Covid-19: भारत में कोरोना की तीसरी लहर ( थर्ड वेव ) की आहट साफ़ सुनाई देने लगी है. देश के कई भागों में कोरोना (Covid-19) के डेल्टा स्वरूप के केस मिले हैं. डेल्टा म्यूटेशन काफ़ी ख़तरनाक है. ये पहले के म्यूटेशन के मुक़ाबले ज़्यादा तेज़ी से फैलता है. इस समय ब्रिटेन और कई अन्य देशों में डेल्टा म्यूटेशन का क़हर चल रहा है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ ) और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ( आई सी एम आर ) ने डेल्टा के तेज़ी से फैलने की चेतावनी दी है.
डब्लूएचओ के मुताबिक़ दुनिया भर में क़रीब नौ हफ़्तों तक कोरोना से मौतों में गिरावट के बाद पिछले हफ़्ते मौतों की संख्या काफ़ी बढ़ गयी. पिछले हफ़्ते दुनिया में 55 हज़ार लोगों की मौत कोरोना से हुई.
संक्रमण क़रीब 10 प्रतिशत बढ़ा. सबसे ज़्यादा मामले ब्राज़ील, भारत, इंडोनेशिया और ब्रिटेन में सामने आए. संक्रमण फैलने का एक बड़ा कारण डेल्टा स्वरूप के तेज़ी से फैलने की क्षमता को बताया गया.
मास्क नहीं पहनने के कारण भी संक्रमण तेज़ हुआ. भारत सहित कुछ देशों में टीकाकरण की धीमी गति को भी ज़िम्मेदार माना गया. इस सब के बीच एक नयी बहस तेज़ हो गयी है कि टीकाकरण को अनिवार्य बना दिया जाना चाहिए.
सवाल ये है कि क्या टीकाकरण को अनिवार्य बनाया जा सकता है? उससे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि क्या भारत में इतने टीके उपलब्ध हैं ?
गुजरात सरकार ने सभी व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में अनिवार्य रूप से वैक्सीन लगवाने का आदेश दिया है. कोरोना के कहर को देखते हुए यह फ़ैसला जनहित में और सही लगता है.
लेकिन अब सवाल ये है कि क्या सरकार के पास वैक्सीन को अनिवार्य बनाने का अधिकार है? क्या इससे लोगों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं होगा ?
लेकिन इससे भी बड़ा सवाल ये है कि क्या वैक्सीन को अनिवार्य करने से कोरोना का प्रसार रुक जाएगा? भारत में 15 जुलाई तक क़रीब 31 करोड़ लोगों को वैक्सीन का पहला और पौने 8 करोड़ लोगों को दूसरा डोज़ लगाया गया था.
जून तक भारत में हर दिन वैक्सीन के क़रीब 30 लाख डोज़ का उत्पादन हो रहा था. आईसीएमआर के प्रमुख डॉ. बलराम भार्गव ने दावा किया था कि जुलाई के मध्य तक देश में हर दिन क़रीब एक करोड़ डोज़ उपलब्ध हो जाएगी.
लेकिन अब तक इसके आधे तक भी हम नहीं पहुंच पाए हैं. सवाल ये है कि जब वैक्सीन है ही नहीं, तो अनिवार्य करने का फ़ायदा क्या होगा.
बहुत से लोग ये मानते हैं कि वैक्सीन लगाने के बाद कोरोना का संक्रमण नहीं होगा. ये धारणा पूरी तरह से ग़लत है. वैक्सीन संक्रमण रोकने के लिए नहीं बने हैं.
वैक्सीन का काम है संक्रमण यानी शरीर के भीतर वायरस पहुंचने के बाद उससे मुक़ाबला करने और फेफड़ा सहित अन्य अंगों को नुक़सान पहुंचाने से रोकना है. वैक्सीन हमारे इम्यून सिस्टम को मजबूत बनता है जिससे हम वायरस से लड़ सकते हैं.
वैक्सीन व्यक्तिगत सुरक्षा प्रदान करता है. बीमारी गंभीर होने से रोकता है. जिससे मौत या अस्पताल के आईसीयू तक जाने का ख़तरा कम हो जाता है.
वैक्सीन न तो किसी व्यक्ति के संक्रमित होने से सुरक्षा देता है और न ही संक्रमण फैलाने से रोकता है, लेकिन व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए वैक्सीन जरूरी है. महामारी विज्ञान के विशेषज्ञों का मानना है कि अगर 60 प्रतिशत लोग वैक्सीन से सुरक्षित हो जाएं, तो महामारी को नियंत्रित किया जा सकता है. इसे हर्ड इम्यूनिटी कहते हैं.
