भारत और रेटिंग एजेंसियां- ग्रोथ के नंबर्स से बदलेगा एंजेसी का रुख?

Credit Ratings- 29 जनवरी को जारी किए गए आर्थिक सर्वेक्षण को उठाकर देखिए. 36 पेज के का पूरा सेक्शन रेटिंग एजेंसियों पर समर्पित था.

  • Team Money9
  • Updated Date - February 28, 2021, 01:54 IST
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क्या अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग (International Credit rating) भारत (India) के खिलाफ पक्षपात करती हैं? पॉलिसी मेकर्स तो अक्सर यही दावा करते हैं. 29 जनवरी को जारी किए गए आर्थिक सर्वेक्षण (Economic Survey) को उठाकर देखिए. 36 पेज के का पूरा सेक्शन रेटिंग एजेंसियों पर समर्पित था. सर्वेक्षण बताता है कि इन क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने कभी भी भारत का उद्देश्यपूर्ण मूल्यांकन नहीं किया. इसमें बताया गया है कि सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग एजेंसी कभी भी भारतीय अर्थव्यवस्था के मूल सिद्धांतों को नहीं दर्शाते. अपारदर्शी और पक्षपाती क्रेडिट रेटिंग्स की वजह से विदेशी निवेश को नुकसान पहुंचाता है. सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग पद्धति को संशोधित करके अर्थव्यवस्थाओं की क्षमता को प्रतिबिंबित करना चाहिए ताकि वे अधिक पारदर्शी और कम ऋणात्मक हो सकें.

यह तर्क नया नहीं है. मई 2017 में मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन (CEA Arvind Subramanian) ने आरोप लगाया था कि वैश्विक रेटिंग एजेंसियों का भारत की तुलना में विकास दर कम होने के बावजूद चीन के प्रति झुकाव था. बेंगलुरु में एक लेक्चर के दौरान, सुब्रमण्यन ने रेटिंग एजेंसियों के इरादों को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि चीन को उच्च रेटिंग उस देश से अधिक व्यापार आकर्षित करने के लिए डिज़ाइन की गई थी.

भारतीय आर्थिक सलाहकार के राय व्यक्त करने के एक महीने से भी कम समय बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि दोनों देश एक क्रेडिट रेटिंग इंडस्ट्री विकसित करने के लिए मिलकर काम करेंगे, “राजनीतिक अनुमान से स्वतंत्र” होगी. रेटिंग एजेंसियों के खिलाफ भारत ने अपना रुख सितंबर 2017 के ब्रिक्स शिखर सम्मेलन (BRICS Summit) में भी व्यक्त किया था, जब पीएम मोदी (PM Narendra Modi) ने भारत के प्रति अनुचित रहने वाली पश्चिमी एजेंसियों से अलग ब्रिक्स क्रेडिट रेटिंग स्थापित करनी की बात उठाई थी. उन्होंने टिप्पणी की कि रेटिंग एजेंसियों की कार्यप्रणाली “समझौता विश्लेषण के सबसे अहंकारी उदाहरणों में से एक” थी.

2017 में केंद्र के गुस्से के पीछे का मुख्य कारण रेटिंग एजेंसी Fitch का वो फैसला था, जिसने भारत की सॉवरेन रेटिंग को BBB- रखा था, यह 2006 के बाद से देश को दी गई सबसे कम निवेश ग्रेड रेटिंग थी. उसी साल 1 अगस्त को फिच ने स्टेबल आउटलुक के साथ भारत की रेटिंग को बीबी+ से बदलकर बीबीबी- किया था. 2017 में पीएम मोदी की टिप्पणी के बाद, मूडीज ने उसी वर्ष नवंबर में भारत की रेटिंग को अपग्रेड करके Baa3 से Baa2 किया. जबकि पहले Baa3 सबसे कम निवेश ग्रेड वाली रेटिंग है, बाद में उसे पॉजिटिव किया गया.

