धीमी रफ्तार से मामलों के निपटारे को लेकर, सेंट्रल दिल्ली की जिला मजिस्ट्रेट आकृति सागर ने कहा है कि हर शिकायत की जांच एक जिला-स्तरीय समिति कर रही है, जो सप्ताह में कम से कम एक बार बैठक करके सुनवाई कर रही है. वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों ने शनिवार को कहा, दिल्ली में कोविड -19 की चौथी लहर खत्म होने के साथ ही, जिला प्रशासन ने महामारी के दौरान अस्पतालों द्वारा ज्यादा शुल्क वसूलने की शिकायतों की जांच शुरू कर दी है और दोषी पाए जाने वाले अस्पतालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने के निर्देश दिये हैं.
ज्यादा पैसा वसूलने की शिकायतें
एचटी द्वारा अब तक देखे गए सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक, कोविड -19 के इलाज के लिए अस्पतालों द्वारा मरीजों से ज्यादा शुल्क लेने की 76 शिकायतें मिली हैं. इनमें से अब तक केवल 8 शिकायतों को ही निपटाया जा सका है. धीमी रफ्तार से मामले के निपटने के बारे में बताते हुए, सेंट्रल दिल्ली की जिला मजिस्ट्रेट आकृति सागर ने कहा कि हर शिकायत की जांच एक जिला-स्तरीय समिति कर रही है, जो सप्ताह में कम से कम एक बार बैठक करके सुनवाई कर रही है.
उन्होंने कहा, ‘इस समय सभी मामले विचाराधीन हैं, इसलिए हम किसी भी मामले पर टिप्पणी नहीं कर सकते.
एचटी द्वारा देखे गए आंकड़ों के हिसाब से, सबसे ज्यादा शिकायतें (18) उत्तर पश्चिमी जिले से, उसके बाद दक्षिणपूर्व जिले (11) और दक्षिण जिले (10) से आई हैं.
जांच समितियां बनीं
स्वास्थ्य सेवा (दिल्ली) की महानिदेशक डॉ. नूतन मुंडेजा ने 15 जून को एक आदेश में कहा कि कोविड-19 का इलाज करने वाले अस्पतालों द्वारा अधिक शुल्क वसूलने की जांच के लिए जिला स्तरीय समितियों का गठन किया जाए। आदेश में ये भी कहा गया है कि ऐसी हर एक समिति का अध्यक्ष अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट या उप-मंडल मजिस्ट्रेट होगा। चार दूसरे सदस्यों में दिल्ली सरकार के कार्यालय का एक विशेषज्ञ (दवा), सीडीएमओ कार्यालय का एक चिकित्सा अधिकारी, एक फार्मासिस्ट और एक लेखा अधिकारी होगा.
डीएम (दक्षिण) अंकिता चक्रवर्ती ने कहा कि अगर कोई अस्पताल, जांच के बाद ज्यादा शुल्क लेता पाया जाता है, तो डीएम को अनुमोदन के बाद, दिल्ली महामारी रोग के क्लॉज 18, कोविड -19 रेगूलेशन्स, आईपीसी की धारा 188 और अन्य लागू कानून के अनुसार कार्रवाई शुरू करनी होगी.
पिछले साल 20 जून को, दिल्ली सरकार ने कोविड -19 के इलाज के शुल्क में 60-67% की कमी की थी.
कोई ब्रेकअप नहीं
ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क, एक संगठन जिसने दिल्ली में कई रोगियों को इस तरह की शिकायतें दर्ज करने में मदद की, इसकी सह-संयोजक मालिनी ऐसोला ने कहा, “सरकारी आदेश में कहा गया है कि कैप्ड दरें कोविड -19 के लिए आरक्षित 60% बिस्तरों पर लागू होनी चाहिए, लेकिन अगर आप असल में देखें, तो शायद 5%, से ही सरकारी दरों पर शुल्क लिया गया होगा. सरकारी डैशबोर्ड ने कैप्ड कीमतों के अनुसार उपलब्ध बिस्तरों की संख्या का कोई ब्रेकअप नहीं दिया. ज्यादातर लोग इस बात से भी अनजान थे कि कीमतों की सीमा तय की गई थी ”.
एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स (इंडिया) के महानिदेशक डॉ गिरधर ज्ञानी ने कहा, “शुरुआत में सरकार द्वारा जारी आदेश में ये स्पष्ट नहीं था कि इसे कौन लागू करेगा. हम चाहते हैं कि आईएमए (IMA) जैसे निकायों के प्रतिनिधि समिति का हिस्सा बनें. साथ ही, शुरूआती चर्चाओं के मुताबिक,जिन रोगियों का बीमा होगा उन पर कैपिंग लागू नहीं होनी चाहिए थी. बीमा कंपनियों के भुगतान दूसरे मामलों को क्रॉस-सब्सिडी देने के लिए थे, लेकिन बीमा देने वाली कंपनी केवल सरकारी दरों का भुगतान कर रहे थी और बचा हुआ पैसा अस्पतालों को देना पड़ रहा था.