अनाज की महंगाई से लड़ रही सरकार ने किसानों को गेहूं और अन्य रबी फसलों की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए गेहूं सहित सभी रबी फसलों का समर्थन मूल्य बढ़ाया है. लेकिन इस बढ़ोतरी के बावजूद अधिकतर रबी फसलों का मंडी भाव समर्थन मूल्य से ऊपर ही है. नई फसल आने के समय भी अगर स्थिति ऐसी ही बनी रही तो सरकार को अपने भंडार के लिए अनाज खरीद का लक्ष्य पूरा कर पाना मुश्किल होगा. सरकार ने गेहूं के लिए 2125 रुपए प्रति क्विंटल का समर्थन मूल्य घोषित किया है जबकि मंडी में गेहूं 2300 रुपए के ऊपर बिक रहा है. सरसों, मसूर और जौ को लेकर भी यही स्थिति है. मंडी का भाव समर्थन मूल्य से ऊपर है.
पिछले साल सरकार ने गेहूं के लिए 2015 रुपए प्रति क्विंटल का MSP घोषित किया था और समर्थन मूल्य घोषणा के समय अधिकतर मंडी में भाव MSP के नीचे था जिस वजह से उम्मीद थी कि किसान मंडी भाव से ऊपर घोषित हुए समर्थन मूल्य पर सरकार को गेहूं बेचेंग. लेकिन फसल उत्पादन घटने की वजह से गेहूं की खरीद उम्मीद से बहुत कम रही थी.
मंडी भाव समर्थन मूल्य से बहुत ऊपर
2020 में सरकार ने गेहूं के लिए 1975 रुपए का MSP घोषित किया था. घोषणा के दौरान अधिकतर मंडियों में भाव समर्थन मूल्य से बहुत नीचे था. जब नई फसल मंडियों में पहुंची तो उस समय भी मंडी भाव कम था. इसी वजह से किसानों ने अपनी फसल का अधिकतर हिस्सा समर्थन मूल्य पर सरकार को बेचा और सरकार की गेहूं खरीद 433 लाख टन के रिकॉर्ड स्तर तक पहुंची. लेकिन इस बार स्थिति विपरीत है. मंडी भाव समर्थन मूल्य से बहुत ऊपर है. गेहूं की मांग तथा सप्लाई की स्थिति देखते हुए लग नहीं रहा कि नई फसल के समय भी गेहूं की कीमतों में ज्यादा कमी होगी. ऐसा हुआ तो किसान भी सरकार को गेहूं बेचने के बजाय मंडी में बेचने को ज्यादा तरजीह देंगे और सरकार के अनाज भंडार फिर खाली रहेंगे.
गेहूं का स्टॉक 14 साल के निचले स्तर पर
सरकार के गोदामों में गेहूं का स्टॉक वैसे ही 14 साल के निचले स्तर पर है. कुल अनाज स्टॉक 5 साल में सबसे कम. इस साल चावल का उत्पादन भी पिछले साल से कम अनुमानित है और ऊपर से सरकार ने फ्री राशन स्कीम को भी दिसंबर तक बढ़ा दिया है. यानी अनाज के लिए मांग ज्यादा है सप्लाई कम है. रही बात ग्लोबल सप्लाई की तो वहां भी हालात ठीक नहीं. दुनिया में एक्सपोर्ट होने वाले कुल गेहूं का एक चौथाई हिस्सा रूस और यूक्रेन से आता है लेकिन दोनों के बीच छिड़े युद्ध ने इस सप्लाई को भी घटा रखा है. मांग और सप्लाई के इस पूरे गणित ने गेहूं की कीमतों को रिकॉर्ड ऊंचाई तक पहुंचा दिया है. ऐसे में MSP में बढ़ोतरी के बावजूद सरकार को अपना अनाज भंडार भरने के लिए मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा.