तकरीबन 1.1 करोड़ केंद्रीय कर्मचारी और पेंशनर्स बड़ी बेसब्री से 1 जुलाई का इंतजार कर रहे थे, उन्हें उम्मीद थी कि पिछले साल 1 जनवरी से उनके महंगाई भत्ते (Dearness Allowance- DA) पर लगी रोक अब हट जाएगी. लेकिन, जुलाई के भी अब 10 दिन गुजर गए हैं, लेकिन सरकार अभी तक इस मामले में चुप्पी साधे हुए है.
दूसरी तरफ, कैबिनेट में फेरबदल भई हो चुका है और नए मंत्रियों को विभागों का बंटवारा भी हो गया है, ऐसे में केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशनरों के संबंध में इस अनिश्चितता को खत्म किया जाना चाहिए.
1 जनवरी 2020 से ही देश की अर्थव्यवस्था को कई मुश्किल हालातों का सामना करना पड़ा है. हालांकि, सरकारी कर्मचारियों को नौकरी जाने का डर नहीं है, लेकिन उनकी सैलरी घट गई है.
परिभाषा के हिसाब से महंगाई भत्ते (DA) का मकसद लोगों और उनके परिवार को बढ़ती महंगाई से बचाना होता है. गुजरे 18 महीने से DA पर रोक लगाकर सरकार ने कर्मचारियों की सैलरी और पेंशनरों की पेंशन की रियल वैल्यू को जानबूझकर घटा दिया है. दूसरी ओर, गुजरे 18 महीने में देश में कीमतों में तेज इजाफा हुआ है.
सरकारी एंप्लॉयीज और पेंशनर्स को एक तरह से उपेक्षित छोड़ दिया गया है. गरीबों और हाशिये पर मौजूद तबके को मदद देने के लिए सरकार ने हर मुमकिन कोशिश की है. इन्हें नौकरी छूटने, तनख्वाह में कटौती और कारोबार ठप्प पड़ने जैसी मुश्किलों से उबारने के लिए सरकार ने कई तरह से राहत दी है.
इसके उलट अमीरों के पास संसाधनों की कोई कमी नहीं है और उन पर इस महामारी का कोई खास असर नहीं पड़ा है. आश्चर्यजनक तौर पर कोविड के दौर में हमें लैंबॉर्गिनी और मैबैक जैसी महंगी गाड़ियों की बिक्री में इजाफा देखने को मिला है.
अब बचता है मध्यम वर्ग और सरकारी कर्मचारी इसी तबके में आते हैं- इस तबके को पूरी तरह से उपेक्षित छोड़ दिया गया है. ये किसी न किसी तरह से अपना गुजारा कर रहे हैं.
सरकार ने डायरेक्ट टैक्स कलेक्श में उछाल दर्ज किया गया है. जून में गिरावट को छोड़ दें तो इनडायरेक्ट टैक्स भी 1 करोड़ रुपये के ऊपर बना हुआ है. ऐसे में सरकार को बिना किसी देरी के DA को बहाल करना चाहिए.