आपने चार पहियों वाला ट्रैक्टर तो देखा होगा, लेकिन गुजरात के गांवों में एक 3 पहियों वाले ट्रैक्टर ने धूम मचा दी है क्योंकि बड़ी ब्रैंड के ट्रैक्टर के मुकाबले आधी कीमत में मिलने वाले इस अनोखे ट्रैक्टर ने किसानों की लागत 50% घटा दी है. आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि इसको किसी इंजीनियर ने नहीं, बल्कि 10वीं पास एक छोटे से व्यक्ति ने बनाया है जो गुजरात के गांवो में खूब बिक रहा है. अमरेली जिले के चितल गांव में रहने वाले उपेंद्रभाई राठौर पिछले 15 साल से किसानो के लिए तीन पहियों वाला अनोखा ट्रैक्टर बना रहे हैं.
40 वर्षीय उपेंद्रभाई का परिवार पीढ़ियों से किसानों के लिए उनकी जरूरत के हिसाब से औजार बनाने के फैब्रिकेशन काम के साथ जुड़ा है और तिपहिया ट्रैक्टर बनाने का हुनर भी उन्हें अपने पिता से विरासत में मिला है. उपेन्द्रभाई ने मनी9 के साथ बातचीत में कहा, “मेरे पिता की एक वर्कशॉप थी और दसवीं पास करने के बाद मैं उनकी मदद करता था. मशीनों की भाषा को समझना मैंने वहीं से सीखा. शुरूआत में मुझे पिताजी की वर्कशॉप में कुछ न कुछ करते रहना अच्छा लगता था. फिर जब किसान आते और उन्हें अपने खेतों के लिए कोई औजार बनाने के लिए कहते तो मैं भी उनके साथ जुट जाता था. बस इस तरह से हमारी शुरुआत हुई और फिर बहुत अलग-अलग चीजें हम करने लगे.”
दरअसल, वर्ष 1996 में गुजरात के देवालिया गांव के मनसुखभाई जगानी ने बुलेटसांती का आविष्कार किया था. उन्होंने बुलेट मोटरसाइकिल का इस्तेमाल करके किसानों के लिए एक छोटा-सा ट्रैक्टर बनाने का प्रयास किया था जो कि बहुत सफल नहीं हुआ था. बाद में 2005 में उपेंद्रभाई ने बुलेट को और थोड़ा एडवांस करके इसे एक तिपहिया ट्रैक्टर का रूप दिया. उपेंद्रभाई बताते है कि, “शुरू में हमने बुलेट मोटरसाइकिल का ही इस्तेमाल किया. लेकिन फिर हमने अपने मॉडल से बुलेट को हटा दिया और दूसरे मॉडल के साथ काम किया. हम अमेरिकी कंपनी का इंजन मंगाते हैं, फिर दूसरे पार्ट्स असेंबल करके तिपहिया ट्रैक्टर बनाते हैं.”
उपेंद्रभाई बताते हैं कि जब हमने तिपहिया ट्रैक्टर बनाया था, तब गुजरात में ‘सनेडो…सनेडो, लाल-लाल सनेडो…‘ गाना काफी लोकप्रिय था. हमारा ट्रैक्टर जहां जाता वहां, किसान उसे सनेडो ट्रैक्टर से ही बुलाते थे, फिर यही नाम इसके साथ जुड़ गया. अब हम चाहकर भी इस नाम को नहीं बदल सकते, क्योंकि अब यही नाम इसकी पहचान बन चुका है.
अहमदाबाद की सृष्टि संस्था के साथ साजेदारी में उन्होंने एक प्रोजेक्ट के तहत अफ्रिका में भी इस ट्रेक्टर की निर्यात की थी. सृष्टि संस्था ने अफ्रीका और केन्या में कुछ यूनिवर्सिटी और माइक्रो-एंटरप्राइज के साथ संपर्क करके वहां के देशो में भी इसे पहुंचाया है. केन्या की एक टीम ने उपेंद्रभाई की वर्कशॉप का दौरा भी किया और उनके ट्रेक्टर को इस्तेमाल करके भी देखा.
उपेंद्रभाई बताते हैं कि अभी इस तिपहिया ट्रैक्टर के लिए गुजरात के गांवो से ही ज्यादातर ऑर्डर मिल रहे हैं. हमारे ट्रैक्टर की डिजाइन इतनी सरल हैं, कि दूसरे लोग भी इसे बनाने लगे हैं, और सिर्फ चितल में ही 50-60 जगहों पर तिपहियां ट्रैक्टर का उत्पादन हो रहा हैं.
