Goa: गोवा के खूबसूरत तटों और मौज-मस्ती से लबरेज लकदक बाजारों के परे एक और गोवा है, जिसके बारे में कम ही लोगों को पता है. यह गोवा का असली रूप है, जो सुंदर समुद्री तटों से दूर खेतों में मिट्टी की सोंधी खुशबू के बीच पसीना बहाता है, जो धरती के सीने से ऐसे स्वादिष्ट फल और अनाज पैदा करता है, जिसे खाने के लिए सुदूर विदेशों में बस चुके गोवन भी तरसते हैं. पणजी से करीब 25 किलोमीटर दूर मांडवी नदी को पार कर चोडण माडेल द्वीप पर पहुंचा जा सकता है. यहां चोडण में धान के अलावा लाल मिर्च, चौलाई, राई, उड़द, मूंग, लोबिया और कई तरह की सब्जियां पैदा होती हैं. चोडण माडेल की खेती की खासियत को समझने के लिए यहां के भूगोल को भी समझना पड़ेगा. यहां एक तरफ मांडवी नद बहती है, जबकि बाकी तीन तरफ से समुद्र का बैकवाटर या समुद्री पानी सटा है. इसके कारण द्वीप की खेती लायक जमीन का एक बड़ा हिस्सा खारे पानी की चपेट में है. इनमें बहुत सी जमीन ऐसी है गोवा के किसानों ने समुद्र के अंदर से ‘रीक्लेम’ किया है. इस तरह की जमीन को खाजन कहते हैं.
धान गोवा के इस हिस्से की प्रमुख फसल है और चावल यहां से मार्केट किया जाने वाला सबसे लोकप्रिय उत्पाद. यहां दो तरह के धान की खेती होती है. ज्योति, जो थोड़ी ऊंची जमीन पर होती है और जिसके लिए मीठे पानी की जरूरत होती है और कॉरगुट, जो समुद्री पानी वाली जमीन पर पैदा होने वाली धान की खास किस्म है. चोडण में किसानों ने एक क्लब बना रखा है, जो एक साथ मिलकर न केवल खेती करता है, बल्कि मार्केटिंग और अपने किसानों को कर्ज और मशीनें हासिल करने तक में मदद करता है. चोडण माडेल फार्मर्स क्लब के अध्यक्ष प्रेमानंद म्हाम्बरे के मुताबिक गोवा के कई लोग तो विदेशों से भी यहां के चावल का मोह नहीं छोड़ पाते. ऐसे ग्राहकों के अलावा मुख्य तौर पर यहां से उपजाया गया चावल पणजी और गोवा के दूसरे हिस्सों के किराना की दुकानों से बिकता है. म्हाम्बरे ने बताया, “पिछले साल हमने क्लब के किसानों से 2000-2500 किलो चावल खरीदा. क्लब की ओर से उन्हें पैकिंग मटेरियल दिया गया और फिर हमने चावल को सीधे कैश एंड कैरी स्टोर के जरिए बेचा.”
2008 में क्लब की शुरुआत होने के बाद से मार्केटिंग के लिए की गई पहल का नतीजा ये हुआ है कि किसानों को फसल की बेहतर कीमत मिलने लगी है. जिस धान की खरीद के लिए गोवा सरकार (Goa Government) का न्यूनतम समर्थन मूल्य 19 रुपये प्रति किलो रखा गया था, उससे चावल निकाल कर किसानों ने क्लब को 50 और 55 रुपये प्रति किलो के भाव पर बेचा, जिसे क्लब ने बाजार में 75 और 80 रुपये के भाव पर बेचा. जाहिर है, अच्छे भाव के कारण किसानों में खेती का उत्साह भी बढ़ा है. चावल की खेती करने वाली किसान कुसुम ललन नाइक की जमीन का ज्यादातर हिस्सा खाजन है, जिसमें वह ज्योति चावल उपजाती हैं. इससे कुसुम के पूरे परिवार की साल भर की जरूरत पूरी हो जाती है और जो बचता है, उस वह क्लब को बेच देती हैं. कुसुम ने बताया कि क्लब से ही उन्हें ट्रैक्टर मिल जाता है और सरकार उसके लिए सब्सिडी भी देती है. यह कहानी कुसुम की ही नहीं, बल्कि चोडण के कई दूसरे किसानों की भी है.
अच्छा भाव दिलाने का साथ ही क्लब ने अपने सदस्यों की खेती का लागत घटाने में भी अहम भूमिका निभाई है. गोवा (Goa) में कृषि मजदूरों की भारी कमी है जिसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां खेती में प्रतिदिन की मजदूरी 600 से 800 रुपये तक है. जाहिर है इसके कारण बढ़ने वाली खेती की लागत किसानों की जिदंगी को मुश्किल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ती. इसलिए क्लब किसानों को ट्रैक्टर और दूसरी मशीनें भी मुहैया करा रहा है. चोडण माडेल फार्मर्स क्लब ने बैंक के लोन से ट्रैक्टर खरीदा है, जिसे किसानों को 250 रुपये घंटा किराए पर दिया जाता है और हर घंटे के हिसाब से 250 रुपये सरकार देती है. यहां तक कि क्लब किसान सदस्यों के लिए हार्वेस्टर जैसी महंगी मशीनों का भी इंतजाम करता है. क्लब के अधिकारी शंकर ने बताया कि हार्वेस्टर क्योंकि बहुत महंगा होता है, जबकि जरूरत केवल 1.5-2 महीनों की होती है, इसलिए इसे कर्नाटक से किराए पर मंगाया जाता है और किसानों को किराये पर दिया जाता है.
खास बात यह भी है कि खेती के दौरान क्लब के सदस्य अपने खेतों में किसी तरह की खाद या रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं करते हैं. यानी जो भी चावल या दूसरी कमोडिटी इस क्लब के सदस्य किसानों की खेत से निकलती हैं, वे सब ऑर्गेनिक होती हैं. इसके कारण भी सदस्य किसानों की लागत घटी है. साथ ही उनके लिए ज्यादा तरह की कृषि उपज की मार्केटिंग के रास्ते भी खुले हैं, जिसका फायदा उन्हें हो रहा है.
(लेखक कृषि और आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं)
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