क्या आपने कभी वनस्पति से बने प्लास्टिक (Bio Plastic) के बारे में सुना है ? क्या आप ‘बायो प्लास्टिक’ (Bio Plastic) शब्द से परिचित हैं ? जी हां, यह ऐसी प्लास्टिक (Bio Plastic) है जो मिट्टी में मिल जाती है और पानी में घुल जाती है. महज इतना ही नहीं इस बायो प्लास्टिक (Bio Plastic)के जलने से प्रकृति को भी कोई नुकसान नहीं होता. प्लास्टिक के इस अनोखे स्टार्टअप को स्वरूप दिया है गुजरात की बेटी बिंदी ने.
वो कहावत है न ‘मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है.’ ऐसे ही बुलंद हौसलों की उड़ान भर रही हैं गुजरात की महिलाएं, जो इनोवेशन, तकनीक और स्टार्टअप के क्षेत्र में आज अनोखा स्थान प्राप्त कर रही हैं. गांव से लेकर शहरों तक आज महिलाएं सभी क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं. बढ़ते भारत के साथ कदम से कदम मिलाकर गुजरात की महिलाएं नए-नए स्टार्टअप से तकनीक विकसित कर रही हैं. गुजरात यूनिवर्सिटी स्टार्टअप एंड आंत्रप्रेन्योर काउंसिल विभाग इन महिलाओं को आर्थिक, मानसिक और तकनीकी मदद कर इन्हें प्रोत्साहित कर रहा है. इसी की मदद से इन बेटी बिंदी ने अपने स्टार्टअप को स्वरूप दिया है. आइए विस्तार से जानते हैं इसके बारे में…
बिंदी बताती है कि इंसानों ने पिछले 100 साल में 9 बिलियन टन प्लास्टिक का प्रोडक्शन किया है और हर एक सिंगल पीस ऑफ प्लास्टिक हजारों साल तक वातावरण में पड़ा रहता है, जो कि हर तरह के प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है. इसलिए हम प्लांट बेस्ड मटेरियल से प्लास्टिक बनाते हैं, जिसकी क्वालिटी बिलकुल नॉर्मल प्लास्टिक के जैसी ही है, लेकिन ये प्लास्टिक मिट्टी और पानी में डिग्रेडेबल है. इस बायो प्लास्टिक का प्रोडक्शन हम नॉर्मल प्लास्टिक के मशीन में ही 40 प्रतिशत कम एनर्जी के साथ कर सकते हैं.
आगे जोड़ते हुए बिंदी बताती हैं कि प्लांट बेस्ड मटेरियल जैसे मक्का, टैपिओका, गेहूं है. ऐसे प्लांट जिनमें कि कुछ फाइबर होते हैं जैसे कि कॉटन है, ऐसे फाइबर यूज करके ही हम यह बायो प्लास्टिक बनाते हैं.
आपने वनस्पति से बने बायो प्लास्टिक के बारे में तो जाना, अब आपको बताते हैं कि कैसे एग्रीकल्चर वेस्ट मटेरियल से सस्टेनेबल कपड़ा बनाया जा सकता है. टेक्सटाइल इंडस्ट्री में उपयोगी केमिकल से भी हमारे पर्यावरण को काफी नुकसान होता है. ऐसे में शिखा शाह का यह स्टार्टअप आगे आने वाले समय में हमारे लिए अत्यंत उपयोगी साबित होगा.
शिखा शाह बताती हैं कि आप यह सोचिए कि जो किसान है, वो प्लांट को अपने प्राइमरी रीजन के लिए उगाएगा, जैसे फूड या फिर फ्रूट, लेकिन इस प्रक्रिया में बहुत से लीव वेस्ट भी साथ में तैयार होता है, जिसमें फाइबर कंटेंट पाया जाता है. हम इस एग्रीकल्चर वेस्ट को स्टडी करते हैं और जो वेस्ट हमारे काम के हैं उन वेस्ट इकट्ठा करके उनमें से फाइबर एक्सट्रेक्ट करते हैं. जब ये फाइबर एक्सट्रेक्ट होता है तो हमारी प्रोप्राइटरी एक प्रोसीजर है, जिसमें काफी नंबर ऑफ स्टेप होते हैं जिनमें केमिकल लगते हैं, मैकेनिकल प्रोसेस लगती हैं, जिससे हम एक और उत्तम क्वालिटी का फाइबर तैयार करते हैं.
इस दौरान हम इस बात का विशेष खयाल रखते हैं कि हम कोई भी हानिकारक केमिकल इस्तेमाल न करें ताकी सिर्फ हमारा स्रोत सस्टेनेबल हो ऐसा नहीं, हमारा फाइबर भी सस्टेनेबल हो. इस पूरे प्रोसीजर से गुजरने के बाद एग्रीकल्चर वेस्ट से कपड़ा बनाया जा सकता है. किसी भी देश का असली विकास उस देश की शिक्षित और विकसित महिलाओं पर निर्भर करता है और ऐसे में कंधे से कंधा मिलाकर नए स्टार्टअप से ये बेटियां देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाने में तत्पर हैं.
(प्रसार भारती न्यूज सर्विस इनपुट के साथ)