उपेंद्रभाई बताते है कि, “चितल में हमारा कारखाना हैं, जहां से सालाना 100 ट्रैक्टर बना लेते हैं. हमारे एक ट्रैक्टर की औसतन कीमत 1.5 रूपये गीनके चले तो हम साल में 1.5 करोड़ रूपये का कारोबार करते हैं, जिसमें हमारा मार्जिन 10-15 फीसदी के करीब हैं.” यानि, दसवीं पास उपेंद्रभाई एक साल में आसानी से 15-22 लाख रूपये (महीने 1.5 लाख रूपये से 1.75 लाख रूपये) की कमाई कर लेते हैं.
उपेंद्र भाई बताते हैं कि, उन्हें इस ट्रैक्टर के लिए अहमदाबाद की सृष्टि संस्था से सृष्टि सम्मान दिया जा चुका है. इसके अलावा उन्हें राष्ट्रपति भवन में जानेमाने वैज्ञानिक डॉ. R. A. माशेलकर के हाथों से GYTI (गांधीयन यंग टेकनोलोजिकल इनोवेशन) पुरस्कार भी मिला है जो समाज के लिए किए गए अनोखे काम के लिए प्रदान किया जाता है.
सनेडो ट्रैक्टर की कीमत 1.39 लाख रुपये से 1.60 लाख रुपये है. 10 हॉर्स-पावर के ये ट्रैक्टर निजी कंपनियों के मिनी ट्रैक्टर या बड़े ट्रैक्टर की तुलना में काफी किफायती हैं, क्योंकि मिनी-ट्रैक्टर 2.5 लाख रुपये से 3 लाख रुपये में मिलता है, वहीं बड़ा ट्रैक्टर 6-8 लाख रुपये में मिलता है.
उपेंद्र भाई अपने सनेडो ट्रेक्टर के फायदे के बारे में बताते हैं कि बड़े ब्रांड के मिनी ट्रैक्टर में 15-16 हॉर्स-पावर का इंजन लगता है इसलिए उसमें एक दिन में करीब 12 लीटर डीजल लगता है. इसके मुकाबले सनेडो ट्रैक्टर 5-6 लीटर डीजल में किसानों का काम कर लेता है और उन्हें एक दिन में 500 रुपये तक का फायदा कराता है.
वे कहते हैं, “हमारा ट्रैक्टर किसानों के बीच काफी मशहूर है क्योंकि कम लागत और अच्छी क्वालिटी के साथ-साथ इसकी मेंटेनेंस कॉस्ट भी कम है.”
सौराष्ट्र के ज्यादातर किसान कपास की खेती करते हैं, इसलिए, उन्हें ज्यादा हॉर्स-पावर वाले ट्रैक्टर की जरूरत नहीं है. हमारा ट्रैक्टर आसानी से कपास के खेत में चलता है और आगे एक व्हील होने की वजह से सरलता से घूम जाता है, यू-टर्न लेने में आसानी रहती है.
बड़े ब्रैंड के मिनी-ट्रैक्टर का वजन 600-700 किलोग्राम है, वहीं सनेडो ट्रैक्टर का वजन 400 किलोग्राम है, इसलिए खेत में इसको चलाने के मिट्टी की मजबूती बनी रहती है.
वे कहते हैं कि आप चाहें तो हमारे ट्रैक्टर को आसानी से थ्री-व्हीलर और फोर-व्हीलर में तबदील कर सकते हैं. आप इसके साथ दवाई डालने का पंप भी जोड़ सकते हैं. हमारा ट्रैक्टर आसानी से 1 टन वजन खींच लेता है. मजदूरों को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाना हो या दूसरा कोई सामान का परिवहन करना हो, हमारा ट्रैक्टर आसानी से ये काम कर लेता हैं. चाहे 500 एकड़ का खेत हो तो भी सनेडो ट्रैक्टर आसानी ने से सारा काम कर लेता है, क्योंकि ट्रैक्टर का ज्यादा ताकत वाला होना जरूरी नहीं है. उपेंद्रभाई बताते हैं कि उनका ट्रैक्टर छोटे किसानों के लिए अच्छा विकल्प हैं.
उपेंद्रभाई ने अपने भाई के साथ मिलकर ट्रेक्टर के अलावा भी और कई छोटे-बड़े इनोवेशन किए हैं. गन्ने से पत्ते निकालने की प्रक्रिया काफी जटिल हैं, और काफी वक्त लेती हैं और कई बार मजदूरों को चोट भी आती हैं. इस समस्या को हल निकालते हुए कुछ दिन पहले, उन्होंने हाथ से चलने वाला एक ऐसा यंत्र बनाया जिससे कि आसानी से गन्ने के पत्तों को मिनटों में निकाला जा सकता है. इस यंत्र की कीमत मुश्किल से 500 रुपये है.