देश में इंडियन इंस्टिटयूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IITs) में दाखिले और पढ़ाई के लिए भले ही सबसे बेहतर माना जाता हो, लेकिन भारत को चांद पर पहुंचाने में भारती अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) के जिन वैज्ञानिकों ने सबसे ज्यादा योगदान दिया है, उनमें अधिकतर वैज्ञानिक IIT में नहीं बल्कि सरकार की तरफ से चलाए जा रहे स्थानीय इंजीनिरिंग कॉलेजों से पढ़कर निलके हैं, और ISRO में जो थोड़े बहुत वैज्ञानिक IIT से पढ़े हैं उनमें भी अधिकतर ऐसे हैं जिन्होंने IIT से सिर्फ मास्टर किया है, ग्रेजुएशन की पढ़ाई उन्होंने भी स्थानीय इंजीनियरिंग कॉलेजों से ही की है. रिपोर्ट में कहा गया है कि ISRO के मौजूदा वैज्ञानिकों में 90 फीसद वैज्ञानिक स्थानीय इंजीनियरिंग कॉलेजों से पढ़े हैं और उनमें अधिकतर ऐसे हैं जिन्होंने मास्टर की पढ़ाई इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस से की है.
ISRO के मौजूदा चीफ एस सोमनाथन ने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई कोलम में स्थित थंगल कुंजू मुसलियर कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से की है. एस सोमनाथन से पहले के सिवन ISRO के चीफ थे और वे भी अन्ना युनिवर्सिटी के दारे में आने वाले मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के छात्र रहे हैं, हालांकि दोनों ने ही मास्टर की पढ़ाई इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस से की है.
दरअल ISRO सरकार की संस्था है और वहां पर सेवा देने पर सरकारी नियमों के तहत ही वेतन मिलता है, जबकि IIT स्टूडेंट्स को निजी संस्थानों और विदेशी कंपनियों से मोटी सेलरी का ऑफर होता है, ऐसे में अधिक वेतन के लिए IIT से पढ़कर निकलने वाले अधिकतर छात्र विदेशी या निजी कंपनियों में सेवा को तरजीह देते हैं. IITs से पढ़कर निकलने वाले फ्रेशर्स को निजी और विदेशी कंपनियों की तरफ से औसतन 25 लाख रुपए के सालाना पैकेज का ऑफर होता है, जबकि ISRO में नौकरी लगने पर इससे आधा वेतन भी नहीं मिलता.