यूपी से लेकर बंगाल तक इन दिनों सूखे जैसे हालात हैं. नदी नाले सूख रहे हैं. नहरों और रजवाहों में पानी की कमी है. किसानों की टूटती उम्मीदों को आसरा है बारिश से. जो अमूमन इस महीने जोरों से होती थी लेकिन इस साल बारिश यहां बहुत कम हुई है. सीधे-सीधे ये समझिए कि बारिश कम हुई तो खेती पर असर होगा. उपज कम हुई तो महंगाई बढ़ेगी और इसी महंगाई का सीधा ताल्लुक है आपकी जेब से और आपके जीवन से.
यूपी सरकार ने सूखे के सर्वे के लिए 75 जिलों में 75 टीमें बनाने की घोषणा कर दी है. सरकार ने मान लिया है कि 62 जिलों में औसत से कम बारिश हुई है. मौसम विभाग के आंकडे बताते हैं कि जून से 19 अगस्त के बीच यूपी में सामान्य के मुकाबले 48 फीसदी बारिश हुई है. कुछ जिलों में तो हालात और भी खराब हैं. डीजल पंप से सिंचाई करना किसान को महंगा पड़ता है, इसलिए अधिकतर किसान केवल बारिश के ही भरोसे हैं. इस बीच यूपी सरकार ने सिंचाई विभाग से नहरों में पानी बढ़ाने को कहा है. बिजली विभाग से ग्रामीण इलाकों में बिजली सप्लाई बढ़ाने को कहा है. और ट्यूबवैल से बिलों की वसूली रोकने को भी कहा है. इसी के साथ सरकार ने फसलों के भंडारण को लेकर भी काम शुरु कर दिया है.
बात बिहार की करें तो यहां भी हालात कमोबेश ऐसे ही हैं. रिपोर्ट बताती हैं कि 30 अगस्त 2022 तक राज्य में 471 मिलीमीटर बारिश हुई है. ये सामान्य से काफी कम है. बिहार के सरकारी आंकडे कहते हैं कि राज्य में कुल वर्कफोर्स का 77 फीसदी हिस्सा खेती के कामों से जुड़ा है. बारिश की कमी, बिजली की कमी और खाद की कमी से जूझते किसानों के लिए सरकार ने बिजली सप्लाई के घंटे बढा दिए हैं और डीजल के दाम भी किसानों के लिए घटा दिए हैं. संकट जानवरों के चारे का भी है. ऐसा हुआ तो राज्य में दूध की कमी भी हो सकती है. ऑफिशियल तौर पर यूपी की तरह ही बिहार सरकार ने भी इन हालातों को सूखे का नाम तो नहीं दिया है लेकिन इस संभावित खतरे से निपटने की तैयारियां शुरु कर दी हैं.
झारखंड और बंगाल का हाल भी यूपी बिहार से जुदा नहीं है. राज्य के 112 प्रखंड सूखे की चपेट में हैं. 15 अगस्त तक राज्य भर में 38 फीसदी बुआई ही हुई है. कई इलाकों में तो धान की बुआई 15 फीसदी से भी कम हुई है. झारखंड सरकार ने भी हालात से निपटने के लिए तैयारियां शुरु कर दी हैं. पूर्वी यूपी हो, बिहार हो या फिर झारखंड और पश्चिम बंगाल… इन इलाकों को धान की उपज के लिए जाना जाता है. मीडिया रिपोर्ट बताती हैं कि बारिश की कमी के कारण बुआई की इलाका कम होता जा रहा है और सूखे के हालात विकट होते जा रहे हैं.
आप लोग वीडियो छोड़ कर आगे बढ़ जाएं उससे पहले ये जान लीजिए कि सूखा होता क्या है? क्या केवल बारिश की कमी ही सूखा कहलाती है? जी नहीं. सूखा चार तरह का होता है. पहला होता है मौसमी सूखा. बारिश की कमी वाला सूखा यही मौसमी सूखा होता है. दूसरा होता है जलीय सूखा. जब नदियों में, झीलों में और जमीन के अंदर पानी में कमी होने लगती है तब ऐसे हालात बनते हैं. कृषि सूखा उस स्थिति को कहते हैं जब मिट्टी में पानी की कमी होने लगती है और इसका असर फसलों पर होने लगता है. और आखिरी होता है सोशियो – इकोनॉमिक सूखा. सामाजिक- आर्थिक सूखा. ये एक ऐसी स्थिति होती है जब नदियों में चलने वाले जहाज एक से दूसरी जगह नहीं पहुंच पाते. माल ढुलाई प्रभावित होती है. पनबिजली नहीं बन पाती.
आप ये जान लीजिए कि सूखा केवल भारत को ही प्रभावित नहीं कर रहा है, पूरा यूरोप और अफ्रीका का एक बड़ा हिस्सा इस वक्त सूखे से जूझ रहा है. चीन में भी यही हालात बने हुए हैं. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में भी इस पर चिंता जताई गई है. पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन का पैटर्न साफ देखने को मिल रहा है. वहीं मानसून का ये बदला हुआ पैटर्न भारत के किसानों पर कहर बनकर टूट रहा है. 2010-11 से लेकर 2021-22 तक देश के कई राज्यों में, कई इलाकों में सूखे की स्थिति बनी है. भारतीय कृषि मंत्रालय ने अपने नेशनल क्राइसिस मैनेजमेंट प्लान में इसको लेकर विस्तार से जानकारी दी है.
ऐसा नहीं कि भारत सरकार केवल तमाशबीन बनी हुई है. पहले गेहूं, फिर चावल, चीनी, मैदा, सूजी… सभी के निर्यात पर सरकार रोक लगा चुकी है. अपने गोदामों की स्थितियां चेक कर चुकी है और किसी भी तरह के हालात से निपटने के दावे भी कर चुकी है. लेकिन सरकारी वादे, सरकारी दावे कितने सही साबित होंगे ये तो वक्त ही बताएगा. फिलहाल तो सूखा प्रभावित इलाकों में किसान परेशान हैं और मजदूर शहरों की ओर पलायन करने लगे हैं.