चुनावी राज्य पेट्रोल-डीजल पर टैक्स घटा सकते हैं

Fuel Tax: केंद्र और राज्य सरकारों ने तेल पर लगाए टैक्स (Fuel Tax) और रॉयल्टी से साल 2014-15 से सितंबर 2020 तक 31.83 लाख करोड़ रुपये कमाए है.

  • Team Money9
  • Updated Date - February 19, 2021, 02:20 IST
Petrol-Diesel Price Today:

Fuel Tax: पेट्रेलियम प्रोडक्ट्स पर लगने वाले टैक्स में वित्त मंत्रालय किसी भी तरह के दखल की तैयारी में नहीं है. हालांकि पेट्रोल-डीजल के भाव रिकॉर्ड ऊंचाई पर होने से लोगों के बीच चल रही आलोचना से मंत्रालय परिचित है.

वित्त मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों की राय है कि फिलहाल पेट्रोल और डीजल के इंपोर्ट और प्रोडक्शन पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी और अन्य टैक्स (Fuel Tax) घटाने की कोई संभावना नहीं है. अब से 6 हफ्ते में खत्म होने वाली वित्तीय साल में कोविड-19 की वजह से आय घटने से सरकार के राजस्व पर दबाव है.

हालांकि, यहां राज्यों के स्तर पर राजनीतिक हस्तक्षेप की संभावना जरूर है – खास तौर पर वे राज्य जहां चुनाव आने वाले हैं. चार राज्यों में चुनाव आ रहे हैं – असम, केरल, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु, वहीं अप्रैल में पुदुचेरी में चुनाव है.

असम, जहां सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को दोबारा जीतने की उम्मीद है, वहां सरकार ने इस मोर्चे पर पहले की काम शुरू कर दिया है. कई और राज्यों की तरह असम ने भी कोविड-19 महामारी के चरम पर होने के वक्त फ्यूल और शराब पर टैक्स बढ़ाए थे. 12 फरवरी को असम सरकार ने पेट्रोल, डीजल और शराब पर लगा अतिरिक्त सेस हटा दिया. इस कटौती से राज्य में पेट्रोल-डीजल 5 रुपये सस्ता हो गया है.

अब पश्चिम बंगाल में तृणमूल सरकार और AIDMK शासित तमिलनाडु बचे हैं. पश्चिम बंगाल में भाजपा ने ममता बनर्जी के लिए बड़ी चुनौती खड़ी की है. कोविड-19 महामारी की वजह से अन्य राज्यों की ही तरह इन दोनों की भी वित्तीय हालात पर असर पड़ा है. ये देखना होगा कि क्या राजनीति की वजह से दोनों राज्य सरकारों को वैल्यू एडेड टैक्स (VAT) या सेस पर किसी तरह की राहत देनी पड़ेगी.

केंद्र और राज्य सरकारों की आय में फ्यूल का बड़ा हिस्सा होता है. दिग्गज आर्थिक विश्लेषक आर जगन्नाथन ने हाल ही में बताया है कि केंद्र और राज्य सरकारों ने तेल पर लगाए टैक्स (Fuel Tax) और रॉयल्टी से साल 2014-15 से सितंबर 2020 तक 31.83 लाख करोड़ रुपये कमाए है. वहीं FY19 और FY20 में केरोसीन और LPG बिक्री से रिकवरी काफी कम रही है. (चार्ट देखें)

दोबारा सामान्य होने की ओर बढ़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था के इस दौर में ये उम्मीद लगाना कि आय के इस स्रोत में बड़ी कटौती हो ये एक सपना ही है.

कुछ राज्य जो भी थोड़ी-बहुत राहत देंगे वो कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों से बेअसर होगी. ऐतिहासिक स्तरों पर गिरने के बाद क्रूड ऑयल के ग्लोबल बेंचमार्क भाव में तेज बढ़त दिखी है. आय में आई गिरावट की भरपाई के लिए कच्चे तेल का उत्पादन करने वाले देशों ने आउटपुट में कटौती और आर्थिक स्थिति सुधरने की वजह से ये तेजी आई है.

तेल की कीमतों में आई तेजी की तुलना से कई बातें सामने आती है. याद रहे कि भारत सालाना क्रूड तेल की जरूरत का 85 फीसदी इंपोर्ट करता है. ब्रेंट और WTI दो मुख्य क्रूड ऑयल प्राइस के बेंचमार्क हैं, इसके इतर ‘इंडियन बास्केट’ है जो भारतीय इंपोर्टर्स के लिए बेंचमार्क है.

20 अप्रैल 2020 में WTI क्रूड का भाव निगेटिव में जा गिरा था जो अविश्वसनीय और ऐतिहासक था. एक ही दिन WTI जहां माइनस 37.63 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंचा वहीं ब्रेंट क्रूड 19.33 डॉलर प्रति बैरल पर था. हालांकि ‘इंडियन बास्केट’ पर क्रूड 20.42 डॉलर प्रति बैरल पर बना हुआ था. कच्चे तेल के इंडियन बास्केट में भाव सार ग्रेड (Sour Grade) (ओमान और दुबई का औसत) और स्वीट ग्रेड (Sweet Grade – ब्रेंट) के आधार पर लिया जाता है.

तकरीबन एक साल बाद इंडियन बास्केट 62.64 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया है – जो बाकी दोनों बेंचमार्क की ही रेंज में है. ग्लोबल प्रोडक्शन में कटौती आगे जारी रहने की संभावना और डिमांड बढ़ने की उम्मीद के बीच इंडियन बास्केट की कीमतें चढ़ी हुई ही रहने का अनुमान है और इसलिए इंपोर्ट बिल घटने की कोई संभावना नहीं है.

राज्य सरकारों की इस टैक्स (Fuel Tax) पर निर्भरता की वजह से भारतीयों के फ्यूल कंज्यूमर्स के लिए कीमतों में कोई फेरबदल की संभावना नहीं है. केंद्र और राज्य सरकारों की इस टैक्स का सामना करने के लिए जरूरी है कि इसे GST के दायरे में लाया जाए. हालांकि इस तरफ 2017 से कोई भी कदम नहीं उठाया गया है और मौजूदा स्थिति में इसकी उम्मीद नहीं है.

Published - February 19, 2021, 02:20 IST