ब्रिटेन के वरिष्ठ डॉ. अशोक जैनर का कहना है कि तीसरी लहर में टीके का असर साफ़ दिखाई दिया. जिन लोगों को वैक्सीन के दोनों डोज़ लग चुके हैं उन्हें संक्रमण तो हुआ लेकिन उन पर वायरस का असर बहुत हल्का था.
उन्हें आमतौर पर अस्पताल में भर्ती करने की जरुरत नहीं पड़ी. घर पर मामूली इलाज से ही वो ठीक हो गए. जिन लोगों को सिर्फ़ एक डोज़ लगा था उनमें से बहुतों की हालत गम्भीर हो गयी और वो अस्पताल के आईसीयू तक भी पहुंच गए.
जिन्हें एक भी डोज़ नहीं लगा था उनकी स्थिति सबसे ज़्यादा ख़राब हुई. इनमें से काफ़ी लोगों की मौत भी हुई.
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर ) के अध्ययन के मुताबिक़ जिन लोगों को दोनों टीके लगाए जा चुके हैं उनमें संक्रमण के बाद सिर्फ़ 10 प्रतिशत को अस्पताल में भर्ती करने की जरुरत पड़ी और मृत्यु दर सिर्फ़ दशमलव चार फ़ीसदी थी. इससे ज़ाहिर है कि वैक्सीन पूरी तरह सक्षम है.
दुनिया के अनेक देशों में महामारी को फैलने से रोकने के लिए वैक्सीन अनिवार्य करने के लिए क़ानून मौजूद है. ब्रिटेन में चेचक को रोकने के लिए 1892 में वैक्सीन अनिवार्य करने का क़ानून बनाया गया.
अमेरिका में भी चेचक रोकने के लिए 1905 में अनिवार्य वैक्सीन का क़ानून बना, लेकिन हाल में अमेरिका की संघीय अदालत ने एक फ़ैसले में कहा कि वैक्सीन अनिवार्य नहीं किया जा सकता है.
ये फ़ैसला उस ग्रुप के मुक़दमे में आया जो मनुष्य, जानवर, पक्षी या पौधों तक के जीन में किसी भी तरह के बदलाव के विरोधी है. उनका कहना है कि वैक्सीन के चलते मनुष्य में जेनेटिक बदलाव आ सकता है.
वैक्सीन के किसी बुरे प्रभाव का सबूत अभी तक सामने नहीं आया है, लेकिन इसके प्रभाव के बारे में सही आकलन काफ़ी समय बाद ही हो पाएगा. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ ) ने भी वैक्सीन को अनिवार्य नहीं बनाने की सलाह दी है.
ब्रिटेन ने भी वैक्सीन को अनिवार्य नहीं किया है. इसके वजूद ब्रिटेन में क़रीब 60 प्रतिशत लोगों को वैक्सीन लगाया जा चुका है, जबकि भारत में जुलाई मध्य तक सिर्फ़ 6 प्रतिशत लोगों को ही वैक्सीन लग पाया था.
भारत के क़ानूनों में वैक्सीन को अनिवार्य करने की कोई व्यवस्था नहीं है, लेकिन सरकार कई दूसरे क़ानूनों की मदद से वैक्सीन को अनिवार्य बना सकती है.
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन क़ानून 2005 की धारा 6 से 10 के ज़रिए वैक्सीन को अनिवार्य किया जा सकता है. पासपोर्ट क़ानून 1967 के ज़रिए उन लोगों को वैक्सीन लेने के लिए मजबूर किया जा सकता है, जो विदेश जाना चाहते हैं.
लेकिन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने मार्च में ही साफ़ कर दिया कि वैक्सीन स्वैक्षिक होगा. सरकार इसे अनिवार्य नहीं बनाएगी. भारत के संविधान की धारा 21 जीवन और व्यक्तिगत सुरक्षा की गारंटी देता है.
इसके आधार पर किसी व्यक्ति की सहमति के बिना उसे किसी इलाज या वैक्सीन के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है. इसके अलावे धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के आधार पर भी कोई व्यक्ति वैक्सीन लेने से इंकार कर सकता है.
भारत में चेचक और पोलियो सहित कई वैक्सीन बिना किसी दबाव के देश भर में लगाया जा चुका है और सभी महामारियां पूरी तरह से नियंत्रित की जा चुकी हैं. कोरोना का वैक्सीन भी लोगों को जागरूक बनाकर और सहमति से लगाया जा सकता है.
अभी तो जरूरत सिर्फ़ इस बात की है कि सरकार जरूरत के मुताबिक़ वैक्सीन उपलब्ध कराए और लगाने का पर्याप्त इंतज़ाम हो.