कचरा बीनने वालों की जिंदगी में रंग भरने वाले संदीपभाई ने खड़ा किया 200 करोड़ का धंधा

संदीप पटेल के साथ जुड़े 1,800 कचरा बीनने वालों को होती है 35% ज्यादा इनकम. कचरा बीनने वाले भी अब लेते है सेविंग और इंश्योरेंस का बेनेफिट.

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कभी 68 इन्वेस्टर्स ने पैसा देने से मना किया था आज संदीप पटेल के कारोबार में पैसा लगाने वालों की लाइन लगी है.

कभी 68 इन्वेस्टर्स ने पैसा देने से मना किया था आज संदीप पटेल के कारोबार में पैसा लगाने वालों की लाइन लगी है.

68 वेंचर कैपिटल (VC) इन्वेस्टर्स के रिजेक्ट करने, भयानक आग से प्लांट खाक हो जाने, गुंडों से मिलती धमकियां और ऐसी कई दूसरी मुसीबतों के बीच से उभर कर उठे संदीपभाई पटेल आज चलाते हैं भारत की सबसे बड़ी और सबसे ज्यादा निवेश पाने वाली डिजिटल ड्राई वेस्ट मैनेजमेंट कंपनी. अहमदाबाद के 42 वर्षीय संदीपभाई कैसे कचरे के काम से जुड़े लोगों की इनकम बढ़ाकर उनके जीवनस्तर को ऊपर उठा रहे हैं इसकी कहानी काफी दिलचस्प है.

मल्टी-मिलियन डॉलर स्टार्ट-अप

पटेल की कंपनी नेप्रा रिसोर्सिस एक दिन में 560 टन ड्राई वेस्ट हैंडल करती है. इस हिसाब से ये भारत की सबसे बड़ी ड्राई वेस्ट कंपनी है. एक वक्त था जब इन्वेस्टर फंड देने से मना करते थे, लेकिन अब 200 करोड़ रुपये से अधिक फंड पाने वाली ये सबसे बड़ी वेस्ट मैनेजमेंट स्टार्ट-अप है और हाल ही में आविष्कार कैपिटल और आशा इंपैक्ट के अलावा सिंगापुर स्थित सर्कुलेट कैपिटल ने इन कंपनी में 1.8 करोड़ डॉलर की सीरिज सी फंडिंग की है. आइए जानते हैं पटेल के इस सफर के बारे में.

स्वदेश की पुकार

गुजराती पटेल परिवार में जन्मे संदीपभाई बहन के आग्रह को देख MBA करने लंदन तो पहुंच गए, लेकिन 2002 में भारत वापस आ गए.

पटेल अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए Money9.com को बताते हैं, “मैं भारत में ही कुछ करना चाहता था. मेरे पिताजी पेशेवर थे, लेकिन मेरे मन में कॉलेज के दिनों से ही कारोबारी बनने का विचार जन्म ले चुका था. मेरे दोस्त कारोबारी परिवार से थे, उन्हें देख मैंने भी खुद का कारोबार डालने की ठान ली थी.”

ट्रांसपोर्ट, IT और केमिकल कारोबार

लंदन और भारत में कुछ महीने नौकरी करने के बाद 2003 से 2011 तक पटेल ने ट्रैवल बिजनेस, IT-BPO बिजनेस और फिर केमिकल ट्रेडिंग बिजनेस किया.

पटेल कहते हैं, “मैं रिटेल या वेस्ट में काम करना चाहता था, लेकिन रिटेल सेगमेंट में पहले से ही बड़ी कंपनियां थीं, इसलिए मैंने वेस्ट सेगमेंट चुना. केमिकल ट्रेडिंग कारोबार के वक्त मुझे भारत के असंगठित ड्राई वेस्ट मेनेजमेंट सेक्टर को बदलने का विचार आया था.”

