रिस्क लेने की क्षमता में वृद्धि से भी युवा भारतीय स्टॉक मार्केट में निवेश के रास्ते पर बढ़ रहे हैं. पहले लोगों का पैसा सेविंग अकाउंट में सालों-साल पड़ा रहता था लेकिन अब बहुत सारे लोग अपना पैसा स्टॉक में लगाने लगे हैं…यही वजह है क‍ि जनवरी 2024 तक देश में 14.39 करोड़ डीमैट अकाउंट थे…स्टॉक में निवेश सीधे डीमैट अकाउंट के जरिए या म्यूचुअल फंड के जरिए किया जा रहा है. तो आज हम आपको 9 पॉइंट्स में बताएंगे क‍ि डीमैट अकाउंट क्या होता है, आपके ल‍िए किस तरह का अकाउंट सही रहेगा और इसके अलावा डीमैट अकाउंट से जुड़ी तमाम चीजें…

1. सबसे पहले तो जान लें क‍ि डीमैट अकाउंट क्या होता है?

डीमैट का फुल फॉर्म Dematerialized Account होता है। ये अकाउंट इलेक्ट्रॉनिक रूप से शेयर बाजार में खरीदे गए शेयर, डिबेंचर, बॉन्ड, ETF जैसे फायनेंशियल प्रोडक्ट्स को स्टोर करने की सुविधा देता है। सीधे शब्दों में कहें तो डीमैट अकाउंट बैंक लॉकर की तरह काम करता है जो आपके शेयरों को सुरक्षित रखता है.

2. सही depository participant चुनना जरूरी

जब भी आप डीमैट अकाउंट ओपन करें तो आपको सही depository participant यानी DP चुनना उतना ही जरूरी है जितना की आसान बैंकिंग के लिए सही बैंक मेें खाता खोलना. आपका डीमैट अकाउंट स्टॉक में निवेश और derivatives, bonds, commodities, और mutual funds में ट्रेडिंग करने का माध्यम बनता है.

3. कोव‍िड में तेजी से बढ़े डीमैट अकाउंट

कोविड के दौरान डीमैट अकाउंट खोलने में तेजी आई. लोगों ने मोबाइल के जरिए ऐप डाउनलोड करके शेयर में निवेश करना शुरू कर दिया…इस आसानी की वजह से Groww और Zerodha जैसे डिस्काउंट ब्रोकरेज ऐप्स का कारोबार तेजी से बढ़ा है. भारत में 40 फीसद से ज्यादा एक्टिव डीमैट अकाउंट इन ऐप्स के जरिए खोले गए हैं.

ऐसे में सवाल उठता है कि डिस्काउंट ब्रोकिंग कंपनियों और फुल-सर्विस ब्रोकिंग कंपनियों में से कहां डीमैट अकाउंट खोलना चाहिए?

4. पहले आप डिस्काउंट ब्रोकिंग कंपनियों को समझ लें

दरअसल पिछले 4 साल में डिस्काउंट ब्रोकिंग कंपनियों ने फुल-सर्विस ब्रोकिंग कंपनियों को पीछे छोड़ दिया है. वजह है कि वो कम ब्रोकरेज चार्ज या फ्लैट फीस लगाती हैं, इसके अलावा डीमैट अकाउंट मैंटेन करने के चार्जेज बहुत ही कम या फ्री हैं. वे stocks, commodities, और forex में हाई-स्पीड ट्रेडिंग की सुविधा भी देती हैं यानी इंस्टेंट इन्वेस्टमेंट कर सकते हैं. इसके अलावा इन डिस्काउंट ब्रोकिंग कंपनियों ने डीमैट अकाउंट खोलने की प्रक्रिया भी आसान कर दी है. यहां काफी कम पेपरवर्क की जरूरत होती है और एक दिन में अकाउंट सेटअप हो सकता है. मोबाइल के जरिए आसानी से ऐप्स का इस्तेमाल करने की सुविधा की वजह से भी ये पॉपुलर हैं.

5. अनुभवी हैं फुल-सर्विस ब्रोकिंग कंपनियां

डिस्काउंट ब्रोकिंग कंपनियों के उलट देखें तो ट्रेडिशनल यानी Full-service broking कंपनियों के पास शेयर मार्केट का ज्यादा अनुभव है. जैसा कि नाम से ही पता चलता है, Full-service broking कंपनियां फुल सर्विस देती हैं. यानी वे buy और sell orders सहित कई सर्विस मुहैया करवाती हैं. वे मार्केट के मौजूदा ट्रेंड्स पर रिसर्च, इंडस्ट्री से जुड़ी रिपोर्ट आदि उपलब्ध कराती हैं. इसके अलावा वे asset management और retirement planning services भी देती हैं और निवेशकों को अलग-अलग फाइनेंशियल प्रोडक्ट्स में निवेश करने की सुविधा देती हैं.

6. अब इस सवाल पर लौटते हैं कि discount broking और Full-Service broking में से आपके लिए सही क्या है?

कम ब्रोकरेज फीस के ल‍िए डिस्काउंट ब्रोकिंग कंपनि‍यां चुनी जा सकती हैं… दरअसल जो लोग फुल टाइम ट्रेड करते हैं, उनके लिए कम ब्रोकरेज फीस एक प्रायोरिटी होती है और इस वजह से वो डिस्काउंट ब्रोकिंग कंपनी को चुन सकते हैं… समय के साथ महंगी फीस की वजह से आपके मुनाफे पर असर पड़ सकता है…खासकर तब जब आप थोड़े समय में लगातार शेयर खरीद-बेच रहे हैं.

7. लेकिन डिस्काउंट ब्रोकिंग प्लेटफॉर्म कितने कारगर तरीके से काम करते हैं?

इसका आंकलन करना बेहद जरूरी है. स्लो, ग्लिची यानी रुक-रुककर काम करने वाले प्लेटफॉर्म पर तेजी से ट्रेडिंग करने की आपकी क्षमता पर असर पड़ेगा जिससे आप अपनी पसंदीदा कीमत पर शेयर खरीदने या बेचने से चूक सकते हैं.

8. अब ये समझते हैं कि फुल सर्विस ब्रोकरेज किन के लिए सही हैं?

अगर आपने ट्रेडिंग नई-नई शुरू की है तो आप फुल सर्विस ब्रोकरेज को चुन सकते हैं… ऐसा इसलिए कि ये आपको रिसर्च रिपोर्ट और ट्रेडिंग की सलाह देते हैं… लेकिन डिस्काउंट ब्रोकरेज की तुलना में फुल-सर्विस ब्रोकर आमतौर पर ज्यादा फीस चार्ज करते हैं. ऑपरेशनल कॉस्ट ज्यादा होने के कारण इनकी सर्विस महंगी होती है.

9. तो फिर क‍िसके ल‍िए क्या सही है?

हम ये कह सकते हैं कि डिस्काउंट ब्रोकिंग कंपनि‍यां उनके लिए सही हैं जिनके पास ट्रेडिंग का पुराना अनुभव है… और जो निवेश के फैसले खुद लेते हैं… वहीं full-service broking services नए ट्रेडर्स के लिए सही हैं क्योंकि उन्हें गाइडेंस, एडवाइस और सपोर्ट की जरूरत होती है जो ये कंपनियां उन्हें दे सकती हैं.

Published - April 12, 2024, 11:38 IST