पिछले साल अप्रैल में आम लोगों को पेट्रोल (Petrol) अलग-अलग राज्य के हिसाब से 69 से 76 रुपये के बीच मिल रहा था. अप्रैल लॉकडाउन का पहला महीना था. उस वक्त डीजल का दाम 62 से 66 रुपये प्रति लीटर के करीब था. लेकिन, महज 10 महीने बाद यानी जनवरी आते-आते पेट्रोल (Petrol) के दाम करीब 25 फीसदी चढ़कर 86-92 रुपये पर पहुंच गए. इसी अवधि में डीजल की कीमतें भी इसी रफ्तार से बढ़ीं. कीमतों में इस बढ़ोतरी से मौजूदा फिस्कल के पहले 10 महीनों में सरकारी खजाने में 2.94 लाख करोड़ रुपये आए हैं. ऐसा तब हुआ है जबकि लॉकडाउन के दौरान पेट्रोल और डीजल की मांग में तेज गिरावट दर्ज की गई थी.
सालाना आधार पर यह टैक्स कलेक्शन बढ़कर 3.528 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच सकता है. यह इतनी बड़ी रकम है कि इससे महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश को छोड़कर देश के किसी भी बड़े राज्य के पूरे बजट की फंडिंग की जा सकती है.
2019-20 में केंद्र ने डीजल और पेट्रोल (Petrol) पर एक्साइज ड्यूटी से 3.34 लाख करोड़ रुपये हासिल किए थे.
दिलचस्प बात यह है कि गुजरात, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, केरल, राजस्थान, तेलंगाना और बिहार जैसे कई राज्यों का पूरा बजट ही 3.528 लाख करोड़ रुपये से कम बैठता है, जबकि इतनी रकम केंद्र को केवल पेट्रोल और डीजल पर टैक्स के जरिए मिल रही है.
2021-22 में गुजरात के बजट का साइज 2.27 लाख करोड़ रुपये रहा, जबकि पश्चिम बंगाल का बजट 2.99 लाख करोड़ रुपये है. दूसरी तरफ तेलंगाना का पूरा बजट 2.30 लाख करोड़ रुपये है.
अगले फाइनेंशियल ईयर में तमिलनाडु सरकार का कुल खर्च करीब 3.03 लाख करोड़ रुपये का अनुमान है, जबकि कर्नाटक का बजट 2.46 लाख करोड़ रुपये के करीब है.
इसी तरह से राजस्थान का बजट 2.50 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है, जबकि उड़ीसा, मध्य प्रदेश और केरल का बजट क्रमशः 1.7 लाख करोड़, 2.41 लाख करोड़ और 2.12 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है.
पंजाब और हरियाणा के बजट क्रमशः 1.68 लाख करोड़ रुपये और 1.55 लाख करोड़ रुपये हैं.
हालांकि, पेट्रोल (Petrol) और डीजल से केंद्र को मिलने वाला राजस्व उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के सालाना बजट के मुकाबले कम बैठता है. उत्तर प्रदेश का बजट करीब 5.5 लाख करोड़ रुपये है, जबकि महाराष्ट्र का बजट 4.37 लाख करोड़ रुपये है.
वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर ने सोमवार को लोकसभा में एक सवाल के जवाब में इन आंकड़ों का जिक्र किया है.
ज्यादातर राज्यों में पेट्रोल और डीजल की रिटेल कीमतों पर केंद्र और राज्य सरकारों के लिए जाने वाले करों की हिस्सेदारी 60 फीसदी से ज्यादा है. इतने ऊंचे टैक्स के चलते भारत में तेल की कीमतें दुनियाभर में सबसे ज्यादा हैं.
ठाकुर ने बताया, “14 मार्च 2020 से कुल सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी (बेसिक एक्साइज ड्यूटी, सेस और सरचार्ज मिलाकर) को पेट्रोल और डीजल पर 3 रुपये प्रति लीटर बढ़ा दिया गया है. इसके बाद 6 मई 2020 से इसे पेट्रोल पर 10 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 13 रुपये प्रति लीटर और बढ़ा दिया गया है.”
ठाकुर ने यह भी बताया कि केंद्र का पेट्रोल (Petrol) और डीजल पर टैक्स कलेक्शन पिछले छह वर्षों में 300 फीसदी बढ़ा है. केंद्र सरकार ने 2014-15 में पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी के तौर पर 29,279 करोड़ रुपये और डीजल पर 42,881 करोड़ रुपये हासिल किए थे. इस तरह से सरकार को तेल पर 72,160 करोड़ रुपये की कमाई हुई थी. मौजूदा फिस्कल के पहले 10 महीनों में ही सरकार फ्यूल से 2.94 लाख करोड़ रुपये कमा चुकी है.