सबसे प्रमुख तीन मूडीज, एसएंडपी और फिच सहित ज्यादातर रेटिंग एजेंसियां ​​अमेरिका में स्थित हैं. अभी तीनों की भारत के लिए सबसे कम निवेश ग्रेड रेटिंग है. पिछले साल जून में फिच ने इकोनॉमी में रिकवरी की कम संभावना और महामारी के चलते बढ़ते कर्ज को देखते हुए भारत का आउटलुक स्टेबल से रिवाइज करके निगेटिव कर दिया था. उसी समय मूडीज ने भी निगेटिव आउटलुक के साथ भारत को सबसे निचले निवेश ग्रेड में डाउनग्रेड किया था.

2020 में पहली तिमाही के आंकड़े आने से पहले फिच और मूडीज ने भारत की जीडीपी ग्रोथ के माइनस 5% और 4% का अनुमान लगाया था. हालांकि, जीडीपी के माइनस 23.9 फीसदी गिरने के बाद एजेंसियों ने अपने अनुमानों को संशोधित कर 10.50% और 11.50% कर दिया था.

पिछले साल सितंबर में जब COVID 19 संकट अपने चरम पर था, S&P ने दोबारा स्टेबल आउटलुक के साथ सबसे कम निवेश ग्रेड BBB- की पुष्टि की. एजेंसी ने यह भी कहा कि इसका स्टेबल आउटलुक इसकी उम्मीद को दर्शाता है कि महामारी के बाद अर्थव्यवस्था ठीक हो जाएगी और 2021-22 में वापस पटरी पर लौटेगी. जबकि एजेंसियों ने स्वीकार किया कि अगर सरकार अर्थव्यवस्था में रिवाइवल के लिए निवेश करती है तो यह गहरी मंदी से बचने में मदद कर सकता है, लेकिन इससे वित्तीय स्थिति कमजोर होने या वित्तीय घाटे के बढ़ने से और ज्यादा तनाव आ सकता है.

शुक्रवार को घोषित किए गए दिसंबर तिमाही यानि Q3 के आंकड़ों को देखकर साफ है दोबारा विचार करने की जरूरत है. दो तिमाहियों में लगातार गिरावट के बाद देश की अर्थव्यवस्था शून्य स्तर से ऊपर है. अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में 0.4% की वृद्धि के साथ मैन्युफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन और कंस्ट्रक्शन जैसे कुछ क्षेत्रों में गिरावट से निकलकर वापसी कर रही है और तकनीकी मंदी से बाहर निकल कर रही है. CSO ने यह् भी कहा कि अर्थव्यवस्था 8% का संकुचन झेल सकती है, जो कि S & P की तुलना में एक प्रतिशत कम है.

रेटिंग एजेंसियों द्वारा ली गई स्थिति के खिलाफ सबसे बड़ा तर्क यह है कि भारत कभी भी अपने कर्ज चुकाने में चूक नहीं करता है. नब्बे के दशक के शुरुआती दिनों में जब देश इसके करीब आया था, सरकार देश के इतिहास में एक नए पाठ्यक्रम को पूरा करने वाले सुधारों का उद्घाटन करके एक विघटनकारी कदम उठाने के रूप में आगे बढ़ी. सरकार ने अर्थव्यवस्था के आकार के संबंध में एक तर्क दिया है.

आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि “सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग के इतिहास में दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को निवेश ग्रेड के सबसे निचले पायदान पर रखा गया है. आर्थिक आकार को दर्शाते हुए और जिससे कर्ज चुकाने की क्षमता में पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को मुख्य रूप से AAA दर्जा दिया गया है. चीन और भारत इस नियम के एकमात्र अपवाद हैं- 2005 में चीन को A-/A2 का दर्जा दिया गया था और अब भारत को BBB-/Baa3 का दर्जा दिया गया है.

संयोग से, एसएंडपी की उच्चतम रेटिंग AAA है जो उच्च साख को दिखाती है. भारत का शून्य डिफ़ॉल्ट रिकॉर्ड शायद उच्च रेटिंग की मांग के लिए एक मजबूत आधार है. ध्यान देने वाली एक और बात यह है कि भारत 5 फरवरी को भारतीय रिज़र्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार 583.94 बिलियन डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार पर बैठा है जो देश के संपूर्ण बाहरी कर्ज को कवर करता है.

Published - February 28, 2021, 01:54 IST