रक्षा मंत्रालय (Ministry of Defence) ने सशस्त्र बलों के कर्मियों को डिसेबिलिटी पेंशन देने के नियमों को कड़ा कर दिया है. साथ ही ‘एंपेयरमेंट रिलीफ’ की एक नई अवधारणा पेश की है जिसके तहत उच्च रक्तचाप और मधुमेह जैसी जीवनशैली से संबंधित अधिकांश बीमारियां कवर होंगी. नए ‘सशस्त्र बल कर्मियों को हताहत पेंशन अवार्ड्स के लिए पात्रता नियम-2023’ से कर्मियों के लिए डिसेबिलिटी पेंशन की गणना के तरीके में बदलाव आएगा. बता दें कि सरकार के खर्चों का हिसाब रखने वाली संस्था नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी सीएजी ने सेना में ज्यादा पेंशन को लेकर चिंता जताई थी. कैग के द्वारा उठाए गए सवाल के बाद आंतरिक मूल्यांकन में इस बात का खुलासा हुआ था कि करीब 40 फीसद अधिकारी ज्यादा डिसेबिलिटी पेंशन का फायदा उठा रहे थे.
नए नियमों के तहत जीवनशैली से संबंधित बीमारियों को डिसेबिलिटी पेंशन से अलग कर दिया गया है. ‘एंपेयरमेंट रिलीफ’ के तहत जीवनशैली से संबंधित बीमारियां कवर होंगी. सैन्य सेवा और सक्रिय ड्यूटी के दौरान ऊंचाई वाले क्षेत्रों, अत्यधिक जलवायु की परिस्थिति या अत्यधिक शारीरिक परिश्रम की वजह से बीमारी या विकलांगता का शिकार होने वाले कर्मी ‘एंपेयरमेंट रिलीफ’ के तहत कवर होंगे.
पेंशन के ऊपर सालाना करीब 10,000 करोड़ रुपए का खर्च
बता दें कि डिसेबिलिटी लाभ के लिए पात्र समझे जाने वाले कर्मियों को 20-50 फीसद ज्यादा पेंशन मिलती है और साथ ही आयकर में भी छूट मिलती है. ताजा आकलन के मुताबिक सरकार पेंशन के ऊपर सालाना करीब 10,000 करोड़ रुपए खर्च कर रही है. नियमों को कड़ा करने से पेंशन में सालाना आधार पर 4,000 करोड़ रुपए की बचत होने की संभावना है. मामले से जुड़े लोगों को का कहना है कि नियमों को कड़ा करने की वजह से सीएजी द्वारा उठाई गई चिंताओं का भी समाधान हो जाएगा.
सीएजी की रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि सेना में हर साल रिटायर होने वाले 36 से 40 फीसद अधिकारियों को डिसेबिलिटी पेंशन मिलती है जो कि सामान्य पेंशन से काफी ज्यादा है. वहीं दूसरी ओर सिर्फ 15-18 फीसद सेना के जवानों को विकलांगता पेंशन के लाभ का दावा कर रहे थे. कैग की रिपोर्ट यह भी चिंता जताई गई थी कि अधिकारियों को 22 फीसद और सैनिकों को दी गई 13 फीसद विकलांगता पेंशन जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों के आधार पर दी गई थी.