2011 से शुरू हुआ नया सफर

वेस्ट सेगमेंट में काम करने के लिए पटेल ने 2006 से गहन रिसर्च शुरू कर दी थी. Nepra Resource Management के को-फाउंडर और CEO संदीप पटेल कहते हैं, “मैंने केमिकल ट्रेडिंग कारोबार के दौरान ही वेस्ट बिजनेस के साथ जुड़ी हर बात जानने और समझने के पढ़ना शुरू कर दिया था. मैं सवेरे 3 बजे तक पढ़ता था. केवल अहमदाबाद ही नहीं दूसरे शहरों में कचरे से जुड़ा काम कैसे होता वह समझने के लिए मैं वहां पहुंच जाता था. आखिर में 2011 में मैंने सब कुछ छोड़ केवल वेस्ट मैनेजमेंट कारोबार शुरू कर दिया.”

गुंडों की धमकियां

पटेल ने जब वेस्ट सेगमेंट में बिजनेस शुरू किया तो लोग हंसते थे और बोलते थे कि लंदन से लौटा और इतना पढ़ा-लिखा लड़का अब कचरे का बिजनेस करेगा.

पटेल कहते हैं, “मेरे दोस्त दूसरे एसेट में निवेश करते थे तब मैंने वेस्ट बिजनेस में पैसे लगाए. 7 कर्मचारी से शुरुआत की. हम कचरा इकट्ठा करके उसे रिसाइकल करते थे, लेकिन प्रॉफिट नहीं होता था. दूसरे कारोबारी कहते थे, तू इसमें से कभी पैसा नहीं कमा सकेगा, छोड़ दे यह बिजनेस,” कई प्रतिस्पर्धी कारोबारियों ने उन्हें गुंडों से धमकियां भी दिलवाईं.

68 बार रिजेक्शन

2011 से 2013 तक पटेल ने फंड के लिए 70 वैंचर केपिटल (VC) इंवेस्टर का संपर्क किया था, लेकिन 68 इन्वेस्टर्स ने उन्हें फंड देने से मना कर दिया था. “उस वक्त भारत में 90 VC इंवेस्टर थे और मैंने 70 का संपर्क किया था.” 68 टाइम रिजेक्शन के बावजूद पटेल का हौंसला बुलंद था, और आखिर 2013 में उन्हें 3 करोड़ रुपये का पहला फंड मिला.

आग में प्लांट हुआ खाक

सबसे बड़े हादसे को याद करते हुए संदीपभाई बताते हैं कि फरवरी, 2013 में मिले फंड का इस्तेमाल अहमदाबाद के गत्ता प्लांट में किया था.

वे कहते हैं, “लेकिन मई में इस प्लांट में आग लगने से भारी नुकसान झेलना पड़ा और इन्वेस्टर्स के फंड का आधा पैसा उस आग में धुंआ बन गया.”

वे कहते हैं कि उस वक्त हमारी हालत बहुत खराब थी, कहीं से कोई जुगाड़ नहीं हो रही था. घर चलाने के लिए दोस्तों से पैसे उधार मांगने की और मार्केट से ब्याज पर पैसे लेने की नौबत आ गई थी. लेकिन, पटेल ने केवल 3 दिन में उस प्लांट को ठीक करके फिर से काम शुरू कर दिया.

कचरे को बनाया सोना

संदीपभाई का दावा है कि उनके साथ काम जुड़े हुए कचरा बीनने वालों को 35% अधिक आमदनी होती है. कचरा बीनने वालों को हम वजन में धोखा नहीं देते और तुरंत पैसा देते हैं. कई कर्मचारी जो पहले साइकिल पे कचरा लेकर आते थे आज उन्होंने ड्राइवर रख लिए हैं और उनकी गाड़ियां कचरा लेने आती हैं.

