महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देने के लिए सरकार ऐसे तरीके खोजने पर काम कर रही हैं जिससे महिलाओं के घरेलू काम का देश के सकल घऱेलू उत्पाद (GDP) में योगदान को मापा जा सके. इसके लिए महिलाओं की ओर से खर्च किए जाने वाले समय की गणना के लिए एक सर्वे पर विचार किया जा रहा है. सरकार इन आंकड़ों की जानकारी आर्थिक सर्वे में दे सकती है.
देश में नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस (एनएसओ) टाइम यूज सर्वे कराता है जिससे पता चलता है कि भारतीय कितना समय किन कार्यों में बिताते हैं. सरकार इस सर्वे के इस्तेमाल से पता लगाने की कोशिश कर रही कि भारतीय महिलाएं घर का काम करने में कितने घंटे बिताती हैं. एक बार जब रोजाना आधार पर ये जानकारी मिलने लगेगी तो सरकार ऐसे तरीके पर काम करेगी जिससे महिलाओं के GDP में घरेलू काम के योगदान को मापा जा सके.
क्या है अनुमान?
एसबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक अगर घरेलू महिलाओं के कामकाज का भुगतान किया जाए तो उनका योगदान जीडीपी के 7.5 फीसद के बराबर होगा. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने भी इसी तरह की रिपोर्ट जारी की थी. इस संगठन ने भी घरेलू महिलाओं के कामकाज का भुगतान करने का सुझाव दिया था. भारत में भी पिछले एक दशक से इस मुद्दे पर बहस चल रही है लेकिन यह योजना अभी तक सिरे नहीं चढ़ पाई है. साल 2019 के टाइम सर्वे के मुताबिक बिना सैलरी के काम पर महिलाएं दिन के औसतन पांच घंटे बिताती हैं.
क्या होगा फायदा?
वर्तमान में कई कम्पनियां अपने कर्मचारियों को उनके हाउस हेल्प या ड्राइवर की सैलरी आदि के लिए अलग से पेमेंट करती हैं. इस भुगतान पर टैक्स में छूट मिलती है जिससे टैक्स की देनदारी कम होती है. अगर कोई पति अपनी पत्नी को घरेलू काम के लिए हर माह भुगतान करे तो उस राशि पर भी टैक्स में छूट मिलनी चाहिए. इससे सरकार के महिला सशक्तीकरण अभियान को मदद मिलेगी. साथ ही महिला की कमाई बढ़ने पर जीडीपी को भी सहारा मिलेगा.
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