जो महिलाएं मुश्किल से 3,000 रुपये कमाती थीं. आज वे 8,000 रुपये से ज्यादा कमा कर बच्चों की शिक्षा के लिए सेविंग करती हैं. हम सारे कम्प्लायंस का पालन करते हैं और कर्मचारियों को इंश्योरेंस का बेनेफिट भी देते हैं, जो असंगठित क्षेत्र के लोगों के लिए एक बड़ी बात है.

ओला, उबर जैसी टैक्नोलोजी

“रिसाइकल करने वालों की आवश्यकताओं के अनुसार कचरे को अलग करने का काम काफी जटिल है, जो इस व्यवसाय को बढ़ाने में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है. इस समस्या को दूर करने के लिए वे ट्रेसबिलिटी और ट्रैकिंग से लेकर सॉर्टिंग तक हर चीज के लिए पहले दिन से ही टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रहे हैं.

कचरा बीनने वाले के मोबाइल ऐप पर चेहरे की पहचान से लेकर कलेक्टर यानि ट्रांसपोर्टर और इस तरह, सॉर्टिंग प्लांट में संग्रह से लेकर डिलीवरी तक एंड-टू-एंड डिजिटल सिस्टम से काम होता है.

टार्गेट

नेप्रा के साथ अहमदाबाद और इंदौर के 1,800 कचरा बीनने वाले जुड़े हैं. 2019 में 100 करोड़ रुपये और 2020 में 175 करोड़ रुपये का टर्नओवर करने वाली नेप्रा को 2021 में 200 करोड़ रुपये से ज्यादा टर्नओवर करने की उम्मीद है.

पटेल की कंपनी ने 10% EBITDA हासिल कर लिया है. अहमदाबाद, पुणे, जामनगर, वापी, इंदौर जैसे शहरों में प्लांट शुरू करने वाले पटेल का टारगेट अगले 6-8 महीनों में 2,500 टन ड्राई वेस्ट हैंडलिंग का है और 2025 तक 25 शहरों के 50,000 से ज्यादा कचरा बीनने वालो को जोड़ने का है.

क्यों हैं इन्वेस्टर बुलिश

दूसरे देशों की तरह भारत में भी ESG (Environment, Sustainability, Governance) का महत्व बढ़ रहा है. आने वाले वर्षों में यह तीन पहलू को प्रमुख स्थान पर रखने वाली कंपनीयां जबरदस्त वृद्धि करेगी ऐसी उम्मीद है, इसलिए वित्तीय वर्ष 2020-21 में भारत के ESG फंड्स में निवेशकों ने 2019-20 के मुकाबले 76% अधिक यानी 3,686 करोड़ रुपये का निवेश किया है.

मार्केट रिसर्च एनालिस्ट मनीष शर्मा बताते हैं, “नेप्रा रिसोर्सिस एक डिजिटल कंपनी होने के साथ साथ पर्यावरण और सामाजिक इंपैक्ट वाली कंपनी है और इसीलिए इन्वेस्टर इसमें पैसा लगा रहे है.”

साइकिल का शौक

संदीपभाई को पहले से ही स्पोर्ट में रुचि है और वह कोलेज में साइक्लिस्ट भी रह चुके है. वे कहते हैं, “मैं हर रोज 20 किमी साइकिल चलाता हूं और मेरा टार्गेट 40 किलोमीटर तक पहुंचने का है.”

कैसे होता है सबको फायदा

नेप्रा रिसोर्सिस शहर से कचरा कलेक्ट करती है, इसलिए शहर में रहने वालों को फायदा होता है, यह कचरा कलेक्ट करने और ट्रांसपोर्ट करने वालों को अच्छा भाव मिलता है इसलिए उन्हें फायदा होता है. नेप्रा इस कचरे को रिसाइकल करती है इसलिए पर्यावरण को फायदा होता है. इस तरह से नेप्रा रिसोर्सिस एक सस्टेइनेबल एन्वार्यमेंट को बढ़ावा देने का काम कर रही है.

Published - July 20, 2021, 04:00 IST